उत्तराखण्ड

अल्मोड़ा के खत्याड़ी में दिव्यांग बच्चों के लिए एक ऐसा ही स्कूल जहा सिखाया जाता है व्यावसायिक कार्य

 अल्मोड़ा बोला जाता है बच्चों में ईश्वर का रूप होता है पर कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो किसी हालात के कारण से दिव्यांग होते हैं पर इन बच्चों में कुछ न कुछ कला देखने को मिलती है अल्मोड़ा के खत्याड़ी में दिव्यांग बच्चों के लिए एक ऐसा ही विद्यालय है जिसमें बच्चों को उनसे संबंधित पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें व्यावसायिक कार्य भी सिखाया जाता है इन बच्चों को देखकर आप यह नहीं कह सकते कि ये इन बच्चों के द्वारा बनाया गया है

अल्मोड़ा के मंगलदीप विद्या मंदिर की स्थापना मनोरमा जोशी के द्वारा की गई थी वर्ष 1988 में उन्होंने दिव्यांग बच्चों के लिए यहां पर विद्यालय खुला हुआ है वर्तमान में 33 बच्चे यहां पर है उनके मुताबिक उन्हें पढ़ाई और व्यावसायिक कार्य सिखाए जाते हैं जिसमें हैंडलूम, कैंडल, मसले, हर्बल कलर, शगुन के लिफाफे, कैरी बैग, सिलाई, चॉकलेट और आदि क्राफ्ट वर्क यहां पर कराया जाता है और बच्चे भिन्न-भिन्न कार्यों में बेहतर कार्य करते हैं यहां के बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ म्यूजिक और खेलकूद में आगे हैं इसके अतिरिक्त मंगलदीप विद्या मंदिर की प्रिंसिपल और टीचर इन दिव्यांग बच्चों के साथ रहकर उन्हें कुछ न कुछ नया सीखने रहते हैं

यहां सिखाया जाता है व्यावसायिक कार्य
मंगलदीप विद्या मंदिर में पढ़ने वाले सौमित्र कुमार ने बोला कि वह यहां पर तबला बजाना सीखते हैं और टीचर के द्वारा काफी कुछ उन्हें नया सिखाया जाता है उन्हें यहां पर बहुत अच्छा लगता है और उनके काफी दोस्त भी हैंटीचर भूपेंद्र सिंह बिष्ट ने बोला कि यहां पर बच्चों विभिन्न तरह के व्यावसायिक कार्य सिखाए जाते हैं बच्चों के द्वारा हैंडलूम, मोमबत्ती बनाना, हर्बल कलर, चॉकलेट, शगुन के लिफाफे और क्राफ्ट वर्क आदि उन्हें सिखाया जाता है काफी बच्चे सक्रिय हैं जो इन सभी चीजों में एक्सपर्ट हो गए हैं यहां पर बनने वाले प्रोडक्ट को लोग काफी पसंद भी करते हैं और जो भी यहां पर आता है वह इनको लेकर जाते हैं म्यूजिक टीचर माया ने बोला कि यहां पर पढ़ने वाले बच्चे काफी सक्रिय हैं बच्चे यहां पर अन्य एक्टिविटीज के साथ-साथ गाने और डांस में रुचि रखते हैं बच्चे यहां पर आते हैं तो सभी टीचर को अच्छा लगता है और उन्हें प्रत्येक दिन कुछ न कुछ नया सिखाया जाता है

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