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उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में घटकर हुई 4.9 प्रतिशत

प्रतिकूल मौसम के कारण महंगाई बढ़ने का खतरा हो सकता है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लंबे समय से जारी तनावपूर्ण स्थिति से कच्चे ऑयल की कीमतों में अस्थिरता बनी रह सकती है. आरबीआई के अप्रैल के बुलेटिन में यह बोला गया है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक  पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में घटकर 4.9 फीसदी हो गई.

इससे पहले पिछले दो महीनों में यह औसतन 5.1 फीसदी रही थी. रिजर्व बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति पर पहुंचते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई को ध्यान में रखता है. केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति के मोर्चे पर चिंताओं का हवाला देते हुए फरवरी, 2023 से प्रमुख नीतिगत रेट रेपो को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा है.

जीडीपी पर प्रतिकूल मौसम डाल सकता है खलल

देश में असली सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि रेट तेज होने की स्थितियां बन रही हैं, लेकिन लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव के साथ प्रतिकूल मौसम की घटनाएं होने से मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा हो सकता है.

रिजर्व बैंक के बुलेटिन में प्रकाशित ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’ शीर्षक लेख कहता है कि साल 2024 के वसंत में गर्मी बनी हुई है. दरअसल इसका इशारा मार्च, 2024 के पिछले 170 वर्ष का सबसे गर्म मार्च महीना होने की तरफ है. डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा की प्रतिनिधित्व वाली टीम ने इस लेख में बोला है कि गर्मियों के दौरान सावधानी से नजर रखनी होगी.

मानसून से पहले बढ़ेगी महंगाई

मानसून के दस्तक देने से पहले खाद्य पदार्थों की कीमतों में अधिक गर्मी के कारण झटके लगने का अंदेशा है. लेख के मुताबिक, “हालांकि निकट अवधि में प्रतिकूल मौसमी घटनाओं के साथ लंबे समय तक भू-राजनीतिक तनाव के कारण मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा हो सकता है.” आरबीआई बुलेटिन के मुताबिक, आर्थिक वृद्धि के रुझान में परिवर्तन के विस्तार के लिए स्थितियां बन रही हैं, जिसने 2021-24 के दौरान औसत असली जीडीपी वृद्धि को आठ फीसदी से ऊपर पहुंचाया है.

लेख कहता है, “अगले तीन दशकों में अपनी विकासपरक आकांक्षाओं को हासिल करने के लिए, भारतीय अर्थव्यवस्था को अगले दशक में अपने जनसंख्या संबंधी लाभों का लाभ उठाने के लिए 8-10 प्रति साल की रेट से बढ़ना होगा. हिंदुस्तान को जनसंख्या संबंधी फायदा साल 2055 तक मिलता रहेगा.

इस लेख पर आरबीआई ने क्या कहा

इसमें बोला गया है कि 2024 की पहली तिमाही में अंतरराष्ट्रीय वृद्धि की गति बरकरार रही है और विश्व व्यापार का परिदृश्य सकारात्मक हो रहा है. बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बॉन्ड प्रतिफल और ऋण की ब्याज रेट बढ़ रही है. ब्याज रेट में कमी को लेकर जो संभावनाएं थी, वह कमजोर पड़ी हैं. आरबीआई ने साफ किया है कि बुलेटिन में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह उसके आधिकारिक विचारों का अगुवाई नहीं करते हैं.

 

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