IPM तरीके से खेती करने पर ढाई से 3 लाख रुपये प्रतिवर्ष हो रहा मुनाफा
बाराबंकी: वैसे ज्यादातर किसान केवल गेहूं,धान, मेंथा और सरसों की खेती करते हैं। लेकिन, अब जिले के किसान इन सबसे हटकर बागवानी और साग-सब्जियों की खेती में दिलचस्पी ले रहे हैं। इससे यहां के किसानों को पहले से अधिक लाभ हो रहा है। साथ ही उनको प्रत्येक दिन हरी सब्जियां भी खाने को मिलती है।
जिले के किसान IPM (एकीकृत कीट प्रबंधन) तकनीक से लौकी, करेले की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें कम लागत में अधिक फायदा हो रहा है। बाराबंकी जिले के सदीपुर गांव के रहने वाले किसान चमन ने डेढ़ बीघे से लौकी- करेले की खेती की आरंभ की। इसमें उन्हें अच्छा फायदा हुआ। आज वह करीब एक एकड़ से अधिक की जमीन पर लौकी- करेले की खेती कर रहे हैं। इस खेती से लगभग उन्हें ढाई से 3 लाख रुपये प्रतिवर्ष फायदा हो रहा है।
15 हजार की लागत में लाखों का मुनाफा
सब्जियों की खेती कर रहे युवा किसान चमन ने कहा है पहले वह आलू, धान, गेंहू आदि की खेती करता था। इनमें उसे कोई खास फायदा नहीं हो रहा था। फिर उसने डेढ़ बीघे में लौकी- करेले की खेती की आरंभ की। अब उसे अच्छा खासा फायदा हो रहा है। आज करीब एक एकड़ से अधिक में आईपीएम विधि से लौकी- करेले की खेती कर रहे हैं। करीब एक बीघे में 15 हजार रुपये की लागत आती है। क्योंकि इसमें बीज, बांस, डोरी, पन्नी पानी लेबर आदि का खर्च लगता है। वहीं, फायदा करीब एक फसल पर ढाई से तीन लाख रुपये तक हो जाता है।
आईपीएम विधि से फसल का उत्पादन
इस खेती में वह आईपीएम विधि के प्रयोग से फसलों को नष्ट करने वाले कीटों को नियंत्रण करने के लिए पीले, नीले, लाल और स्टिकी ट्रैप, लाइट ट्रैप व् स्पाइन बुश नियंत्रण अपने खेतों में लगा देते है।इस स्टिक पर घातक कीड़े ट्रैप हो जाते हैं, जिससे उनकी फसलों को हानि नहीं पहुंच पाता। इसको लगाने से कीटनाशक दवाइयां नहीं डालनी पड़ती और सब्जियों का उत्पादन सही और पौष्टिक होता है।
कैसे करें इस विधि का इस्तेमाल?
लौकी और करेले खेती करना बहुत ही सरल है। सबसे पहले खेत की दो बार जुताई करें। इसके बाद पूरे खेत में मेड़ बनाते हैं। फिर पन्नी बिछा देते हैं। इसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर पन्नी में छेद कर लौकी करेले के बीज को लगाया जाता है। जब पेड़ थोड़ा बड़ा होने लगता है। तब इसकी सिंचाई करते हैं। इसके बाद खेत में बांस का स्टेचर बनाते हैं, जिस पर करेले के पौधे को डोरी के सहारे बांध दिया जाता है। इससे पौधा स्ट्रक्चर पर फैल जाता है। जब फसल तैयार होती है, तो उसे तोड़ने में सरलता होती है। वहीं, पौधा लगाने के महज दो महीने बाद फसल निकलना प्रारम्भ हो जाती है। इसे प्रत्येक दिन तोड़कर बाजारों में बेचा जा सकता है। यह फसल करीब दो से ढाई महीने तक चलती है।