उत्तर प्रदेश

इस दरगाह पर सैकड़ों की तादात में कबूतरों का बसेरा

 आगरा आगरा हींग की मंडी बाजार थाना कोतवाली के नजदीक ही सूफी संत हजरत पीर खलील रहमतुल्लाह हाजी बाबा की दरगाह स्थित है इस दरगाह को लोग सैकड़ों वर्षों से “कबूतर वाली दरगाह” के नाम से भी जानते हैं इस दरगाह पर सैकड़ों की तादात में कबूतरों का बसेरा है, जिन्हें दिन-रात यहां पर रहने की अनुमति होती है

हर शाम हिंदू और मुसलमान समुदाय के लोग इन कबूतरों को दाना चुगाने के लिए दरगाह पहुंचते हैं, यह मान्यता है की यह क्रिया दाना चुगाने के साथ-साथ मन्नतें मांगने के रूप में भी की जाती है साथ ही, बीमार कबूतरों को भी लोग इस दरगाह पर छोड़ जाते हैं, जिन्हें 1 से 2 हफ्तों में स्वास्थ्य वापसी हो जाती है यह कबूतर सैकड़ों वर्षों से इसी दरगाह पर बसेरा कर रहे हैं और यहां से ही अपने आहार के लिए दाना चुगते  हैं कबूतरों की इस दरगाह से किसी अन्य जगह पर जाने की प्रवृत्ति नहीं है

स्थानीय लोग मांगते हैं मन्नत
स्थानीय निवासी नदीम का बोलना है कि वे हर शाम को कबूतर वाली दरगाह पर जाते हैं यह दरगाह मुग़लों के शासनकाल से बनी हुई है और इसे पीर अली हाजी बाबा की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है आमतौर पर यह दरगाह “कबूतर वाली दरगाह” के नाम से मशहूर है बाद में जब अंग्रेज राष्ट्र में आए तो उन्होंने इस दरगाह का अभिवृत्ति कराई थी इसके अंदर छँटी के बाबा की दरगाह है और उसके ऊपर कई सैकड़ों के समूह में कबूतर बसेरा करते हैं 24 घंटे के दौरान, कबूतर इस दरगाह के ऊपर रहकर अपने आहार के दाने चुगते हैं शहर के अतिरिक्त उड़कर लौटने के बाद भी, कबूतर इसी दरगाह पर आकर ठहरते हैं

सौहार्द का प्रतीक मानी जाती है दरगाह
स्थानीय निवासी ईश्वर दास गुप्ता का बोलना है कि सैकड़ों वर्षों से हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय इस दरगाह पर कबूतरों के दाने चुगने और मन्नतें मांगने के लिए आते हैं यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक भी है यह गलत नहीं है कि सिर्फ़ मुसलमान समुदाय के लोग ही दरगाह पर माथा टेकते हैं, बल्कि कई हिंदू भी हर शाम को इन कबूतरों को दाने देने के लिए यहां आते हैं 24 घंटे के दौरान, कबूतर इस दरगाह पर निवास करते हैं और यहाँ से अपने आहार के दाने चुगते हैं इसके साथ ही, माना जाता है कि लोग बीमार कबूतरों को इस दरगाह पर छोड़कर जाते है

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