मनोरंजन

Arthur The King Review: कुत्तों के आतंक के बीच आई श्वान और इंसान की दोस्ती की उल्लेखनीय कहानी

निर्देशक साइमन सेलन जोन्स की फिल्म ‘आर्थर द किंग’ नॉन-फिक्शन पुस्तक ‘आर्थर: द डॉग हू क्रॉस्ड द जंगल टू फाइंड ए होम’ पर आधारित है. इस फिल्म के माध्यम से फिल्म के निर्देशक ने जानवरों के प्रति आदमी की सोच को दर्शाया है. आदमी का सबसे बड़ा वफादार जानवर कुत्ता होता है. इस फिल्म की कहानी एक एथलीट और एक कुत्ते के भावनात्मक संबंधों के इर्द – गिर्द घूमती है. वैसे यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित बताई जा रही है, इसलिए फिल्म के निर्देशक ने अधिक फिल्मी लिबर्टी ना लेते हुए फिल्म की कहानी को वास्तविकता के करीब ही रखा है, लेकिन एक अच्छी कहानी को परदे पर अच्छी तरह से पेश करने में सफल नहीं रहे.

फिल्म की कहानी पर्वतारोहियों के एक समूह की है, जिसमें माइकल, ओलिविया, और चिक ने एक साहसिक प्रतियोगिता में भाग लिया है. इस प्रतियोगिता के दौरान एक आवारा कुत्ता आर्थर टीम के मुखिया माइकल से जुड़ जाता है. कुत्ता रात में खतरों को भांप कर अपनी समझ से पूरी टीम को बचाता है. माइकल उसे अपने साथ लेकर जाता है, लेकिन कहानी में एक मोड़ ऐसा आता है जब आर्थर को पीछे छोड़कर माइकल को जाना पड़ता है लेकिन वह उनका पीछा करते हुए समुद्र में चला जाता है और समुद में डूबने लगता है. माइकल उसे बचाने की प्रयास करता है, लेकिन इससे प्रतियोगिता जीतने की आसार खतरे में पड़ जाती है.

फिल्म में माइकल का ऐसा भूमिका है जो अब तक किसी भी प्रतियोगिता में नहीं जीता है, उसे एक एथलीट  बनने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है लेकिन उसके जीवन में जब  कुत्ता आर्थर आता है तो जीवन के प्रति उसकी सोच बदल जाती है. वह अपनी टीम के प्रति और भी समर्पित हो जाता है. इस फिल्म की कहानी ‘द आर्थर फाउंडेशन’ से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य पूरे विश्व में कुत्तों को बेहतर देखभाल करने में सहायता करना है. फिल्म के निर्देशक साइमन सेलन जोन्स ने फिल्म का विषय बहुत ही अच्छा चुना है, लेकिन फिल्म की पटकथा ऐसी है कि उसमें केवल आधे घंटे की शॉर्ट फिल्म बेहतर बन सकती हैं. फिल्म इंटरवल के पहले काफी बोर करती है और इंटरवल के बाद भी अंतिम के 25 – 30 मिनट ही किसी तरह से गति पकड़ती है. फिल्म के मूल कथानक को आगे बढ़ाने में साइमन सेलन जोन्स ने जिस तरह से फिल्म के बाकी भूमिका गढ़े हैं, उसका मूल कथानक से जरा सा भी मेल नहीं खाता है चाहे वह माइकल की पत्नी हो या फिर उसके बच्चे और पिता का किरदार.

चूंकि यह फिल्म सच्ची कहानी पर आधारित है, शायद इस वजह से निर्देशक साइमन सेलन जोन्स कहानी को अधिक विस्तार से नहीं कह पाए, लेकिन फिल्म के मूल कथानक के साथ जिस तरह से उन्होंने फिल्म के भूमिका को पेश किया है वह वास्तविकता के एकदम भी करीब नहीं लगते हैं. इस फिल्म को पूरी तरह से आदमी और कुत्ते के बीच ही रखा गया होता तो यह फिल्म भावनात्मक रूप से और भी मजबूत फिल्म बन सकती थी. माइकल की पत्नी हेलेना जानवरों के प्रति माइकल के सोच की पूरी तरह से समर्थन करती है, लेकिन इस भूमिका को केवल घर के काम और बच्चों की देखभाल तक ही सीमित कर दिया गया है जब कि वह भी एथलीट रह चुकी हैं.
फिल्म में माइकल की किरदार मार्क वाह्ल्बर्ग ने निभाई है. पूरी फिल्म की कहानी मार्क वाह्ल्बर्ग और कुत्ते आर्थर के ही इर्द – गिर्द घूमती हैं. फिल्म में मार्क वाह्ल्बर्ग के ही कंधे पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी, लेकिन वह अपनी किरदार के साथ पूरी तरह से इन्साफ नहीं कर पाए. जिस तरह से आर्थर के प्रति फिल्म में उनका प्रेम दिखाया गया है और जब आर्थर घायल होता है और चिकित्सक उसे कभी भी मृत घोषित कर सकते हैं, ऐसे दृश्य में एक कलाकार का जो भावनात्मक पहलू निकल कर आना चाहिए ऐसा कुछ भी मार्क वाह्ल्बर्ग की अदाकारी में नहीं दिखा. लेकिन हां, एक एथलीट की किरदार में वह पूरी तरह से जमे हैं. माइकल की पत्नी की हेलेना किरदार में जूलिएट रैलेंस का भी एक्टिंग सामान्य ही रहा है. फिल्म के बाकी कलाकारों में नथाली इमैनुएल, अली सुलेमान और पॉल गिलफॉयल भी कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए. अदाकार बेयर ग्रिल्स स्वयं की किरदार में नजर आए, लेकिन फिल्म के निर्देशक उनके भूमिका को भी ढंग से पेश नहीं कर पाए.
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बहुत ही अच्छी है. जैक्स जौफ्रेट ने सामान्य से दृश्य से लेकर घातक स्टंट दृश्य बहुत ही खूबसूरती के साथ फिल्माया है. गैरी डी रोच का संपादन फिल्म के पहले भाग में बहुत सुस्त है, लेकिन जैसे -जैसे फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है, पहले भाग की अपेक्षा थोड़ी बेहतर होती जाती है. चुकी पूरी फिल्म ही डेढ़ घंटे की है इसलिए फिल्म के जरूरी दृश्यों पर कैंची नहीं चलाना उनकी विवशता रही होगी. फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू थोड़ा बेहतर हैं, लेकिन बैकग्राउंड स्कोर कोई असर नहीं छोड़ता. यदि आप पशुप्रेमी है तो आपको यह फिल्म अच्छी लग सकती हैं, लेकिन फिल्म की कहानी भी यदि और रोचक होती तो फिल्म देखने का कुछ और ही आनंद होता.

Related Articles

Back to top button