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दिल्ली मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों को पिछले कुछ सालों से नहीं मिल रही थी तनख्वाह

नई दिल्ली, . वक्फ बोर्ड के भीतर दिल्ली में मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों की तनख्वाह पिछले कुछ वर्षों से रुकी हुई थी. लेकिन 5-5 महीनों की तीन किश्त में कुछ इमामों की तनख्वाह को जारी किया गया. हालांकि अभी भी इनको कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसको लेकर इमाम मुफ्ती मोहम्मद कासिम और इमाम मोहम्मद अरशद नदवी ने आईएएनएस से खास वार्ता की और अपनी समस्याओं को सामने रखा.

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एंग्लो अरेबिक विद्यालय अजमेरी गेट के इमाम मुफ्ती मोहम्मद कासिम ने बताया, ‘ये तनख्वाह 2022 के मई महीने से रुकी हुई है. इसमें इमाम और मुअज्जिन शामिल हैं. जिनकी तादाद 250 से अधिक है. काफी मेहनत के बाद वक्फ बोर्ड की तरफ से एक सर्कुलर आता है, जिसमें बोला जाता है कि जिस तरह पहले वक्फ बोर्ड 207 इमामों को और 73 मुअज्जिन को पैसा दिया जाता था उसी तरह 185 इमामों और 59 मुअज्जिन को पैसे दिए जाएंगे. करीब 36 को गैरकानूनी कहा गया और उनको वेतन देने से इंकार किया गया. ये 36 वक्फ की मस्जिदों में आज भी काम कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा सैलरी नहीं देने की कठिनाई 2018 के बाद से बनी है. पहले इमामों को जो सैलरी दी जाती थी, वो वक्फ की अपनी आमदनी से दी जाती थी, लेकिन 2018 के बाद वक्फ बोर्ड ने एक निर्णय किया और इमामों को ग्रांट पर डाल दिया और यह बोला कि जब ग्रांट पास होगा तो आपको बढ़ कर सैलरी मिलेगी. उस समय इस पर उचित कार्रवाई नहीं हुई, जिसके कारण ऐसी स्थिति बनी हुई है.

इमामदारों की रुकी हुई सैलरी को लेकर एक अन्य इमाम मोहम्मद अरशद वारसी ने आईएएनएस को बताया, ये मसले काफी दिनों से रुके हुए हैं. इमाम हमेशा मजलूम नहीं होता है. ये एक ऐसा तबका है, जिसे आमतौर पर नजरअंदाज किया गया है. इस मसले को कोई नहीं उठाता है.

उन्होंने आगे बताया, करीब 2-3 वर्षों से सैलरी को लेकर परेशानी चल रही है. अभी हम लोगों की सैलरी 5-5 महीने की तीन किश्त में मिली है, जिसमें से बहुत सारे लोगों को केवल दो किस्त मिली है. अभी हम लोगों की सैलरी करीब 13-14 महीनों की रुकी हुई है और कई लोगों की 18-19 महीने की रुकी हुई है.

फतेहपुरी के अंदर आलिया मदरसा चलता है, वहां पर दो-तीन वर्षों से सैलरी रुकी हुई है. इसमें कई लोग ऐसे हैं, जिनका मृत्यु हो चुका है. अब तो बोर्ड के लोगों की भी सैलरी नहीं मिल पा रही है. वो स्वयं इसको लेकर परेशान रहते हैं.

इमामों और मुअज्जिन का समस्या अलग है. इनकी न तो कोई बात करता है, न ही इनके मसले कोई उठाने का काम करता है. इमाम स्वयं अपनी प्रयास करते हैं. इस परेशानी को लेकर हमने आतिशी जी से बात की, लेकिन उन्होंने भी कोई साफ उत्तर नहीं दिया और बोला कि हम इस पर गौर कर रहे हैं.

मुझे समझ में नहीं आता कि दिल्ली गवर्नमेंट के भीतर बहुत सारी संस्थाएं हैं, लेकिन उनका वेतन कभी नहीं रुकता. आखिर मस्जिद के इमाम और मुअज्जिन की ही सैलरी क्यों रोकी जाती है. जबकि हम लोगों की सैलरी बहुत ही हल्की है. जिसमें एक परिवार ठीक ढंग से नहीं चल सकता. सुनने में ये भी आ रहा है कि एक वर्ष की सैलरी हम लोगों को अब नहीं मिलेगी.

उन्होंने आगे कहा कि करीब पांच वर्ष पहले इमामों की सैलरी बढ़ाई गई थी. पहले जहां सैलरी 10,000 थी, उसको आगे बढ़ाकर 18,000 कर दी गई. लेकिन महंगाई के हिसाब से ये बहुत कम है.

इमाम ने आगे कहा कि इस सिलसिले में दिल्ली एलजी से भी मुलाकात हुई थी. एलजी साहब ने हमारी बात को गौर से सुना, जिसका नतीजा रहा कि पांच-पांच महीनों की सैलरी जारी करने का आदेश दिया था. हमसे उन्होंने 15 दिन का वादा लिया था कि और तय समय में हमारी सैलरी के मसले पूरे हुए.

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