योगी ने सबसे ज्यादा समय तक CM रहने का बनाया रिकॉर्ड

योगी ने  सबसे ज्यादा समय तक CM रहने का बनाया रिकॉर्ड

योगी गवर्नमेंट की वास्तविक परीक्षा का समय अगले साल लोकसभा चुनाव के रूप में आ रहा है जब कई चुनौतियां मामले का शक्ल लेती नजर आ सकती हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे कि योगी ने इन चुनौतियों का कितने बेहतर ढंग से सामना किया है.

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी गवर्नमेंट के दूसरे कार्यकाल का भी एक साल पूरा कर लिया है. 25 मार्च 2022 को योगी ने जब दूसरी बार प्रदेश की कमान संभाली थी उसके बाद से आज तक उत्तर प्रदेश में काफी कुछ बदल गया है. एक तो सबसे लंबे समय तक उत्तर प्रदेश का सीएम बने रहने का रिकॉर्ड उनके नाम हो गया है दूसरे चुनावी वायदों को पूरा करने में भी योगी गवर्नमेंट प्रतिबद्ध नजर आ रही है. योगी ने 36 वर्ष बाद प्रदेश में दोबारा गवर्नमेंट बनाने का रिकॉर्ड तोड़ा तो पूर्व सीएम स्वर्गीय संपूर्णानंद के बाद राज्य में सबसे लंबे समय तक लगातार सीएम रहने का कीर्तिमान भी बना दिया. हालांकि कानून प्रबंध को लेकर योगी गवर्नमेंट पर विपक्ष आरोप लगाता रहता है, लेकिन करप्शन के मुद्दे में योगी गवर्नमेंट का दामन अभी भी पाक-साफ नजर आ रहा है.

योगी गवर्नमेंट का एक साल पूर्ण होने से एक दिन पूर्व 24 मार्च को वाराणसी में पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी योगी गवर्नमेंट की खूब पीठ थपथपा के यह साबित कर दिया कि उनके और योगी के बीच अच्छा सांमजस्य बना हुआ है. आज योगी ने प्रेस कांफ्रेंस करके अपनी गवर्नमेंट की उपलब्धियों की चर्चा की, लेकिन विपक्ष को उत्तर प्रदेश में सब कुछ हरा-हरा नजर नहीं आ रहा है. खासकर क्राइम के मुद्दे में विपक्ष योगी गवर्नमेंट से अधिक ही उखड़ा हुआ है. उसे लगता है कि योगी गवर्नमेंट क्राइम के नाम पर एक वर्ग विशेष के लोगों को निशाना बना रही है.

उधर, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव आरोप लगाते हुए कहते हैं कि क्या बेरोजगारी कम हुई है, किसानों की आय दो गुनी हो गई है, किसानों को गन्ने का भुगतान मिल रहा है, गैस का सिलेंडर सस्ता हो गया है, मां गंगा-यमुना कितनी साफ हुई हैं? उनका बोलना है कि न ही वायदे के मुताबिक विद्यार्थियों को लैपटॉप या स्कूटी मिली है.

बहरहाल, योगी गवर्नमेंट की मानें तो भाजपा द्वारा विधानसभा चुनाव 2022 के समय जारी किए गए संकल्प पत्र के 130 में से 110 वादे या तो पूरे कर दिए गए हैं या अमल के लिए फैसला हो चुका है. 33.50 लाख करोड़ रुपए का निवेश प्रस्ताव लाने वाले अंतरराष्ट्रीय निवेशक सम्मेलन ने योगी गवर्नमेंट के लिए बूस्टर का काम किया तो जी-20 समिट और शंघाई योगदान संगठन (एससीओ) के पर्यटन मंत्रियों की बैठक ने योगी की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत की. प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 10 खरब $ तक ले जाने का रोडमैप भी इसी एक साल में तैयार किया गया है. यह सब तब हुआ जब योगी गवर्नमेंट कुछ चुनौतियों से भी जूझ रही थी.

पिछली बार की तरह इस बार भी अपराधियों और माफिया के विरूद्ध सख्त कार्रवाई ने मुख्यमंत्री की बुलडोजर बाबा की छवि को बरकरार रखा. मगर, प्रयागराज में दिनदहाड़े गोलीबारी और गवाह हत्याकांड ने इस छवि पर आंच पहुंचाई है. सीएम लगातार संवेदनशील शासन-प्रशासन पर जोर देते रहे हैं. पर, कानपुर देहात में मां-बेटी की संदिग्ध परिस्थितियों में जल कर हुई मृत्यु पर अफसरशाही के रवैये ने एहसास कराया कि संवेदनशीलता के पैमाने पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है.

