त्रिभुवन गिरी महाराज ने कुमाऊंनी और हिंदी साहित्य में लिखी 8 रचनाएं
अल्मोड़ा। उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में कई ऐसे वरिष्ठ कलाकार हैं जो अपनी ख्याति की वजह से अल्मोड़ा का नाम रोशन कर रहे हैं। आज हम आपको ऐसे संन्यासी के बारे में बता रहे हैं जो 8 से अधिक किताबें लिख चुके हैं। इनका नाम है त्रिभुवन गिरी महाराज। त्रिभुवन गिरी महाराज ने कुमाऊंनी और हिंदी साहित्य में कई रचनाएं लिखी हैं, 78 वर्ष की उम्र में वह अल्मोड़ा की विश्व मशहूर रामलीला में पाठ खेलते हुए नजर आते हैं।
लोकल 18 से खास वार्ता करते हुए त्रिभुवन गिरी महाराज ने कहा कि उन्हें बचपन से ही लिखने का शौक था। आगे उन्होंने कहा कि हालात आदमी से हर चीज करा ही लेती है। 1960-70 की दशक में चीन के हिंदुस्तान पर आक्रमण करने की वजह से कई कवि पैदा हुए, उनमें से मैं भी एक था। तबसे लेकर वह आज तक लिखते हुए आ रहे हैं। उनका अधिक फोकस कुमाऊंनी भाषा पर रहता है। त्रिभुवन गिरी ने कई कुमाऊंनी किताबें, कई नाटक, कहानी और कई फिल्मों की कहानियां भी लिखी हैं। त्रिभुवन गिरी महाराज के मुताबिक जब तक वह जिंदा है तब तक वह लिखते ही रहेंगे।
“बांजि कुड़िक पहरू” पर बन रही फिल्म
रामलीला और क्लब की बैठकी होली और पुरवासी मीडिया के संपादन के अतिरिक्त भी वो स्वयं कुमाऊंनी भाषा के लेखक के रूप में स्थापित हैं और यथासंभव कुमाऊंनी भाषा के विस्तार की बात करते रहते हैं। त्रिभुवन गिरि ने 8 पुस्तकें लिखी हैं जिसमें कहानी, उपन्यास, महाकाव्य नाटक, खंडकाव्य और कहानी शामिल है। साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की लोक गाथा के ऊपर भी उन्होंने लिखा है। उन्होंने “बांजि कुड़िक पहरू” जो एक पलायन से संबंधित पुस्तक भी लिखी है। उनकी लिखी गई पुस्तकों से लोग नाटकों का मंचन करते हैं। उन्होंने कहा “बांजि कुड़िक पहरू” पर जल्द ही फिल्म आने वाली है।
युवा पीढ़ी भूल रही अपनी संस्कृति
त्रिभुवन गिरी महाराज ने कहा कि आजकल की युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और अपने त्योहारों को कहीं भूलते ही जा रही है। जिससे आने वाले समय में लोग अपने त्योहारों को भूल जाएंगे। उनका मानना है कि इन सब में सबसे बड़ा गुनाह अभिभावकों का है।क्योंकि वह अपने बच्चों को अपनी संस्कृति और अपने त्योहारों के बारे में बताने में असफल हो रहे हैं।