पिथौरागढ़ : मुनस्यारी और धारचूला में बाबू संभालेंगे प्रधानाचार्य पद
पिथौरागढ़। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में सरकारी विद्यालयों की हालत समय के साथ खस्ताहाल होते जा रही है। शिक्षकों को कमी से लगातार सरकारी विद्यालयों से जनता का मोहभंग हो रहा है, जिसका असर यह हुआ है कि पहाड़ के अधिकतर दूरदराज वाले इलाकों में विद्यार्थी संख्या 10 से कम और कई स्थान तो शून्य हो गई है। शिक्षा महकमा सरकारी विद्यालयों की स्थिति को सुधारने के लिए अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बना सका है। हालात तो यह है कि विद्यालय में सबसे जरूरी पद प्रिंसिपल का होता है, जिसका पिथौरागढ़ जिले में काफी टोटा है। यहां 200 से अधिक विद्यालयों में मात्र 13 प्रिंसिपल ही तैनात हैं। विभाग अन्य विद्यालयों में प्रभारी प्रिंसिपल के भरोसे अभी तक शिक्षण प्रक्रिया चला रहा था लेकिन शिक्षकों के प्रभारी पद छोड़ देने के घोषणा के बाद एक बार फिर जिले के विद्यालय अनाथ हो गए। इस कमी को पूरा करने के लिए अब बाबूओं को इसकी जिम्मेदारी देने का निर्णय किया गया है।
मुनस्यारी और धारचूला में बाबू संभालेंगे प्रिंसिपल पद
पिथौरागढ़ के धारचूला और मुनस्यारी विकासखंड में खण्ड विकास अधिकारी ने बाबूओं को प्रिंसिपल का प्रभार सौंपा है, जिससे विद्यालयों की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाया जा सके। पिथौरागढ़ के शिक्षा अधिकारी हवलदार प्रसाद ने जानकारी देते हुए कहा कि जिले में प्रिंसिपल के पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं। शिक्षकों के प्रभारी प्रिंसिपल के पद छोड़ने के बाद एक बार फिर विभाग को काम सुचारू रखने में कठिनाई आ रही है। उन्होंने बोला कि खंड शिक्षा अधिकारी ने प्रबंध बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया है। इस संबंध में विभागीय आदेश उनकी तरफ से जारी नहीं हुआ है।
मिनिस्ट्रियल एसोसिएशन में नाराजगी
मिनिस्ट्रियल स्टाफ को प्रिंसिपल की जिम्मेदारी दिए जाने से अजीब से हालात पैदा हो रहे हैं। आलम यह है कि मिनिस्ट्रियल फेडरेशन ने भी अब विभाग के इस कदम की खिलाफत प्रारम्भ कर दी है। मिनिस्ट्रियल फेडरेशन के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राणा ने इस निर्णय का विरोध करते हुए बोला कि बाबूओं को प्रिंसिपल का काम देना नियमों के विरुद्ध तो है ही, साथ ही इस कदम से मिनिस्ट्रियल स्टाफ पर काम का दबाव भी बढ़ रहा है।