राजनैतिक मोर्चे पर बात की जाये तो योगी गवर्नमेंट ने एक साल में तीन लोकसभा और दो विधानसभा उपचुनावों का सामना किया. इसमें राजनीतिक तौर पर अहम रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा तथा रामपुर विधानसभा सीट (आजम को तीन वर्ष की सजा के बाद सदस्यता जाने से रिक्त सीट) जीत ली. मैनपुरी लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी बरकरार रखने और मुजफ्फरनगर की खतौली सीट समाजवादी पार्टी की सहयोगी रालोद जीतने में सफल रही. इसी बीच स्वार के विधायक अब्दुल्ला आजम (आजम के बेटे) की सदस्यता रद्द हो गई. इसके साथ ही गवर्नमेंट ने समाजवादी पार्टी के मुसलमान चेहरा रहे आजम के राजनीतिक किले को ध्वस्त कर उन्हें परिवार सहित चुनावी परिदृश्य से बाहर ढकेलने जैसी अकल्पनीय कामयाबी हासिल की. मगर, खतौली विधानसभा क्षेत्र की अपनी जीती हुई सीट की हार ने गवर्नमेंट के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश में नए समीकरण की चिंता बढ़ा दी. खतौली सीट बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को मुजफ्फरनगर दंगों में दो वर्ष की सजा होने के कारण खाली हुई थी.

बात रोजगार की कि जाए तो एक तरफ योगी गवर्नमेंट द्वारा बेरोजगारों को नियुक्ति पत्र बांटे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ उनकी गवर्नमेंट पर सरकारी नौकरियां समाप्त करने के राजनीतिक आरोप लगते रहे हैं. योगी गवर्नमेंट ने इसकी तोड़ में मिशन-रोजगार प्रारम्भ किया. नियमित अंतराल पर कार्यक्रम कर नियुक्ति पत्र वितरित किए जा रहे हैं. मगर, शिक्षा से जुड़ी भर्तियों को एक छत के नीचे शिक्षा सेवा चयन आयोग के जरिए कराने के अपनी पहली ही गवर्नमेंट की पहल पर अब तक अमल का इन्तजार है. उधर, अफसोस की बात यह है कि राज्य में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष सहित ज्यादातर सदस्यों के पद खाली हैं. लंबित भर्ती की कार्यवाही ठप पड़ गई है. इसी तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. टीजीटी-पीजीटी के चयन के लिए विज्ञापन निकाल कर फार्म लेने के बावजूद परीक्षा नहीं हो पाई है. लोगों को पता नहीं चल रहा है कि प्रस्तावित शिक्षा सेवा चयन आयोग आगे की भर्तियां करेगा या उच्चतर शिक्षा आयोग और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग से पद भरे जाएंगे. लाखों युवाओं के सीधे भविष्य से जुड़े मुद्दों पर सरकारी दुविधा चर्चा का विषय है.

बात किसानों की कि जाए तो सरकारी अमले के दावे हैं कि किसानों से लेकर आम लोगों तक के लिए मुसीबत साबित हो रहे छुट्टा जानवरों की संख्या अब बमुश्किल 50 हजार ही रह गई है. बाकी छुट्टा जानवर गौ संरक्षण स्थलों में पहुंचा दिए गए हैं. मगर, हकीकत ये है कि अनेक किसानों की रातें अब भी फसलों की रखवाली में खराब हो रही हैं. बाड़बंदी पर खर्चे अलग से. गत दिनों की ओलावृष्टि और बरसात से किसानों की फसल को काफी हानि हुआ, लेकिन मुआवजा देने के मुद्दे में किसान योगी गवर्नमेंट के उपायों से नाराज दिखे.

शासन और प्रशासन के मोर्चे पर ही नहीं, मंत्रिमंडल के स्तर पर भी मनभेद और मतभेद सार्वजनिक तौर पर सामने आने लगे हैं. मसलन, तबादलों में मनमानी और करप्शन के आरोप विपक्ष ठीक से भले नहीं लगा सका. पर, तबादलों में ही गड़बड़ी के आरोप में लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद के निजी सचिव के विरूद्ध कार्रवाई कर बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा. उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने तबादलों पर प्रश्न उठाए तो अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद को हटाना पड़ा. जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटिक द्वारा अपने ही कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह के संबंध में लिखे गए पत्र ने भी गवर्नमेंट की खूब किरकिरी कराई. आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल के निजी सचिव भी हटा दिए गए. रही-सही कसर विधानमंडल के बजट सत्र के बाद विधायकों की सामूहिक फोटोग्राफी में पूरी हो गई. सदन में मौजूद होने के बावजूद दोनों उपमुख्यमंत्री फोटोग्राफी में नहीं पहुंचे. इस पर विपक्ष को चुटकी लेने का मौका मिल गया. जातीय जनगणना के मामले पर मतभेद खुलकर उजागर हुए. गवर्नमेंट और संगठन इस मामले पर केंद्र के फैसला पर अमल की बात करते रहे. लेकिन, डिप्टी मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जातीय जनगणना की खुलकर वकालत करते नजर आए.

