राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद विपक्ष आये एकजूट नजर

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद विपक्ष एकजूट नजर आ रहा है। सभी विपक्षी दल भाजपा के विरूद्ध अचानक कांग्रेस पार्टी के पक्ष में बातें करने लगे हैं। ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि निजी हितों के विवाद और आपसी अहंकार को भूलकर विपक्षी दल एकजुट हो गए हैं? क्या अब थर्ड फ्रंट की आवश्यकता खत्म हो गई है? क्या 2024 में पीएम की उम्मीदवारी को लेकर अब विपक्षी दलों के दरवाजे खुल चुके हैं?
ये प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यदि राहुल गांधी को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिलती है तो वो 2024 का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। यहां तक कि वो 2029 का चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। ऐसे में कई सियासी दलों के नेताओं के लिए आशा की किरण जाग उठी है, उन्हें ये लगने लगा है कि अब उनके दल का कोई नेता विपक्ष की तरफ से पीएम का उम्मीदवार हो सकता है।
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता छीने जाने के बाद से पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी ने भी अचानक अपना रुख बदल लिया है। वहीं, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, सपा के प्रमुख अखिलेश यादव समेत विपक्षी दलों के अनेक नेताओं ने अपना रुख साफ किया और राहुल गांधी के प्रति एकजुटता दिखाई।
बीजेपी को हो सकती है परेशानी
दरअसल, कांग्रेस पार्टी की कमियों और उसकी इस परेशान हालत से क्षेत्रीय विपक्षी दल भी वाकिफ हैं। अब प्रश्न यह है कि अचानक राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को समर्थन करने वाले केजरीवाल, ममता, केसीआर, अखिलेश और अन्य विपक्षी नेता क्या अब अपनी रणनीति बदलेंगे? अब ये नेता बदलें या नहीं बदलें लेकिन यही ठीक समय है जब पूरा विपक्ष एक मंच पर आ सकता है और सत्ता में आसीन भाजपा के लिए कठिनाई खड़ी कर सकते हैं।
बीजेपी के लिए देखें तो एक तरह से ये घड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकती है। वर्तमान में केंद्र की अनेक विपक्षी नेताओं के विरूद्ध कार्रवाई विपक्ष को एक सूत्र में बांध सकता है। इस समय यदि कांग्रेस पार्टी आगे बढ़कर बड़ा दिल दिखाती है तो वो भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर सकती है।
ममता हुईं आग बबूला
अब तक कांग्रेस पार्टी पर तीखे तंज कसने वाली ममता बनर्जी ने अचानक अपना रवैया बदल लिया है। वो राहुल गांधी के समर्थन में उतर आई हैं। उन्होंने अपने एक संबोधन में कहा, ‘पीएम मोदी के न्यू इण्डिया में भाजपा के निशाने पर विपक्षी नेता! जबकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बीजेपी नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है, विपक्षी नेताओं को उनके भाषणों के लिए अयोग्य ठहराया जाता है।’
उन्होंने कहा, ‘आज, हमने अपने संवैधानिक लोकतंत्र के लिए एक नया निम्न स्तर देखा है।’ नीतीश कुमार की जेडीयू ने भी राहुल गांधी पर हुई कार्रवाई को लेकर बयान जारी किया और बोला कि राष्ट्र में लोकतंत्र को मृत घोषित कर दिया गया है और ये लोकतंत्र के इतिहास में सबसे बड़ा काला धब्बा है।
पहले भी गई कई नेताओं की सदस्यता
राहुल गांधी पहले नेता नहीं हैं, जिनकी सदस्यता रद्द हुई हो। राहुल से पहले भी कई सांसद और विधायकों की सदस्यता दो वर्ष की सजा सुनाए जाने की वजह से जा चुकी है। इनमें, सपा के नेता आजम खां, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम, मुजफ्फरनगर की खतौली से विधायक रहे विक्रम सैनी, लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल का नाम शामिल है।
संजीवनी का लाभ उठाने का मौका
सियासी हलकों में बोला ये भी जा रहा है कि हिंदुस्तान जोड़ो यात्रा से कांग्रेस पार्टी को एक संजीवनी मिली है और इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने करीब 150 सिविल सोसाइटी संगठनों से सीधी वार्ता की है और उन तक अपना संदेश पहुंचाया है। ऐसे में ये बेहतर समय है कि विपक्ष को एक करके पूरी ताकत झोंकी जाए और 2024 से पहले एक मंच तैयार किया जाए। कांग्रेस पार्टी महासचिव जयराम रमेश कहते हैं कि अब तक संसद के अंदर समन्वय दिखता था और अब बाहर भी समन्वय दिखेगा।
क्या क्षेत्रीय दलों के साथ अपने तेवर में नरमी लाएंगे राहुल?
एक प्रश्न ये भी है कि राहुल गांधी ने विपक्षी दलों के समर्थन का स्वागत जरूर किया है, लेकिन क्या राहुल पूरे विपक्ष को एक सूत्र में पिरोने के लिए कोशिश करेंगे और करेंगे तो किस हद तक? कितने नेताओं से बात करेंगे? क्या क्षेत्रीय दलों के साथ अपने तेवर में नरमी लाएंगे?