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इन बॉलीवुड सितारों ने केंद्रीय राजनीति में छोड़ी अपनी छाप

बॉलीवुड स्टार्स और राजनीति का रिश्ता बहुत पुराना है. देशभर में फिल्मी सितारे राजनीति में शामिल हुए हैं, चुनाव जीते हैं और जरूरी पदों पर काम किया है. शत्रुघ्न सिन्हा, सुनील दत्त, विनोद खन्ना और स्मृति ईरानी जैसे फिल्मी सितारे केंद्रीय मंत्री का पद संभाल चुके हैं. किरण खेर और परेश रावल भाजपा में शामिल होकर संसद पहुंचे, जबकि राज बब्बर एक समय यूपी कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कर चुके हैं अमिताभ बच्चन 1984 से 1986 तक कांग्रेस पार्टी सांसद और राजीव गांधी के सहयोगी थे. तो राजेश खन्ना, गोविंदा, जया बच्चन, जया प्रदा, धर्मेंद्र, हेमामालिनी ने भी केंद्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है

कंगना रनौत उस चुनाव मैदान में कूदने वाली नवीनतम फिल्म स्टार हैं. उन्होंने हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा है कंगना के राजनीति में आने से कुछ मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री सितारों को लगता है कि उनके बिजनेस और दूसरे हितों को खतरा हो जाएगा

इस बीच, गोविंदा और शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी सियासी वफादारी एक पार्टी से दूसरी पार्टी में बदल ली है. इसलिए किरण खेर इस बात का प्रतीक्षा कर रही हैं कि भाजपा उन्हें चंडीगढ़ लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित करेगी

फिल्मी दुनिया और राजनीति के बीच सांठगांठ की कई कहानियां हैं लेकिन यह बोला जा सकता है कि वर्ष 2014 के बाद फिल्मी सितारे एक स्टैंड लेकर अपने चुने हुए राजनेता का समर्थन करने के लिए तैयार हैं इसी के चलते कुछ फिल्मी सितारे खुलकर पीएम मोदी के समर्थन में आ गए हैं वे राष्ट्रवाद, धर्म और असंतोष की भी बात करने लगे हैं

नरगिस और सुनील दत्त की जोड़ी को सर्वोच्च सियासी सम्मान मिला नरगिस राज्यसभा की सदस्य थीं जबकि सुनील दत्त लोकसभा के सदस्य बने और मंत्री पद पर रहे. नरगिस की मृत्यु के तीन वर्ष बाद 1984 में राजीव गांधी ने सुनील दत्त को मुंबई में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए कहा. सुनील दत्त भारी अंतर से जीते उन्होंने शांति और सांप्रदायिक सद्भाव, कैंसर और एचआईवी मरीजों के लिए अभियान चलाया. उनका सियासी असर दो दशकों तक रहा.

चुनावी रण में उतरे रामायण सीरियल के राम अरुण गोविल

1980 के दशक के टीवी सीरियल रामायण में राम की किरदार निभाने वाले अदाकार अरुण गोविल भाजपा उम्मीदवार के तौर पर मेरठ लोकसभा सीट से मैदान में उतरे हैं वह आज भी रामायण के अपने भूमिका की आड़ में प्रचार कर रहे हैं 1988 में गोविनल ने राम की वेशभूषा धारण कर कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार किया था. लेकिन वह इलाहाबाद के वोटरों को लुभा नहीं सके 1988 में इलाहाबाद सीट पर कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार सुनील शास्त्री वीपी सिंह से चुनाव हार गये

‘रील’ और ‘रियल’ के बीच टक्कर

बीजेपी, तृणमूल, शिव सेना या कांग्रेस पार्टी जैसी पार्टियां बजरी सड़क पर रहने वाले फिल्मी सितारों को राजनीति में एंट्री देती रही हैं फिल्मी सितारे सार्वजनिक जीवन में लंबे समय तक टिके रहने के लिए राजनीति में शामिल होते हैं. दरअसल, नस्ल, वर्ग, धर्म, भाषा जैसी विविधता वाले हिंदुस्तान में फिल्मी सितारे सभी को एक साथ बांधने की ताकत बनते हैं. कभी-कभी फिल्मी सितारे जनता को औसत सियासी नेता से बेहतर विकल्प मौजूद कराकर वाहवाही भी लूटते हैं. लेकिन फिल्मी सितारे ‘रील लाइफ’ से ‘रियल लाइफ’ में आते ही फेल हो जाते हैं. उदाहरण के लिए, मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री सितारे धर्मेंद्र और उनके बेटे बॉबी देओल भारी वोटों से जीते, लेकिन दोबारा नहीं जीते. बोफोर्स घोटाले के बाद 1986 में अमिताभ ने राजनीति छोड़ दी. शत्रुघ्न को एक गंभीर राजनेता भी माना जाता था 1991 में बीजेपी में शामिल होने से पहले, वह जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले अभियान में शामिल हुए. बिहारीबाबू शत्रुघ्न सिन्हा अभी बंगाल की आसनसोल सीट से उम्मीदवार हैं विनोद खन्ना की राजनीति में भी नाटकीय एंट्री हुई

था वह दिसंबर 1997 में बीजेपी में शामिल हुए. जुलाई 2002 में, प्रधान मंत्री वाजपेयी ने उन्हें संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री नियुक्त किया.

देव आनंद को सियासी पार्टी स्थापित करने का अफसोस था

1977 के आम चुनावों में, वरिष्ठ विधायक राम जेठमलानी ने अदाकार देव आनंद को जनता पार्टी में शामिल होने और इंदिरा गांधी और संजय गांधी के विरुद्ध अभियान में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. पहले देव आनंद ने इस मामले पर सोचा था लेकिन अंततः उन्होंने निर्णय किया कि वह मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण के साथ मंच साझा करेंगे उन्होंने इंदिरा गांधी की आलोचना करते हुए एक संक्षिप्त भाषण भी दिया लेकिन जनता पार्टी के अनुभव ने उनका भ्रम तोड़ दिया. उन्होंने अपनी नयी पार्टी की स्थापना भी कर ली थी नेशनल पार्टी ऑफ इण्डिया की स्थापना करते समय देव आनंद ने बोला था, “अगर एमजीआर तमिलनाडु को मंत्रमुग्ध कर सकते हैं, तो मैं पूरे राष्ट्र में जादुई असर क्यों नहीं पैदा कर सकता?” लेकिन कुछ समय बाद पार्टी टूट गई

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