बहरहाल, योगी गवर्नमेंट की वास्तविक परीक्षा का समय अगले साल लोकसभा चुनाव के रूप में आ रहा है जब कई चुनौतियां मामले का शक्ल लेती नजर आ सकती हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे कि योगी ने इन चुनौतियों का कितने बेहतर ढंग से सामना किया है. 2014 में और 2019 में सर्वाधिक सीटें जीतने वाली बीजेपी ने 2024 में सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. जानकार बताते हैं कि योगी दोबारा सीएम बनने के बाद पहले कार्यकाल की अपेक्षा अधिक मजबूत हुए हैं. योगी गवर्नमेंट की पहली पारी में पर्दे के पीछे विरोधी माने जाने वाले कई चेहरों का राजकाज से सीधे दखल समाप्त हो चुका है. या तो वे दायित्व से मुक्त हो गए हैं या बाहर भेज दिए गए हैं. संघ परिवार से लेकर गवर्नमेंट और संगठन तक में उनके शुभचिंतकों की संख्या बढ़ी है. राजकाज के अनुभव के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ा है. मुख्यमंत्री के सलाहकारों की मानें तो योगी अब कड़े और बड़े फैसला लेने में एकदम भी नहीं हिचकिचाते. उसके नफा-नुकसान और समझाई जाने वाली जन-धारणाओं की अधिक परवाह भी नहीं करते हैं. अनेक फैसला केवल अपने विवेक से ले रहे हैं. ऐसे में आगे उनसे और बेहतर राजकाज की आशा की जा सकती है.

योगी ने अपने राजकाज में एक नए मॉडल को आगे बढ़ाया है. इसे गवर्नेंस का कार्यवाहक मॉडल कह सकते हैं. मुख्यमंत्री ने स्वयं द्वारा नियुक्त नियमित पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को गत साल मई में हटाकर कार्यवाहक डीजीपी डीएस चौहान को बना दिया. सभी की उम्मीदें थी कि शीघ्र ही वह नियमित डीजीपी बन जाएंगे. केंद्र और राज्य में दोनों स्थान एक ही पार्टी की गवर्नमेंट होने के बावजूद दस महीने बीत गए, नियमित डीजीपी की नियुक्ति नहीं हो सकी. चौहान इसी महीने सेवानिवृत्ति होने वाले हैं. डीजी इंटेलिजेंस और डीजीपी भिन्न-भिन्न रखने के कई लाभ बताए जाते हैं. ये दोनों सीएम के भिन्न-भिन्न दो कान बताए जाते हैं. मगर, योगी ने दोनों ही पदों को एक ही अफसर को सौंपकर नए तरह का प्रयोग किया. प्रयागराज में प्रदेश को हिला देने वाला गवाह हत्याकांड को इंटेलिजेंस की विफलता की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक बताया जा रहा है. 

योगी के पहले कार्यकाल में बोला जाता रहा है कि वह शक्ति के केंद्रीयकरण में विश्वास रखते थे. मगर, दूसरे कार्यकाल में वह एकदम बदले रूप में सामने आए. योगी ने अपने और दोनों उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के बीच बराबर-बराबर 25-25 जिलों का बंटवारा कर लिया. अब गवर्नमेंट के तीनों मुख्य चेहरे बराबर-बराबर जिलों के राजकाज की मॉनीटरिंग कर रहे हैं. योगी ने मंत्रिसमूहों का गठन कर जिलों का भ्रमण कराया और मंत्रिपरिषद की नियमित बैठक के अतिरिक्त लगभग हर महीने मंत्रिमंडल के साथियों के साथ मुलाकात का समय निकाला.

बात सलाहाकारों की कि जाए तो योगी के पहले कार्यकाल में केवल दो सलाहकार हुआ करते थे. गवर्नमेंट के शुरुआती दिनों से सबसे पहले मीडिया सलाहकार के रूप में मृत्युंजय कुमार और फिर आर्थिक सलाहकार के रूप में केवी राजू जुड़े थे. दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अवनीश कुमार अवस्थी को सलाहकार, यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डाक्टर डीपी सिंह को शिक्षा सलाहकार और जीएन सिंह को खाद्य सलाहकार के रूप में जोड़ा. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार को जल्द ही सलाहकार उद्योग के रूप में जोड़ने की तैयारी है. संगठन से सीएम के विशेष कार्याधिकारी के रूप में पहले कार्यकाल में भेजे गए अभिषेक कौशिक की स्थान श्रवण बघेल आ गए हैं तो संजीव सिंह पूर्व की तरह बने हुए हैं.

योगी गवर्नमेंट पर यह भी दाग लगा हुआ है कि वह नगर निकाय चुनाव समय पर नहीं करा सके. निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त होने की वजह से सरकारी प्रशासक बैठाने पड़े. वैसे चुनाव न हो पाने के लिए कई तकनीकी और कानूनी वजह बताए जा रही है. मगर, जनता में संदेश गया है कि अफसरशाही जानबूझकर देर से चुनाव तैयारी प्रारम्भ करती है, ताकि चुनाव टल सकें और पंचायतों और निकायों के धन को अफसर बिना जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप खर्च कर सकें. अंत में यह भी बोलना महत्वपूर्ण है कि योगी-2 गवर्नमेंट पूरी तरह से योगी आदित्यनाथ की कामयाबी की पूंजी है. 2017 का विधानसभा चुनाव जहां मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव योगी ब्रांड पर हुए थे, जिसमें योगी को बहुत बढ़िया कामयाबी मिली थी. वह मोदी की छत्रछाया से बाहर निकल आए थे.