मां धारी देवी 9 साल बाद अपने मंदिर में होंगी विराजमान

उत्तराखंड में मां धारी देवी की मूल प्रतिमा को 9 वर्ष बाद अपने मूल जगह में रखने की तारीख घोषित कर दी गई है। 2013 की विशाल त्रासदी से टीक पहले माता की प्रतिमा को अस्थायी जगह पर रखा गया था लेकिन अब एक लंबे अरसे के बाद माता अपने मूल जगह में प्रवेश करने जा रही हैं। क्षेत्रीय पुजारी और न्यास के सचिव जगदंबा पाण्डे ने बताया कि 28 जनवरी की सुबह शुभ मुहूर्त में धारी देवी, भैरवनाथ और नंदी की प्रतिमाएं अस्थायी परिसर से नवनिर्मित मंदिर परिसर में स्थापित कर दी जाएंगी और सुबह 9:30 बजे मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। इसकी सभी तैयारियां लगभग पूरी कर ली गई हैं।
सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यहां भक्त हर रोज दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं। जहां प्रत्येक दिन माता को भिन्न भिन्न रूपों में भक्त देखते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में उपस्थित माता धारी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह कन्या रूप में दिखती है, दिन में महिला और शाम को एक बूढ़ी स्त्री की तरह नजर आती है। माता को लेकर मान्यता है कि वह चारधाम की रक्षा करती हैं और मां को पहाड़ों की रक्षक देवी भी माना जाता है।
2013 की केदारनाथ आपदा से क्या है मां धारी देवी का संबंध?
मां धारी देवी का मंदिर वाला क्षेत्र श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के बाद डूब रहा था। जिसके बाद परियोजना संचालित करने वाली कंपनी ने पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण करवाया था और देवी की मूर्ति को जलस्तर को देखते हुए उनके मूल जगह से हटाया गया था। माना जाता है कि इसकी वजह से उस वर्ष केदारनाथ आपदा आई थी, जिसमें सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे। बोला जाता है कि माता की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके महज कुछ ही घंटों बाद केदारघाटी में विशाल आपदा आ गई थी।
देवी काली को समर्पित है मंदिर
देवी काली को समर्पित यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीय है। एक पौराणिक कथन के अनुसार, एक बार भयंकर बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनी और देवी ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। हर वर्ष नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर की विशेष पूजा की जाती है। देवी काली का आशीर्वाद पाने के लिए दूर और निकट के लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी उपस्थित है।