राष्ट्रीय

लद्दाख में 60 से अधिक दिनों तक चली लड़ाई के बाद पाकिस्तानी सैनिकों पर सेना को मिली जीत

भारतीय सेना के जवानों के बलिदान को याद करते हुए 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन, राष्ट्र 1999 में कारगिल, लद्दाख में 60 से अधिक दिनों तक चली लड़ाई के बाद पाकिस्तानी सैनिकों पर सेना को मिली जीत का उत्सव मनाता है.

आज के दिन राष्ट्र के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले अनेक जांबाजों के बीच कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम हर किसी के जेहन में आता है. कैप्टन बत्रा ने पूरी लड़ाई में हिंदुस्तान के लिए बहादुरी से लड़ते हुए अपनी जान दे दी. उस समय वह सिर्फ़ 24 साल के थे और उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च युद्धक्षेत्र बहादुरी सम्मान, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

कैप्टन विक्रम बत्रा से जुडी 10 अहम बातें

  • कैप्टन बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था और उनके एक जुड़वां भाई और दो बहनें हैं. हाई विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज और उसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया.
  • 1996 में, बत्रा ने देहरादून की भारतीय सेना अकादमी (आईएमए) में दाखिला लिया, जहां उन्होंने एक वर्ष बाद स्नातक होने तक सशस्त्र बलों के लिए प्रशिक्षण लिया. उनकी पहली पोस्टिंग जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में थी.
  • इसी रेजिमेंट ने कारगिल में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारतीय चौकियों पर घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों से मुकाबला किया.
  • कैप्टन बत्रा का सबसे मुश्किल मिशन प्वाइंट 4875 पर कब्ज़ा करना था. उन्हें “शेरशाह” कोडनेम दिया गया था, जिसे उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों की जीत का आश्वासन देकर पूरा किया.
  • शेरशाह के अतिरिक्त बत्रा को “ड्रास का बाघ”, “कारगिल हीरो” और “कारगिल का शेर” भी बोला जाता है.
  • तेज बुखार और थकान के बावजूद कैप्टन बत्रा ने सेना का नेतृत्व किया. उनके साथी सैनिक उनकी बहादुरी और साहस की कहानियाँ याद करते हैं. कहा जाता है कि लड़ाई के दौरान उन्होंने कम से कम चार पाकिस्तानी सैनिकों को गोली मार दी थी.
  • 7 जुलाई को मिशन व्यावहारिक रूप से पूरा हो गया. दूसरी ओर, कैप्टन बत्रा एक अन्य अधिकारी, लेफ्टिनेंट नवीन अनाबेरू की सहायता करने के लिए अपने बंकर से बाहर निकले, जिनके पैर में एक विस्फोट में गंभीर चोटें आई थीं. अपने साथी को बचाने की प्रयास में कैप्टन बत्रा को गोली मार दी गई.
  • कैप्टन बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने अपने बेटे के जीवन का वर्णन अपनी पुस्तक – ‘परम वीर विक्रम बत्रा, कारगिल के शेर शाह’ में किया है.
  • जीएल बत्रा ने अपने बेटे की मौत के तीन वर्ष बाद 2002 में कारगिल का दौरा किया. “उस मिट्टी को छुए बिना यात्रा पूरी नहीं होती जहां विक्रम ने अपने प्राण न्यौछावर किए. यह एक जबरदस्त रेट था जब कोर कमांडर ने हमें प्वाइंट 4875 और तोलोलिंग की मिट्टी से भरे दो गिलास उपहार में दिए. जीएल बत्रा ने पुस्तक में स्वयं को अभिव्यक्त करते हुए लिखा, हमारे लिए यह किसी तीर्थ स्थल की यात्रा से कम नहीं था.
  • सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी अभिनीत कैप्टन बत्रा की बायोपिक शेरशाह 12 अगस्त, 2021 को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई थी.

Related Articles

Back to top button