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Dil Dosti Dilemma Review: अनुष्का सेन की ये सीरीज समझाती है रिश्तों की अहमियत

ओटीटी न्यूज़ डेस्क – किशोर लड़कों और लड़कियों का अपना जीवन और विचार होते हैं, जो अक्सर मान्यताओं और परंपराओं के विरुद्ध उपद्रव करते हैं. अपने ख्यालों और सपनों में खोई रहने वाली ये पीढ़ी अक्सर रिश्तों की कद्र नहीं करती जाने-अनजाने में वह कुछ ऐसा कर जाती है जिससे दिल टूट जाता है. यदि ठीक ढंग से न संभाला जाए तो संबंध भी बिखर जाते हैं. इस युग की प्राथमिकताएं भिन्न-भिन्न हैं, जो जीवन को देखने का नजरिया भी तय करती हैं. प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम की गई सात-एपिसोड की श्रृंखला दिल दोस्ती डिलेमा उम्र के इस जरूरी मोड़ पर रिश्तों के महत्व को समझाने वाला एक संदेश देती है. हालाँकि, विषय वस्तु पुरानी लगती है, जिसके कारण सीरीज़ अपनी पकड़ खोती नज़र आ रही है. अस्सी के दशक में ऐसे विषय अक्सर पारिवारिक फिल्मों का हिस्सा बन जाते थे और दर्शक भावनाओं के सागर में डूबते रहते थे.

क्या है ‘दिल दोस्ती दुविधा’ की कहानी?
कथाभूमि बेंगलुरु की एक पॉश कॉलोनी में रहने वाला एक मुसलमान परिवार है और कहानी के केंद्र में 17 वर्ष की चुलबुली अस्मारा (अनुष्का सेन) है. अस्मारा, जो अपने अमीर और संभ्रांत दोस्तों के साथ रहती है, एक गलती करती है, जिसके कारण उसकी मां अर्शिया (श्रुति सेठ) निर्णय करती है कि वह गर्मियों की छुट्टियों के लिए उनके साथ कनाडा नहीं जाएगी, बल्कि उनके साथ कनाडा जाएगी. उसकी दादी फ़रीदा (तन्वी आज़मी) और नाना. (शिशिर शर्मा) अपने घर में, जो शहर के पुराने क्षेत्र तिब्बरी रोड पर स्थित है. पिता खालिद (खालिद सिद्दीकी) अपनी पत्नी को समझाने की प्रयास करते हैं, लेकिन मां मानने से इनकार कर देती है. अस्मारा को अपनी दादी के घर में किस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. वह अपने दोस्तों को यह दिखाने की प्रयास करती है कि वह कनाडा में है. हालाँकि, इस क्रम में वह स्वयं को बेहतर बनाने की राह पर चलती है.


पटकथा और एक्टिंग कैसा है?

दिल दोस्ती दुविधा, अंदालिब वाजिद के उपन्यास असमराज समर का स्क्रीन रूपांतरण, डेबी राव द्वारा निर्देशित है. अस्मारा के जरिए डेबी ने जहां दो पीढ़ियों की सोच में अंतर को दर्शाया है, वहीं महानगर में दो पीढ़ियों के भिन्न-भिन्न स्तरों को भी खुलासा किया है. जैसे, एक शहर के अंदर दूसरा शहर है पड़ोसियों का पुराने पड़ोस के बारे में बातें करना, एक-दूसरे की जीवन में झांकना दिलचस्प लगता है. हालाँकि, सीरीज़ में जिस मोड़ पर मोड़ आता है, वह मुनासिब नहीं है. अस्मारा के अपने दोस्तों के साथ व्यवहार में आए परिवर्तन का कोई ठोस कारण नहीं कहा गया है, क्योंकि जिस तरह से उनके भूमिका को सहज और खुशमिजाज दिखाया गया है, दर्शक उनसे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं करते हैं. कुछ बातें पचती नहीं.

कथानक को गतिशील बनाए रखने के लिए कुछ बातें छूटती हुई प्रतीत होती हैं. उदाहरण के लिए, एक ही शहर में रहने के बावजूद अर्शिया अपने परिवार से मिलने नहीं जाती, जबकि वह अपनी बेटी को वहीं रहने के लिए भेज देती है. अस्मारा की किरदार में अनुष्का सेन का एक्टिंग सतही है. एक किशोर लड़की की भावनाओं, उलझन और संभ्रम को व्यक्त करने में गहराई की कमी है. नानी-नाना की किरदार में तन्वी आज़मी और शिशिर शर्मा का एक्टिंग शो को एक साथ रखता है और टूटने से बचाता है. प्राइम वीडियो पर इस शो के साथ गर्मी की छुट्टियों में दादा-दादी के घर जाने की परंपरा वापस लौट आई है.

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