थारु जनजाति के लोगों की मेहनत और हुनर की चमक पहुच रही विदेशों मे…
देहरादून। उत्तराखंड में पांच तरह की जनजाति निवास करती हैं। इनमें थारु जनजाति उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में रहती है। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर और नैनीताल के क्षेत्र में रहने वाली थारू जनजाति की अनूठी संस्कृति है। वहीं ये लोग बहुत मेहनतकश होते हैं। इस जनजाति के लोगों की मेहनत और हुनर की चमक विदेशों में भी पहुंच रही है।राजधानी देहरादून के रहने वाले तरुण पंत पिछले पांच वर्ष से थारु जनजाति के लोगों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। उत्तराखंड के खटीमा, सितारगंज जैसे इलाकों में रहने वाले थारू जनजाति के लोग मूंज घास से हैंडलूम तैयार करते हैं। तरुण इन्हें विदेशों में एक्सपोर्ट करते हैं। वह इन आइटम को ऑर्डर पर बनवाकर औनलाइन मंच दे रहे हैं। वहीं वह गांव में जाकर लोगों को ट्रेनिंग देकर उनमें स्किल पैदा करते हैं। उन्होंने इस जनजाति के विकास के लिए गांव-गांव जाकर उन्हें ट्रेनिंग दी और फिर वह आदि मंत्र और एंड ट्राइबल डेवलपमेंट फाउंडेशन नाम से एक संस्था बनाकर उनके साथ काम करने लगे।
विदेशों में हैंडीक्राफ्ट की डिमांड
तरुण ने बोला कि वह पहले नेशनल और इंटरनेशनल कॉरपोरेट्स में काम करते थे। इस दौरान वह यूरोप, एशिया के कई राष्ट्रों में रहे। वहां उन्होंने देखा कि हैंडमेड चीजों को बहुत पसंद किया जाता है। वहां इन चीजों को बनाने वाले ऐसे कम लोग थे। उन्होंने बोला कि जब वह उत्तराखंड आए तो उन्होंने देखा कि कुछ बुजुर्ग औरतें खटीमा और सितारगंज के क्षेत्र में मूंज घास से टोकरी आदि बना रही हैं। सरकारी ट्रेनिंग तो होती थी लेकिन इन्हें बनाने के बाद कहां बेचा जाए, यह लोगों को नहीं पता था। इसीलिए इस कला से लोग दूर हो रहे थे क्योंकि इसमें रोजगार नहीं मिल पा रहा था।
विलुप्त न हो उत्तराखंड की पुरानी कला
तरुण पंत ने बोला कि रोजगार के साधन न होने के कारण लोग इससे दूर होते जा रहे थे, तो उन्हें लगा कि यदि ऐसा ही चला तो उत्तराखंड की पुरानी कला समाप्त हो जाएगी और हम अपने बच्चों को केवल कहानियां ही सुनाया करेंगे कि उत्तराखंड की एक ऐसी कला थी जिससे मूंज घास से हैंडीक्राफ्ट बनाए जाते थे। उन्होंने कहा कि फिर इस कला पर काम करने वाले लोगों से उन्होंने बात की और इसी के साथ इंटरनेशनल कस्टमर को इन चीजों के सैंपल भेजे और लोगों ने इसे काफी अधिक पसंद किया। फिर इसमें नए-नए डिजाइन भी लाने की प्रयास की। उन्होंने कहा कि इस मुहिम से अब तक करीब 3000 कारीगर जुड़ गए हैं। सितारगंज के विधायक और कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा ने इस मुहिम में उनका बहुत योगदान किया।
3 से 7 करोड़ का बिजनेस देती है मूंज घास
उन्होंने कहा कि थारू जनजाति द्वारा तैयार किए गए मूंज घास के हैंडीक्राफ्ट्स न केवल देशभर में भेजे जा रहे हैं, बल्कि यूरोप, यूएस, ऑस्ट्रेलिया और एशिया के कई राष्ट्रों में यह चीजें पहुंचाई जा रही हैं। करीब 37 राष्ट्रों में उत्तराखंड की थारू जनजाति की हैंडमेड चीजों को काफी प्रोत्साहन मिल रहा है और दिन प्रति दिन उनकी डिमांड बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि पहले घास की इस टोकरी को बेचने पर सालभर का टर्नओवर 10 लाख रुपये भी नहीं हो पाता था, लेकिन अब 3 से 7 करोड़ का बिजनेस वॉल्यूम ये घास के बने प्रोडक्ट्स दे रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि उनके साथ उत्तराखंड के 109 स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं, जो देशभर की प्रदर्शनियों में भी नए-नए डिजाइन के यह हैंडीक्राफ्ट लगाते हैं, जिनसे काफी प्रोत्साहन मिलता है।