उत्तराखण्ड

कभी बासमती की खुशबू से महकता था देहरादून, आज दूसरे राज्यों से मंगवा रहा है चावल

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून अपनी खूबसूरत वादियों के साथ कभी अपने बासमती चावल के लिए भी प्रसिद्ध थी. यहां का बासमती चावल विदेशों तक जाता था. यहां बहुत संख्या में इसकी पैदावार होती थी, इसलिए यहां इसकी खुशबू महकती थी, लेकिन आज इसकी खेती सिमटने के कारण देहरादून के बासमती चावल मानो विलुप्त हो गए हो. विदेश में बासमती चावल भेजने वाला देहरादून अब अपने ही बासमती चावल से वंचित होने लगा है और दूसरे राज्यों से बासमती मंगवा रहा है.

देहरादून के आढ़त बाजार के व्यापारी अतुल बताते हैं कि वर्ष 1960 में उनके पिता ने दुकान प्रारम्भ की थी और उन्हें भी यहां क़ई दशक हो गए हैं. उन्होंने क़ई तब्दीलियां देखी हैं. देहरादून के कई इलाकों में बासमती चावल की खेती हुआ करती थी. वहां से यदि कोई गुजरता था, तो रास्ते में बासमती की महक लोगों के दिल में उतर जाया करती थी. लेकिन आज न वो खेत रहे और न ही देहरादून का प्रसिद्ध बासमती चावल. राजधानी में भवन निर्माणों के चलते खेती की जमीन बची नहीं है. अब एक आधी स्थान पर खेती होती भी है, तो वह केवल अपने लिए ही प्रयोग करते हैं न कि बेचने के लिए करते हैं. वह उधम सिंह नगर जिले के रुद्रपुर और हरियाणा से बासमती चावल मंगवाते हैं. उनका बोलना है कि देहरादून की बासमती के कद्रदान नहीं रहे हैं. नयी पीढ़ी को तो देहरादून की बासमती का स्वाद मिल ही नहीं पाया. उनका बोलना है कि उसके दाने अधिक लंबे नहीं होते थे बल्कि मीठे हुआ करते थे और ये खुशबूदार होते थे, लेकिन आज हरियाणा और पंजाब से आने वाला बासमती चावल लंबा है और लोग उसे ही शौक से खाने लगे हैं.

अफगान शासक की देन था देहरादून का बासमती चावल

आज हिंदुस्तान का बासमती चावल विदेशों में भी भेजा जाता है. लेकिन राष्ट्र को बासमती देने वाला देहरादून ही कहा जाता है, जहां अफगानिस्तान के शासक बासमती लाए थे. दरअसल, वर्ष 1939 से 1942 के दौरान एंग्लो-अफगान वॉर हुआ, जिसमें अंग्रेजी हुकूमत ने अफगानिस्तान के शासकों को हरा दिया और अफगान शासक दोस्त खान मोहम्मद को बंदी बनाकर देहरादून लाया गया. वे अपनी परिवार के साथ कभी देहरादून तो कभी मसूरी रहा करते थे. दोस्त खान मोहम्मद को बासमती चावल बहुत पसंद था लेकिन देहरादून में उन्हें वह चावल नहीं मिला, इसलिए उन्होंने अफगानिस्तान से बासमती का धान मंगवाकर यहां खेती करवाई. धीरे-धीरे देहरादून के ज्यादातर इलाकों में बासमती की खेती होने लगी और देहरादून का बासमती चावल पूरे राष्ट्र से होते हुए विदेशों तक में पहुंच गया.

बासमती की खेती में 5 वर्षों में 62 फीसद गिरावट

हाल ही में उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की एक रिपोर्ट से जानकारी मिली है कि वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक आते-आते देहरादून के प्रसिद्ध बासमती चावल की खेती में 62 फीसद की गिरावट आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 में करीब 680 किसानों ने 410.1 हेक्टेयर भूमि पर बासमती की खेती की थी जबकि 2022 में केवल 157.8 हेक्टेयर भूमि पर 517 किसानों ने बासमती की खेती की थी. इस तरह अपने अलग ही स्वाद और सुगंध की पहचान रखने वाला देहरादून का बासमती चावल गुमनाम होने को चला है. गवर्नमेंट को आवश्यकता है कि इसके संरक्षण के लिए कोई अथक कोशिश करे, अन्यथा देहरादून के बासमती चावल का केवल नाम ही रह जाएगा.

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