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जॉनी लीवर की बेटी ने अपने करियर को लेकर की ये बात

मशहूर कॉमेडियन जॉनी लीवर की बेटी जेमी लीवर का बोलना है कि कॉमेडियन बनने की ख्वाहिश की वजह से उन्हें काफी कुछ सहना पड़ा है. पिता कॉमेडियन हैं और मैं स्टैंडअप कॉमेडियन बनी तो मेरी ये करियर चॉइस कइयों को रास नहीं आई. मेरे रंग-रूप का मजाक बना. पिता की विरासत को आगे बढ़ाना काफी चुनौतीपूर्ण रहा.

जेमी लीवर ने यूके में पढ़ाई की, मल्टीनेशनल कंपनी मेें काम किया लेकिन पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए नौकरी छोड़ दी.

जेमी चाहती हैं कि ‘कपूर’, ‘खान’ की तरह ‘लीवर’ खानदान को भी अपने हास्य व्यंग और चुटकुलों को लेकर पहचान मिले.

सवाल यह है कि बेटों की तरह बेटियां पिता के नक्शेकदम पर क्यों नहीं चल सकतीं? क्यों बेटियों को पिता के काम और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?

लड़के कमाऊ पूत, लड़कियां दरकिनार

‘बेटा घी का लड्‌डू’, ‘बेटे माऊ पूत’, ‘बाप का दाहिना हाथ’, ‘घर का सहारा’, ‘बेटे से चलता वंश’, ‘ बेटा ही देता अर्थी को कंधा’ केवल बेटा ही बेटा. लेकिन बेटियां पराया धन, बेटियां दूसरे की अमानत, बेटियां कभी विवशता तो बेटियां कभी जिम्मेदारी.

बेटे को पैसा कमाने के गुर बचपन से ही सिखाए जाते हैं. बिजनेस घुट्टी में पिलाया जाता है. बिजनेस की बारिकियां और तौर ढंग सीखने के लिए बेटे को बाहर भेजा जाता है.

पेरेंट्स अपने बेटों को एक तरह से ट्रेनिंग देते हैं जिससे वह फैमिली बिजनेस के मंत्र सीख सके. बेटों की पढ़ाई-लिखाई भी उसी तरह से कराई जाती है.

मुंबई स्थित एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (SPJIMR) के प्रोफेसर राजीव अग्रवाल कहते हैं कि बेटियों को घर के रुटीन कामों से जोड़ दिया जाता है. जिस तरह बेटों को आजादी मिलती है बेटियों को नहीं दी जाती.

घर संभालो, बिजनेस तुम्हारे ‌बस की बात नहीं

राजीव अग्रवाल कहते हैं-परिवार का बिजनेस संभालने के मुद्दे में बेटियों को पारंपरिक रूप से कमतर माना जाता है. घर में कोई बेटी पिता के बिजनेस में आना चाहती है तो परिवार के ही सदस्य कई तरह के प्रश्न खड़े करने लगते हैं.

‘तुमसे बिजनेस नहीं हो पाएगा’, क्या जानती हो बिजनेस के बारे में, कभी ये जाना है कि माल कहां से आता है, कहां जाता है, कोई सामान बेचने और दो पैसे कमाने में कितनी मगजमारी होती है, शायद तुमको नहीं पता.

मुंबई स्थित MAVA (मैन अगेंस्ट वॉयलेंस एंड एब्यूज) के फाउंडर हरीश सदानी कहते हैं कि बेटियों को फैमिली बिजनेस से दूर ही रखा जाता है. कोई काम करना भी चाहे तो बेटियों की क्षमता पर प्रश्न उठाया जाता है. उन्हें बेटों के मुकाबले कमतर आंका जाता है.

हरीश कहते हैं कि महाराष्ट्र के सोलापुर, सांगली, सतारा, अहमदनगर, कोल्हापुर, धराशिव में 200 से अधिक चीनी मिल हैं. इनमें से किसी में भी लड़कियां शुगर इंडस्ट्री के बिजनेस में नहीं हैं. परिवार के लोग बेटियों को फैमिली बिजनेस से दूर रखते हैं.

घर में लड़का है तो फैमिली बिजनेस वही संभालेगा

यह बहुत ही सामान्य बात समझी जाती है कि यदि घर में लड़का है तो वही फैमिली बिजनेस संभालेगा. लड़कियों के ‘गल्ला’ पर बैठने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता. इसलिए लड़कियों को किसी दूसरे बिजनेस में उतरना पड़ता है.

राजीव अग्रवाल कहते हैं कि जब बेटे के रहते बेटियों को मौका नहीं दिया जाता तो वो बुटिक, डिजाइनिंग, आर्किटेक्चर और लाइफस्टाइल से जुड़े बिजनेस में हाथ आजमाती हैं. या फिर अपने शौक के अनुसार फैशन, जूलरी डिजाइन के क्षेत्र में काम करती हैं.

