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धामी सरकार द्वारा मदरसों की मनमानी पर शिकंजा कसा

भारतीय जनता पार्टी अन्य राज्यों से इत्तर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में अलग तरह से सियासी पिच तैयार करने में लगी है भाजपा द्वारा यूपी की 80 सीटें जीतने के लिए उत्तर प्रदेश को भगवा कर दिया गया है अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम की गूंज देश-विदेश सहित राजनीतिक मोर्चों पर भी सुनाई दी तो वाराणसी के ज्ञानवापी तहखाने में जिला न्यायालय के आदेश के बाद पूजा अर्चना प्रारम्भ हो गई है मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का टकराव भी गवर्नमेंट की इच्छाशक्ति के चलते जल्द सुलझता नजर आ रहा है यह सब घटनाक्रम भाजपा की मौजूदा राजनीति और चुनावी टाइमिंग के हिसाब से काफी जरूरी है वैसे भी चुनावों के समय कौन-सा मामला उठाना है और कौन-सा छोड़ना है, इसमें भाजपा और पीएम मोदी को महारथ हासिल है अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यूपी विधान सभा के बजट सत्र के दौरान भी प्रभु श्रीराम का नाम खूब गूंजा सत्ता पक्ष ने विधान सभा में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिये प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी को शुभकामना संदेश देकर अयोध्या मामले पर सपा में दो फाड़ ही कर दिये सपा को प्रभु श्रीराम के मंदिर पर राजनीति करना लोकतंत्र के मंदिर में उस समय भारी पड़ गया, जब समाजवादी पार्टी के विधायकों ने विधान सभा के भीतर हाथ उठाकर मोदी-योगी के लिए शुभकामना संदेश का समर्थन कर दिया मात्र 14 विधायकों ने ही इसका विरोध किया बीएसपी के एकमात्र विधायक उमाशंकर भी शुभकामना संदेश का समर्थन करते दिखे कुल मिलाकर भाजपा और योगी गवर्नमेंट लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से भगवामय कर देना चाहती है ताकि हिन्दू वोटरों को एकजुट किया जा सके यदि ऐसा हो जाता है तो सपा सहित कांग्रेस पार्टी और बीएसपी के लिये भी आम चुनाव चुनौती साबित हो सकते हैं बीजेपी अबकी से सभी 80 सीटें जीतने का दावा कर रही है

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की थी इस चुनाव में एनडीए के घटक भाजपा और अपना दल (एस) एक साथ मिलकर लड़े थे और एनडीए का 51.19 फीसदी वोट शेयर रहा था जिसमें भाजपा के खाते में 49.98 फीसदी और अपना दल (एस) को 1.21 फीसदी वोट शेयर मिला था वहीं महगठबंधन (बहुजन समाज पार्टी, सपा और राष्ट्रीय लोकदल) को 39.23 फीसदी वोट शेयर मिला था जिसमें बीएसपी को 19.43 प्रतिशत, समाजवादी पार्टी को 18.11 फीसदी और रालोद को 1.69 फीसदी वोट मिला था इसके अतिरिक्त कांग्रेस पार्टी को इस चुनाव में 6.36 वोट शेयर मिला था बात सीटों की कि जाये तो भाजपा को 62, अपना दल (एस) को दो, बसपा को 10, समाजवादी पार्टी को पांच और कांग्रेस पार्टी को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी

साल 2019 में हुए चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की तीन सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिसमें रामपुर, आजमगढ़ और मैनपुरी लोकसभा सीट शामिल रहीं रामपुर में समाजवादी पार्टी नेता आजम खान ने लोकसभा की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया था, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था आजम का गढ़ कहे जाने वाले रामपुर में भाजपा ने उपचुनाव में जीत दर्ज की थी इसके अतिरिक्त समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हुआ इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव को अपना उम्मीदवार बनाया था, वहीं भाजपा ने इस सीट पर भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा था दिनेश लाल यादव निरहुआ ने धर्मेंद्र यादव को 8 हजार से अधिक वोटों से हराया था वहीं समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के मृत्यु के बाद मैनपुरी सीट पर भी उपचुनाव हुआ था समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी में समाजवादी पार्टी की तरफ से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में थीं और इस सीट पर भाजपा ने प्रेम सिंह शाक्य को अपना उम्मीदवार बनाया था हालांकि मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल यादव ने जीत दर्ज की थी अबकी से समाजवादी पार्टी और बीएसपी अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं वहीं समाजवादी पार्टी का कांग्रेस पार्टी से गठबंधन हो रखा है, लेकिन अभी तस्वीर साफ नहीं हुई है

