आदिपुरुष को लेकर हुई कंट्रोवर्सी को लेकर फिर आई मनोज मुंतशिर की प्रतिक्रिया
बॉलीवुड की विवादित फिल्म आदिपुरुष रिलीज के बाद यदि कोई आदमी सबसे अधिक टारगेट किया गया, तो वो थे फिल्म के लेखक मनोज मुंतशिर। मनोज को उनकी राइटिंग के कारण सोशल मीडिया पर नकारात्मकता का सामना करना पड़ा था। अचानक से हुए टकराव के पश्चात् जब मनोज ने अपनी सफाई भी दी, तो उस समय भी उन्हें नहीं बख्शा गया। आलम यह था कि बढ़ती नकारात्मकता से तंग आकर उन्होंने न केवल कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से ब्रेक लिया बल्कि वो राष्ट्र से दूर कहीं यात्रा पर भी निकल गए, स्वयं का आत्ममंथन करने। आज मनोज उन अनेक नकारात्मकता और विवादों से जुड़ी चीजों पर बात करने को तैयार हैं।
वही अब एक साक्षात्कार के चलते जब मनोज से पूछा गया कि क्या वो मानते हैं कि आदिपुरुष कहानी लिखने में उनसे चूक हुई है। उत्तर में मनोज बोलते हैं, लिखने में।। हां 100 प्रतिशत।।इसमें कोई संदेह है ही नहीं। मैं इतना इनसिक्योर आदमी नहीं हूं कि मैं अपनी राइटिंग स्किल को डिफेंड करता फिरूं कि मैंने तो अच्छा लिखा है। अरे सौ फीसदी गलती हुई है। मगर जब गलती हुई, तो उस गलती के पीछे कोई खराब मंशा नहीं थी। मैंने धर्म को ठेस पहुंचाने का और सनातन को तकलीफ देने का या ईश्वर राम को कलुषित करने का, हनुमान जी के बारे में कुछ ऐसा कह देने का जो नहीं है।। ऐसा उद्देश्य बिलकुल भी नहीं था। मैं ऐसा करने का कभी सोच भी नहीं सकता। हां बोलने का ये मतलब है, गलती हुई है।। बहुत बड़ी गलती हुई है।। मैंने इस हादसे से बहुत कुछ सीखा है तथा बहुत बढ़ियां लर्निंग प्रोसेस रहा। आगे से बहुत एहतियात बरतेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है कि अपनी बात करना छोड़ देंगे।
फिल्म को लेकर जब टकराव उठा, तो उनकी व्यक्तिगत जीवन पर क्या असर पड़ा। उत्तर में वो बोलते हैं, आप आदमी हैं।। पत्थर तो नहीं।। मृत-शरीर नहीं।। हर चीज का फर्क पड़ता है। प्यार भी आपको अच्छा लगता है और जब आप पर पत्थर उछाले जाते हैं, तो उनसे भी आपको तकलीफ होती है। आपको इससे डील करना सीखना पड़ता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि इस प्रकार की प्रतिक्रिया रहेगी। कोई भी नहीं सोचता है। फिल्म तो बहुत ही अच्छी नीयत से बनाई गई थी न। 600 करोड़ यदि हम इस फिल्म में डाल रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि सभी चाहते हैं कि बेहतरीन बने। कौन चाहेगा कि इस फिल्म को बनाकर हम अपना करियर समाप्त कर लें। जाहिर सी बात है इसके पीछे हमारा कोई एजेंडा नहीं था। बस चीजें खराब होती चली गईं।