विवाहित महिलाओं के लिए भिटौली त्यौहार होता है सबसे खास

विवाहित महिलाओं के लिए भिटौली त्यौहार होता है सबसे खास

पिथौरागढ़ पहाड़ों में गर्मियों की आरंभ के साथ ही प्रारम्भ होता है चैत्र महीना और यह महीना पहाड़ की विवाहित स्त्रियों के लिए वर्ष भर में सबसे खास है, क्योंकि यहीं वह समय है जब पहाड़ में रहने वाली स्त्रियों के मायके वाले अपनी बेटी से भेंट करने के लिए उसके ससुराल जाते हैं इस भेंट करने की परंपरा को कुमाऊं में भिटौली पर्व के नाम से बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है

पुराने समय में पहाड़ में कम उम्र में ही लड़कियों की विवाह हो जाया करती थी और ससुराल की अनेक जिम्मेदारियों का भार भी उन्हीं के ऊपर आ जाता था, जिससे मायके वालों को अपनी बेटी की चिंता सताती रहती थी ससुराल और मायके की लंबी पैदल दूरी, संचार के साधन ना होना और ऊपर से काम का बोझ इन सब चीजों के कारण विवाहित स्त्री का अपने मायके जाना काफी कठिनाई होता था

साल भर में एक ही महीना ऐसा होता था, जब मायके वाले अपनी बहन और बेटी का हालचाल जानने उसके ससुराल पहुंचते और साथ में अपनी बेटी के लिए उपहार स्वरूप कपड़े, मिठाइयां, अनाज आदि लाते थे

साल भर में चैत्र महीना ही ऐसा होता है, जब पहाड़ की स्त्रियों को थोड़ा काम से राहत मिलती है और वह अपने मायके वालों से आराम से मिल सकती हैं इस दिन पहाड़ी पकवान घरों में बनाये जाते हैं, जो बहुत ही खास होते हैं जिनमें पूरी, खीर, चावल के आटे से बनने वाले व्यंजन, मास की दाल के पकवान, खजूर जिनके स्वाद के बिना यह त्यौहार अधूरा ही लगता है

कुमाऊंनी संस्कृति के जानकार पंडित अक्षत शर्मा ने कुमाऊं की संस्कृति में भिटौली पर्व का महत्व बताया है उन्होंने बोला कि पहाड़ में रहने वाली स्त्रियों का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहता है कम उम्र से ही पहाड़ जैसी जिम्मेदारियां उठाते हुए हर कठिनाइयों को सहते हुए वे इन्तजार में रहती हैं कि कब चैत्र का महीना लगे और वह कुछ आराम के पल अपने मायके वालों के साथ बिता सकें

मैदानी इलाकों में अब भले ही भिटौली की परंपरा आधुनिकता के दौर में सिमट रही हो लेकिन पहाड़ में आज भी यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है