ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार हुआ पीलीभीत का सदियों पुराना यह मंदिर
पीलीभीत जिला वैसे तो प्रमुख रूप से इको टूरिज्म के लिहाज से जाना जाता है लेकिन अब यह जिला धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में लगातार अपनी पहचान बना रहा है। एक तरफ जहां गोमती उद्गम स्थल पर विशेष ध्यान दिया गया। वहीं अब पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों में स्थित इलाबांस देवल मंदिर को भी पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संरक्षित सूची में शामिल कर लिया गया है। वहीं इसको लेकर अब जमीनी कवायद भी प्रारम्भ कर दी गई है।
दरअसल, पीलीभीत जिले के बीसलपुर क्षेत्र में पीलीभीत टाइगर रिजर्व की दियुरिया रेंज में स्थित इलाबांस देवल मंदिर काफी अधिक प्राचीन और ऐतिहासिक है। विशेष तौर पर यह मंदिर लोध राजपूत समाज के लोगों के मेले के लिए सबसे अधिक जरूरी है। हर वर्ष यहां दो बार बड़े मेले का आयोजन होता है। पहला मेला हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह में लगता है। वहीं दूसरा मेला आषाढ़ मास में लगाया जाता है। इस दौरान पीलीभीत के साथ ही साथ बरेली समेत कई जिलों से भक्त यहां आते हैं।
11वीं सदी का है मंदिर
लंबे अरसे तक इलाबांस देवल मंदिर को सिर्फ़ मेले के लिहाज से ही जरूरी माना जाता था। लेकिन बीते वर्षों में मंदिर में लगे शिलापट से इसके इतिहास का खुलासा हुआ। दरअसल, पीलीभीत में ही रहने वाले एक्टिविस्ट का कुछ सालों पूर्व यहां लगने वाले मेले में जाना हुआ। जहां उनकी नजर मंदिर पर लगे शिलापट पर पड़ी। उन्हें शिलापट की लिपि सामान्य से कुछ अलग लगी ऐसे में उन्होंने इस पर अपने स्तर पर अध्ययन करना प्रारम्भ किया। जिसमे उन्हें इससे जुड़े कुछ ऐसे साक्ष्य मिले जिसमें मंदिर का इतिहास 11वीं सदी के कालांतर का कहा गया। एपिग्राफिया इंडिका के भी इस मंदिर का जिक्र किया गया है।
खुदाई में मिल चुकी हैं दुर्लभ मूर्तियां
दरअसल, मंदिर के आसपास घनी जनसंख्या बसी हुई है। ऐसे में बीते दशकों में हुई खुदाई के दौरान ग्रामीणों को कई दुर्लभ मूर्तियां भी मिली है। वहीं दर्जनों पुरानी और दुर्लभ मूर्तियां मंदिर परिसर में भी उपस्थित हैं।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग संजोएगा धरोहर
शहर के निवासी अधिवक्ता शिवम कश्यप शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर प्रयासरत रहते है। इलाबांस मन्दिर को लेकर भी लगातार शिवम साल 2018 से पत्राचार में जुटे हुए थे। उनके कोशिश को अब कहीं जाकर कामयाबी मिल पाई है। हाल ही में राज्य पुरातत्व विभाग की ओर से एक पत्र द्वारा इस धरोहर को संरक्षित सूची में शामिल होने की जानकारी दी गई है। वहीं जमीनी स्तर पर जिला प्रशासन से इस धरोहर को लेकर जानकारी मांगी गई है। ऐसे में आशा जताई जा रही है कि यह धरोहर अब जल्द ही इतिहास के क्षेत्र में भी पहचान दिलाएगी