प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस हफ्ते इण्डिया गठबंधन के हश्र, बिहार की राजनीति और लोकसभा चुनाव से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गयी। इस दौरान प्रभासाक्षी संपादक ने बोला कि राष्ट्र में गठबंधन राजनीति के प्रति बढ़ते अविश्वास का कारण नेता ही हैं। बिहार में लगभग दो दशकों से भले कोई भी गठबंधन सत्ता में हो मगर सीएम Nitish Kumar ही रहते हैं। नीतीश कुमार तो गठबंधन बदलने का नया रिकॉर्ड बनाने जा ही रहे हैं अन्य विपक्षी नेता भी कम नहीं हैं। ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय स्तर पर बने विपक्षी गठबंधन का नाम इण्डिया सुझाया और उसके चेयरपर्सन पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किया लेकिन वह स्वयं गठबंधन धर्म नहीं निभा सकीं। देखा जाये तो विपक्षी गठबंधन में शामिल एक भी दल ऐसा नहीं है जिसने मौका पड़ने पर साथी दल को विश्वासघात नहीं दिया हो। यही सब देखकर राष्ट्र ने 2014 में गठबंधन राजनीति को अलविदा बोला था और उसे अब दोबारा अपनाने को तैयार नहीं है।
हमने प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे से यही प्रश्न पूछा कि जिस ढंग से इण्डिया गठबंधन से एक के बाद एक दल निकलते जा रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस पार्टी के साथ वही दल बचते दिखाई दे रहे हैं जो पहले से ही उनके साथ थे। ऐसे में इण्डिया की स्थान यूपीए क्यों नहीं? इसको लेकर नीरज दुबे ने स्पष्ट रूप से बोला कि यह इण्डिया ही रहेगा। इसका बड़ा कारण यह है कि यूपीए पर जितने करप्शन के इल्जाम हैं उसे ढो पाना अब कठिन होगा। उन्होंने बोला कि इण्डिया गठबंधन का जाना तो तय था लेकिन यह इतनी शीघ्र जाएगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। इसके साथ ही उन्होंने बोला कि इसके संकेत तब से मिलने प्रारम्भ हो गए थे, जब हालिया विधानसभा चुनाव के रिज़ल्ट आए थे और कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा था। उन्होंने बोला कि इन चुनाव से पहले बॉडी लैंग्वेज देखें तो इण्डिया गठबंधन के नेताओं की काफी अच्छी थी लेकिन नतीजा के बाद इस में गिरावट स्पष्ट रूप से देखी जा रही थी। साथ ही साथ इण्डिया गठबंधन में उसे समय और भी मनमुटाव हो गए। जब मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच वार्ता नहीं बन सकी और कमलनाथ में अखिलेश यादव को लेकर गैर जिम्मेदाराना बयान भी दे दिया।
नीरज दुबे ने बोला कि इतने हार के बाद भी कांग्रेस पार्टी का रुख बदलने दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस पार्टी में अहंकार अभी भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है और यही कारण है कि इण्डिया गठबंधन के कई दल एक के बाद एक निकलते दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने बोला कि लोकसभा चुनाव सिर पर है। सभी दल अपने-अपने ढंग से तैयारी में जुटे हुए हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इण्डिया गठबंधन के नेताओं को कहीं ना कहीं भ्रम की स्थिति में रखा है। जब चर्चा सीट शेयरिंग और आगे के प्लान पर होनी थी तब उसने हिंदुस्तान जोड़ो इन्साफ यात्रा निकाली है और पार्टी के नेता इस में व्यस्त हैं और राहुल गांधी को प्रमोट करने में लगे हुए हैं। इण्डिया गठबंधन के बाकी नेताओं को स्पष्ट रूप से लगता है कि यदि कांग्रेस पार्टी से राहुल गांधी को इसी ढंग से प्रमोट करने में लगी रही तो उनकी पार्टी का भी हश्र वही होगा जो कांग्रेस पार्टी का हुआ है।
नीरज दुबे नहीं इसके साथ ही बोला कि नीतीश कुमार के एनडीए में आने से बीजेपी को बिहार में जितना लाभ नहीं होगा, उससे अधिक राष्ट्रीय स्तर पर लाभ होगा। बिहार में पार्टी पहले से अच्छी स्थिति में थी। हालांकि गठबंधन में नहीं थी। इससे कुछ सीटों का उसे हानि हो सकता था। लेकिन वह जो 17 सीटों पर जीत हासिल करने में 2019 में सफल हुई थी उसमें बढ़ोतरी हो रही थी। लेकिन नीतीश को अपने पाले में लाने के बाद बीजेपी यह संदेश देने की प्रयास करेगी कि जिसने इण्डिया गठबंधन की नींव डाली, उसी कांग्रेस पार्टी ने उनको अपमानित किया और हम उनका सम्मान कर रहे हैं। साथ ही साथ बीजेपी यह भी दिखाने की प्रयास करेगी कि इण्डिया गठबंधन का कुछ नहीं होना है। उसमें सभी लोग महात्वाकांक्षी हैं। नीतीश का इण्डिया गठबंधन से बाहर आना कांग्रेस पार्टी सहित अनेक विपक्षी दलों के लिए बड़ा झटका है।