गलता पीठ के पूर्व महंत अवधेशाचार्य को सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली राहत
गलता पीठ के पूर्व महंत अवधेशाचार्य को उच्चतम न्यायालय से भी राहत नहीं मिली है. उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उन्हें गद्दी से हटाने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. अवधेशाचार्य ने राजस्थान उच्च न्यायालय के 2 अगस्त के उस आदेश के विरुद्ध अपील
सुप्रीम न्यायालय में अपीलकर्ता की याचिका का विरोध करते हुए राज्य गवर्नमेंट की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने बोला कि गवर्नमेंट के देवस्थान विभाग ने पहले ही मंदिर के प्रशासन के जिम्मेदारी संभाली है. उन्होंने बल देकर बोला कि राज्य गवर्नमेंट कारगर ढंग से सभी धार्मिक गतिविधियों का प्रबंधन कर रही है और मंदिर की उचित देखभाल कर रही है.
इससे पहले अवधेशाचार्य के वकीलों ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने बोला कि अवधेशाचार्य की नियुक्ति प्रक्रिया के अनुसार ही हुई है. वहीं राज्य गवर्नमेंट के मंदिर प्रबंधन में दखल देने से धार्मिक गतिविधियों का प्रबंधन ठीक तरह से नहीं हो पा रहा है. लेकिन उच्चतम न्यायालय के उच्च न्यायालय के फैसला में हस्तक्षेप करने में अनिच्छा दिखाने पर उन्होंने उच्चतम न्यायालय में दाखिल एसएलपी को वापस लेने का फैसला ले लिया.
यह था उच्च न्यायालय का आदेश
हाई न्यायालय की सिंगल बैंच ने 22 जुलाई को निर्णय देते हुए गलता पीठ तीर्थ के महंत अवधेशाचार्य की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. जस्टिस समीर जैन की एकल पीठ ने अवधेशाचार्य और अन्य की अपील को निस्तारित करते हुए यह निर्णय सुनाया था.कोर्ट ने गवर्नमेंट से पीठ को टेकओवर करके वर्ष 1943 की स्थिति बहाल करने के निर्देश दिए थे.
गलता पीठ का विकास अयोध्या के राम मंदिर और उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर की तर्ज पर करवाने को बोला था. वहीं गलता पीठ की अब तक बेची गई सभी संपत्तियों की बिक्री को भी खारिज करने के आदेश दिए थे.
इसके विरुद्ध अवधेशाचार्य ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ में अपील की थी. खंडपीठ ने 2 अगस्त को निर्णय सुनाते हुए एकल पीठ के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. हालांकि न्यायालय ने बोला था कि अवधेशाचार्य और उनका परिवार जिस घर में रहता है. उसमें से उन्हें बेदखल नहीं किया जाए. इसके साथ ही एकलपीठ के 1943 की स्थिति बहाल करने के आदेश पर भी खंडपीठ ने रोक लगा दी थी.