उत्तर प्रदेश की ही तरह उत्तराखंड भी भगवा रंग में रंगता जा रहा है यहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फैसलों से यह बात बार-बार साबित हो रही है धामी गवर्नमेंट द्वारा मदरसों की मनमानी पर शिकंजा कसा जा रहा है, वहीं जगह-जगह बनाई गई मजारों को हटाया जा रहा है उत्तराखंड राष्ट्र का ऐसा पहला राज्य भी बन गया है, जिसने समान नागरिक संहिता को स्वीकृति दे दी है अब उत्तराखंड में सभी धर्मों के लड़के-लड़कियों की विवाह की उम्र तय कर दी गई है इसी तरह तलाक के मुद्दे भी एक ही तरह से निपटाये जायेंगे वहीं हलाला, बहुविवाह पर रो लगा दी गई है कुल मिलाकर उत्तराखंड में यूसीसी कानून के अनुसार प्रदेश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता, जमीन, संपत्ति और उत्तराधिकार के समान कानून होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में यूसीसी पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना भी शामिल था वैसे इसका विरोध भी प्रारम्भ हो गया है समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पर ऑल इण्डिया मुसलमान पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बोला कि क्या इसके (यूसीसी) आने पर जितने भी कानून हैं उनमें एकरूपता आ जाएगी? नहीं, एकदम एकरूपता नहीं होगी जब आपने कुछ समुदायों को इससे छूट दे दी है तो एकरूपता कैसे हो सकती है? हमारी कानूनी समिति मसौदे का शोध करेगी और उसके मुताबिक फैसला लेगी सीएम द्वारा 6 फरवरी को विधेयक पेश किये जाने के दौरान सत्तापक्ष के विधायकों ने ‘‘भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय श्रीराम’’ के नारे भी लगाये उल्लेखनीय हो कि प्रदेश मंत्रिमंडल ने 04 फरवरी को यूसीसी मसौदे को स्वीकार करते हुए उसे विधेयक के रूप में सदन के पटल पर रखे जाने की स्वीकृति दी थी उधर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने बोला कि गवर्नमेंट की मंशा पर शक है उत्तराखंड में यूसीसी कानून बनने में कोई अड़चन नजर नहीं आ रही है 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तराखंड की पांचों सीटें जीती थीं यहां इस बार भी भाजपा के सामने कोई खास अड़चन नहीं दिखाई दे रही है

बात बिहार की कि जाये तो यहां भी बदले राजनीतिक माहौल में भाजपा बढ़त में नजर आ रही है अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से उत्तर प्रदेश के साथ बिहार पहले से ही राममय था, अब बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें पिछड़ों का जनक बोला जाता है, को उनकी जन्म शताब्दी पर हिंदुस्तान रत्न देकर नरेंद्र मोदी ने हिंदी पट्टी के पिछड़ों और अति पिछड़ों को भी साध लिया है कहते हैं, संसद का रास्ता यूपी और बिहार से होकर गुजरता है दोनों ही राज्यों में पिछड़े और अति पिछड़े चुनावी गणित में जरूरी किरदार निभाते हैं

दरअसल, बिहार बीजेपी के लिए बहुत जरूरी राज्य है और यहां नीतीश कुमार कुछ-कुछ वर्षों में पाला बदलने का खेल खेलते रहते हैं आज वह फिर से भाजपा के साथ आ गये हैं, लेकिन उनका विश्वास नहीं लौटा है इसीलिए नरेंद्र मोदी की प्रयास यही है कि बिहार की राजनीति से नीतीश कुमार को साथ रहते हुए भी अप्रासंगिक कर दिया जाए साल 2014 से इसके कोशिश भी वो लगातार करते आ रहे हैं बिहार से लोकसभा की 40 सीटें हैं साल 2014 में जनता दल (यू), राजद और भाजपा, तीनों भिन्न-भिन्न चुनावी मैदान में उतरे थे बीजेपी के साथ रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी जैसे छोटे दल थे चुनाव में बीजेपी ने सहयोगियों के साथ 40 में से 31 सीटों पर विजय हासिल की थी जनता दल (यू) को दो और राजद को चार सीटें ही मिली थीं इसके बाद नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ गए थे साल 2019 में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन में रहते हुए बिहार में चुनाव लड़ा और लोकसभा की 16 सीटों पर विजय हासिल की दोनों दलों के गठबंधन में राजद का सूपड़ा-साफ हो गया था और वो लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी हालांकि, इसके बाद नीतीश कुमार एक बार पलटी मार कर राजद के साथ चले गये थे, परंतु अब फिर भाजपा के साथ आ गये हैं और भाजपा के साथ मिलकर गवर्नमेंट भी चला रहे हैं

जहां तक हिंदी पट्टी के अन्य राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, दिल्ली और बीजेपी के गढ़ गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल, कर्नाटक और महाराष्ट्र की बात है तो इन सभी राज्यों में राम मंदिर का असर भाजपा के पक्ष में दिख रहा है यह वोटों में परिवर्तित भी होगा, यह समय बतायेगा इन राज्यों में लोकसभा की 222 सीटें हैं इसके अलावा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के असम समेत अन्य राज्यों में बीजेपी की स्थिति मजबूत दिख रही है वो यहां पुनः साल 2019 वाला प्रदर्शन दोहरा सकती है नरेंद्र मोदी जब बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार घोषित हुए थे, उससे पहले साल 2009 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 18.80 फीसदी था और पार्टी की 116 सीटें थीं, लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व ने बीजेपी का वोट शेयर 31 फीसदी कर दिया और 282 सीटें पार्टी को मिलीं बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए ने 336 सीटों पर विजय हासिल की साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के वोट शेयर को और बढ़ा दिया यह बढ़कर 37.7 फीसदी हो गया और पार्टी ने अपने बलबूते पर 303 सीटों पर विजय हासिल की, यानी नरेंद्र मोदी जानते हैं कि जनता को क्या पसंद है और कैसे चुनाव-दर-चुनाव जीत हासिल करनी है लोकसभा चुनाव में अब चंद दिन ही बचे हैं पीएम मोदी ने देशभर में अपना चुनाव प्रचार प्रारम्भ कर दिया है, जबकि विपक्षी दल गठबंधन बनाकर सीटों की शेयरिंग में ही उलझे हुए हैं

 

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