इस मंदिर में द्रोणाचार्य को भगवान शिव ने दिया धनुर्विद्या का ज्ञान
देहरादून में ईश्वर शिव का एक मशहूर मंदिर स्थित है। इस मंदिर का नाम टपकेश्वर है। इस मंदिर की स्थापना के बारे में बड़ी ही रोचक मान्यता है। मान्यता है कि यहां गुरू द्रोणाचार्य ने ईश्वर से शिव से धनुर्विधा का ज्ञान सीखा। जिसके बाद इस मंदिर को बनवाया गया। इस मंदिर में देशभर से श्रद्धालु ईश्वर शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से सभी प्रकार की इच्छा पूर्ण हो जाती है
लोक मान्यताओं के मुताबिक महाभारत काल के कौरवों- पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य महाभारत युद्ध से पहले क़ई स्थान घूमते हुए हिमालय पहुंचे। उन्होंने एक ऋषिराज से पूछा कि उन्हें धनुर्विद्या का ज्ञान कहाँ से प्राप्त होगा? मुनि ने कहा कि गंगा- युमना की जलधारा के बीच बहने वाली तमसा नदी के निकट स्थित एक गुफा है, जहां स्वयंभू शिवलिंग स्थापित था। उसी रास्ते पर गुरु द्रोण चल पड़े। उन्होंने वहां तपस्या प्रारम्भ कर दी। ईश्वर भोलेनाथ से उन्होंने धनुर्विद्या का ज्ञान मांगा। कहा जाता है कि ईश्वर शिव प्रतिदिन प्रकट होकर उन्हें धनुर्विद्या का पाठ पढ़ाते थे। आगे चलकर यहां एक मंदिर बनवाया गया जिसे देहरादून के प्रसिद्ध मंदिर टपकेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह देहरादून के गढ़ी कैंट में स्थित है।
गुरु द्रोण ने की थी 12 सालों तक तपस्या
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के गढ़ी कैंट में स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर के महंत हिंदुस्तान गिरी जी महाराज ने मीडिया को जानकारी देते हुए बोला कि देहरादून समेत उत्तराखंड में देवी देवता, ऋषि- मुनि तप करने के लिए आते थे। गुरु द्रोणाचार्य ने भी यहां क़ई वर्षों तक तपस्या की थी, इसलिए ही देहरादून का प्राचीन नाम द्रोणनगरी बोला जाता है। वहीं उन्होंने महाभारत की जंग से पहले अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान खोजने की यात्रा प्रारम्भ की थी। उन्हें ऋषिराज ने तमसा नदी के निकट स्थित गुफा के बारे में बताया, जहां उन्होंने अपनी पत्नी कृपि के साथ तपस्या की। करीब 12 वर्षों तक महादेव की घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर ईश्वर शिव ने उनसे बोला कि द्रोण क्या वरदान मांगना चाहते हो, मांगो। गुरु द्रोण ने धनुर्विद्या का ज्ञान मांगा। ईश्वर शिव प्रतिदिन मध्यरात्रि में प्रकट होकर उन्हें अस्त्र-शस्त्र का पाठ पढ़ाते थे। जो बाद में चलकर महाभारत में काम आया। महंत गिरी जी महाराज ने कहा कि टपकेश्वर महादेव मंदिर की गुफा में स्थित स्वयंभू शिवलिंग जयतो जायश्वर के नाम से जाना जाता है। यहां ईश्वर शिव ने प्रसन्न होकर गुरु द्रोणाचार्य को पुत्ररत्न का आशीर्वाद भी दिया था, जो अश्वत्थामा के नाम से जाने गए। अपने पिता की तरह अश्वत्थामा ने भी यहां क़ई सालों तक तपस्या की थी।
कहां है टपकेश्वर महादेव मंदिर?
अगर आप भी देहरादून के ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव के मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं, तो आप घंटाघर से गड़ी कैंट पहुंचें, जहां यह मंदिर स्थित है।