भारत में मसालों का कारोबार करने वाली प्रमुख कंपनियां एमडीएच और एवरेस्ट इस समय कई प्रश्नों के घेरे में हैं. पिछले सप्ताह सिंगापुर ने इन दोनों भारतीय कंपनियों के मसालों पर प्रतिबंध लगा दिया था और अब हांगकांग ने भी ऐसा ही किया है.
जब इन दोनों राष्ट्रों की प्रयोगशालाओं में इन मसालों के नमूनों की जांच की गई तो उनमें कीटनाशक एथिलीन ऑक्साइड तय मात्रा से अधिक पाया गया, जो इंसानों में कैंसर का कारण बन सकता है. हिंदुस्तान के नागरिकों के लिए यह बहुत ही मुश्किल स्थिति है क्योंकि राष्ट्र के नागरिक अब तक इन मसालों पर आंख मूंदकर भरोसा करते आए हैं.
इन कंपनियों के मसालों के बिना हर घर की रसोई अधूरी होगी. इससे पहले पंजाब के बासमती चावल के नमूने मध्य-पूर्वी राष्ट्रों के साथ-साथ कुछ पश्चिमी राष्ट्रों में भी लैब की वजह से फेल हो गए थे. जांच में इन चावलों में कीटनाशक तत्व पाए गए. हिंदुस्तान के कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य कृषि संस्थानों के जानकारों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा.
क्या राष्ट्र के किसान अधिक उपज पाने के लिए अपने स्तर पर अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करने लगे हैं या जानकार उन्हें निर्धारित मात्रा से अधिक छिड़काव करने की राय दे रहे हैं. क्या यह सच नहीं है कि पंजाब के किसानों ने अत्यधिक कीटनाशकों का छिड़काव करके अपने राज्य की भूमि और भूमिगत जल को जहरीला नहीं बनाया है? लेकिन एमडीएच द्वारा तैयार मद्रास करी पाउडर, सांभर मसाला पाउडर और करी पाउडर में इस कंपनी द्वारा ही खुलेआम कैंसर फैक्टर मिलाया जा रहा है. वहीं, एवरेस्ट कंपनी के फिश करी मसाला में भी ऐसे तत्व पाए गए हैं.
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी इस बात की पुष्टि कर चुकी हैं कि इन मसालों में मिलाया जा रहा कीटनाशक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है. यहां तक दावा किया गया है कि इससे स्त्रियों में ब्रेस्ट कैंसर भी हो सकता है. 2023 में, अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने एवरेस्ट के सभी मसालों और अन्य खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि उनमें साल्मोनेला नामक बैक्टीरिया पाया गया, जो भोजन विषाक्तता का कारण बन सकता है और जो कई जानवरों को संक्रमित करता है अंडे, सूअर का मांस, टर्की और चिकन के कच्चे मांस के रूप में.
यहां नैतिकता का प्रश्न भी उठता है. आख़िर कोई आदमी और बड़ी-बड़ी संस्थाएँ अंधा पैसा कमाने के लिए कितना नीचे गिर सकती हैं, कितना गिर सकती हैं? हमें अब ऐसे प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने ही होंगे. क्या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र का नाम बदनाम करने वाली इन कंपनियों के विरुद्ध हिंदुस्तान में कोई कानूनी कार्रवाई होगी? यदि कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी तो क्या हिंदुस्तानियों को बलि का बकरा बनना पड़ेगा?