क्या नीतीश समाजवादी पार्टी जैसी ‘बगावत’ की राह पकड़ लेंगे या फिर कांग्रेस से करते रहेंगे कदमताल…
पटना। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस पार्टी और सपा में छिड़े घमासान के बीच जानकार इसका असर बिहार में भी देख रहे हैं। कांग्रेस पार्टी को लेकर बिहार की सियासी पार्टियां, खास तौर पर महागठबंधन में जदयू, राजद, भाकपा माले सावधान हो गया है। लेकिन, बिहार की राजनीति में जो सामने से दिख रहा है क्या ऐसा ही अंदर से भी है? दरअसल, प्रश्न यह है कि क्या नीतीश सपा जैसी ‘बगावत’ की राह पकड़ लेंगे या फिर कांग्रेस पार्टी से कदमताल करते रहेंगे? वहीं, बड़ा प्रश्न यह कि महागठबंधन में शामिल अन्य सहयोगी दल और लालू यादव क्या करेंगे?
दरअसल, यह प्रश्न इसलिए कि लालू प्रसाद यादव की राजनीति का उभार कांग्रेस पार्टी विरोध के नाम पर हुआ है। लेकिन, यह भी कटु सत्य है कि बीते ढाई दशक से कांग्रेस पार्टी और आरजेडी एक राजनीतिक पिच पर कदमताल करती रही है। यह नजदीकी कई बार कांग्रेस पार्टी विरोध के दूसरे बड़े चेहरे नीतीश कुमार के लिए कठिनाई का सबब बन जाती है। एक बार फिर जब लालू और कांग्रेस पार्टी की काफी करीबी दिखने लगी है तो नीतीश कुमार के लिए यह असहज स्थिति उत्पन्न कर रही है।
लालू का गेम और नीतीश की ‘ना’
हालांकि, मध्य प्रदेश में नीतीश कुमार ने जदयू के 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारकर अपने तेवर दिखा दिए हैं। लेकिन, इसके साथ ही लालू प्रसाद यादव ने भी बिहार में श्रीकृष्ण सिंह (बिहार के प्रथम सीएम भूमिहार जाति से थे) जयंती के अवसर पर कांग्रेस पार्टी मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में चीफ गेस्ट बनकर नीतीश कुमार को अपनी रणनीति भी हौले से समझा दी है। जाहिर है केंद्र में कांग्रेस पार्टी है और लालू की ‘हां’ और नीतीश की ‘ना’ के बीच की राजनीति अपनी रफ्तार से बढ़ रही है। देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति क्या मोड़ लेती है।
जदयू ने एमपी में दिखा दिए तेवर
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जिस तरह से नीतीश कुमार ने एक के बाद एक ऐसे उम्मीदवारों 10 उम्मीदवारों को के नामों की सूची जारी की है जो एमपी चुनाव में कांग्रेस पार्टी का गेम बिगाड़ सकते हैं। एमपी में जदयू का जनाधार कोई खास तो नहीं है, लेकिन पार्टी ने ऐसी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं जहां पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी जीती हुई है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार को इण्डिया अलायंस का संयोजक नहीं बनाए जाने को लेकर वे नाराज हैं। इण्डिया अलायंस के सूत्रधार के पद पर भी अब उनकी स्थिति असहज सी हो गई है। ऐसे में सब के मन में यही प्रश्न है कि कहीं नीतीश कुमार कांग्रेस पार्टी टीम से ‘कुट्टी’ (अलगाव) की कहानी तो लिखना नहीं प्रारम्भ कर चुके हैं?
