उत्तराखण्ड

चीर बंधन के बाद पहाड़ों में चढ़ा होली का रंग, जानें इस परंपरा के बारे में…

उत्तराखंड के कुमाऊं की होली (Holi 2024) में चीर या फिर निशान बंधन का अपना विशेष महत्व है एकादशी के दिन से चीर बंधन किया जाता है चीड़ के पेड़ को पंया वृक्ष भी बोला जाता है ईश्वर के रूप में पंया की पूजा की जाती है चीड़ के नीचे लोग पूजा-अर्चना करते हैं और सुबह-शाम दीया भी जलाते हैं कई स्थान लोग इस पेड़ के नीचे होली गायन भी करते हैं

होली के अवसर पर चीड़ के पेड़ को गली मोहल्ले में लगाया जाता है इसके अतिरिक्त लोग इसकी टहनी को घर में भी लेकर जाते हैं, जिसमें लोगों के द्वारा विभिन्न ढंग के रंग बिरंगे कपड़े के टुकड़े भी लगाए जाते हैं होलिका दहन में इसका विशेष महत्व है भिन्न-भिन्न स्थान लगाए गए चीड़ के पेड़ के नीचे रंगोली बनाई जाती है और सजाया जाता है, जिन्हें लोग ईश्वर की तरह पूजते हैं चीर बंधन के बाद खड़ी होली का गायन घर-घर और मोहल्लों में जाकर किया जाता है

सदियों पुरानी है चीर बंधन की परंपरा
धार्मिक मामलों के जानकार अल्मोड़ा निवासी त्रिभुवन गिरी महाराज ने मीडिया को कहा कि होली पर सालों से चीर बंधन की परंपरा चली हुई आ रही है गली-मोहल्ले में जो जगह चिन्हित किए जाते हैं, वहां पर चीड़ के पेड़ को लगाया जाता है और सुबह और शाम लोगों द्वारा पूजा-अर्चना और दीया जलाया जाता है

औषधीय गुणों से भरपूर चीर का पेड़
त्रिभुवन गिरी महाराज ने आगे बोला कि इसके अतिरिक्त कई स्थान लोग चीड़ के नीचे खड़ी होली का गायन भी करते हैं चीड़ के पेड़ को पंया का पेड़ भी बोला जाता है ईश्वर के रूप में लोग इसकी पूजा अर्चना भी करते हैं और इसमें कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं मोहल्ले में लगाई जाने वाली चीर पर लोग रंग-बिरंगे कपड़े के टुकड़े भी लगाते हैं और इसके आसपास लोगों के द्वारा खूबसूरत रंगोली भी बनाई जाती है

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