अक्सर घर में बेटियों को पारिवारिक बिजनेस में आने से इसलिए रोका जाता है कि कहीं आगे चलकर पैसे या प्रॉपर्टी को लेकर बहनों का भाइयों से टकराव न हो जाए. कुछ परिवारों में बेटियां फैमली बिजनेस से जुड़ती भी हैं तो उन्हें साइड का काम दिया जाता है जैसे वेबसाइट डेवलप करना, मार्केटिंग करना. लेकिन उन पर पूरे बिजनेस का दारोमदार नहीं होता. बेटी को गल्ले से दूर रखा जाता है.

बेटी अपने पति का बिजनेस संभालेगी

यह एक पितृसत्तात्मक सोच है कि विवाह के बाद बेटी को ससुराल जाना है जो सदियों से चली आ रही है. पिता और भाई के बिजनेस से उसका क्या लेना-देना.

बेटी की विवाह कहां होगी, किस घर-परिवार में जाएगी, ससुराल में बिजनेस होगा या नहीं, कोई नहीं जानता. इसलिए पिता भी नहीं चाहते कि बेटी को अपने बिजनेस के गुर सिखाएं. सारा ध्यान बेटे पर ही केंद्रित रहता है.

हरीश कहते हैं कि 21वीं सदीं में कई चीजें बदल गई हैं, और भविष्य में भी बदलेंगी. यदि लड़कियों को पिता बिजनेस के गुर नहीं सिखाते तो लड़कियां अपने दम पर सीख लेंगी.

अपनी पढ़ाई-लिखाई और अनुभव के बल पर वो स्वयं को बिजनेस में खड़़ा कर सकती हैं.

मायके में बिजनेस से दूर बेटियां ससुराल में कामयाब

नोएडा की रहने वाली पल्लवी सारस्वत कहती हैं कि मेरे पिता का इलेक्ट्रॉनिक्स का बिजनेस था, जबकि मां विद्यालय की प्रिंसिपल रहीं. मेरी पढ़ाई-लिखाई अलीगढ़ से हुई. मैथेमैटिक्स से एमए किया और फिर इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा. लेकिन फैमिली बिजनेस में दखल नहीं दे सकी. जब विवाह के बाद ससुराल आई तो बिजनेस के बारे में सोचा.

पल्लवी आज नोएडा में फूड डिलीवरी सर्विस चलाती हैं. महज 7,000 रुपए की पूंजी से उन्होंने ‘ब्रेकफास्ट टाइम’ स्टार्टअप की आरंभ की. आज उनका हर महीने का टर्नओवर 15 लाख रुपए से ऊपर है.

राजीव अग्रवाल कहते हैं कि वो ऐसी कई स्त्रियों को जानते हैं जो ससुराल जाकर वहां का बिजनेस संभाल रही हैं.

इसका कारण यह है कि ससुराल वाले बहू की टैलेंट और हुनर को जानते हैं.

मायके में जहां न पिता और भाई ने बिजनेस से उन्हें दूर रखा वहीं ससुराल में पति का सपोर्ट मिला. जिसने आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

ससुराल वाले भी यह मानकर चलते हैं कि बहू यदि फैमिली बिसनेस से जुड़ेगी तो बिजनेस में बरकत होगी.

बिहार के पटना की रहने वाली रंजू सहाय कहती हैं पिता कपड़ा का व्यवसाय करते थे. तब उनके बिजनेस को देखती, समझती लेकिन मायके में रहते हुए कभी बिजनेस नहीं कर पाई.

ससुराल में पति कपड़े के बिजनेस में थे. धीरे-धीरे मैं पति के साथ कपड़े के व्यवसाय में आ गई. आज मैें बिजनेस में पति जितना ही सक्रिय हूं.

बेटियां बेटों को पीछे छोड़ रहीं

बेटियों को बिजनेस के गुर नहीं सिखाएंगे तब भी वो रुकने वाली नहीं हैं. राजीव अग्रवाल कहते हैं कि अब बेटियां अधिक पढ़-लिख रही हैं, वो प्रोफेशनल कोर्स कर रही हैं. आज की लड़की अपने करियर को लेकर अधिक अलर्ट है और घिसी-पिटी रिवायतों पर ध्यान नहीं देतीं.

पंजाब यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर अमीर सुलताना कहती हैं कि महिलाएं मल्टी टास्किंग होती हैं उनमें कस्टमर रिलेशनशिप को डील करने का गुण होता है इसलिए वे बिजनेस में सफल हो रही हैं.

ये लड़कियां मजबूत हैं और अपना रास्ता स्वयं बना रही हैं.

शादी के बाद भी पिता के बिजनेस को संभालती बेटियां

शादी हो गई तो महत्वपूर्ण नहीं कि बेटी ससुराल के ही बिजनेस को संभाले. कई ऐसी महिलाएं हैं जो विवाह होने के बाद भी अपने पिता के साथ काम करती हैं.

हालांकि ये उन परिवारों में अधिक हैं जहां भाई नहीं हैं.

यदि मायके में भाई नहीं है और पिता का बड़ा बिजनेस है तो बेटियां बेधड़क अपने पिता के बिजनेस को संभालती हैं. ससुराल के लोग भी इससे इंकार नहीं करते.

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