कांग्रेस से नीतीश की ‘कुट्टी’ की कहानी
राजनीति के जानकार कहते हैं कि बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार को हरी झंडी नहीं देकर तो वह ये कुट्टी की कहानी लिखना काफी पहले से प्रारम्भ कर चुके हैं। बिहार में कांग्रेस पार्टी गुहार पर गुहार लगा रही है कि उनके मंत्री बनाए जाएं, लेकिन नीतीश कुमार टस से मस नहीं हो रहे। यह तल्खी तब और बढ़ गई जब इण्डिया अलायंस की बेंगलुरु बैठक के दौरान नीतीश कुमार के नाम से ‘अविश्वसनीय’ वाला पोस्टर लगा दिया गया। यहां भी नीतीश की नाराजगी साफ दिखी और उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा नहीं लिया। इसके बाद मुंबई की इण्डिया गठबंधन की बैठक में भी संयोजक पत पर बात नहीं बनी। अब नीतीश कुमार ने मध्य प्रदेश में जदयू के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करके कांग्रेस पार्टी से एक बार फिर पंगा ले लिया है।
राजद का एजेंडा भी एकदम क्लियर
लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद की ओर से साफ इशारा है कि वह नीतीश से अधिक कांग्रेस पार्टी का साथ पसंद करता है। दूसरी ओर लालू यादव ने भी कई बार ऐसे संकेत दिए हैं कि वे कांग्रेस पार्टी से करीब होने में अधिक सहज महसूस करते हैं वनिस्पत नीतीश कुमार के। एक बार फिर श्रीकृष्ण सिंह की जयंती पर कांग्रेस पार्टी के चीफ गेस्ट बनकर लालू ने यही संदेश तो दिया है।सियासत के जानकार कहते हैं कि बिहार में चुनावी समीकरण के अनुसार भूमिहार समाज को साधने की कवायद में लालू यादव कांग्रेस पार्टी मुख्यालय पहुंचे थे। यहां उन्होंने एक और बड़ा खुलासा कर दिया कि कांग्रेस पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष को अध्यक्ष बनने में उनकी बड़ी किरदार रही है। जाहिर है यह एक राजनीतिक संदेश भी है।
बार-बार दिखता लालू का राहुल प्रेम
दरअसल, सवर्ण विरोधी पार्टी माना जाने वाला राजद आजकल ए टू जेड की राजनीति की राह पर चल पड़ा है। यही वजह है कि लालू यादव जब कांग्रेस पार्टी मुख्यालय पहुंचते हैं तो बिहार कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद प्रसाद सिंह (भूमिहार नेता) के बारे में अपनी सद्भावना व्यक्त करते हैं। जाहिर है यह राजनीतिक संकेत ही तो देता है कि आने वाली बिहार की राजनीति क्या रुख ले सकती है। इसके साथ ही राजनीति के जानकार बताते हैं कि यह नीतीश कुमार के लिए खास संकेत है, जिसे निश्चित रूप से वह समझ भी रहे होंगे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी को प्रोमोट करने वाले क्या नीतीश कुमार की राजनीतिक हैसियत कम करे आंक रहे हैं?
बिहार में महागठबंधन के साथियों का रुख
बिहार में जदयू, राजद और कांग्रेस पार्टी के अतिरिक्त महागठबंधन में सीपीएम, सीपीआई एमएल और सीपीआई शामिल है। इन दलों की विचारधारा भी कमोबेश लालू यादव की पार्टी से जाकर मिलती रही है। ऐसे में साफ दिख रहा है कि नीतीश कुमार यहां भी विरोध में खड़े दिखते हैं। कई बार वाम दलों के एजेंडे को नकारते हुए नीतीश कुमार आगे बढ़ते रहे हैं, अब जब कांग्रेस पार्टी के नाम पर लालू और नीतीश की के बीच रेखा खिंचती हुई दिख रही है, तब इन दलों के भूतकाल के अनुभव के आधार पर रुख आने वाले समय में निश्चित रूप से लालू और कांग्रेस पार्टी की ओर जाता दिखेगा। हालांकि, राजनीति संभावनाओं से भरा हुआ रहता है और इसमें कभी भी कुछ हो सकता है।
बिहार की राजनीति पर क्या असर होगा?
जदयू-कांग्रेस की दूरी और राजद-कांग्रेस की नजदीकी के बीच बिहार की राजनीति पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणामों तक थोड़ा ऊपर-नीचे चलती रहेगी। लेकिन, चुनाव रिज़ल्ट के बाद हलचल दिख सकती है। इसके रिज़ल्ट कांग्रेस पार्टी की जीत और हार पर टिके हुए हैं। कांग्रेस पार्टी यदि जीतती है तो वह मजबूत होकर उभरेगी और अपने सहयोगी दलों से अधिक ताकतवर ढंग से डील कर सकती है। वहीं, यदि कांग्रेस पार्टी राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य नहीं जीत पाती है तो उसकी स्थिति निश्चित तौर पर कमजोर होगी, और राष्ट्रीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में फिर नीतीश कुमार का उभार अवश्य संभव हो सकता है।
नीतीश-लालू-कांग्रेस के में फंसी सियासत
हालांकि, राजनीति के जानकार इसके दूसरे पहलू बताते हुए कहते हैं कि नीतीश कुमार के बारे में कांग्रेस पार्टी की नीति बहुत साफ नहीं दिखती है और कांग्रेस पार्टी पार्टी नेतृत्व कंफ्यूज है। लालू यादव भी नीतीश कुमार के नाम पर अभी कंफ्यूज कहे जा सकते हैं, लेकिन यदि कांग्रेस पार्टी नीतीश कुमार के विरोध में रहेगी तो लालू भी विरोध में रहेंगे यह तय है। ठीक उसी प्रकार यदि लालू यादव नीतीश कुमार के विरोध में आएंगे तो कांग्रेस पार्टी भी विरोध में रहेगी। ऐसे में निश्चित रूप से बिहार की राजनीति आने वाले समय में कुछ और हलचल दिखा सकती है। ऐसे भी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी से नीतीश कुमार की जोशीली मुलाकात की चर्चा अभी भी ठंडी नहीं पड़ी है।
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FIRST PUBLISHED : October 26, 2023, 17:50 IST