मैं इस्लाम नहीं मानती, हिन्दुओं जैसा मिले संपत्ति का अधिकार, मुस्लिम युवती की अर्जी पर CJI बोले…
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इस्लाम न मानने वाली मुसलमान स्त्री की उस याचिका पर केंद्र और केरल गवर्नमेंट से उत्तर मांगा, जिसमें उसने अपने पैतृक संपत्ति अधिकार के मुद्दे में शरीयत के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून को लागू करने का निवेदन किया है। न्यायालय ने कहा, ‘हम पर्सनल लॉ पर पक्षकारों के लिए इस तरह की घोषणा नहीं कर सकते। आप शरिया कानून के प्रावधान को चुनौती दे सकते हैं और हम तब इससे निपटेंगे। हम कैसे ये निर्देश दे सकते हैं कि एक नास्तिक आदमी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा? ऐसा नहीं किया जा सकता है
अलप्पुझा की रहने वाली और ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की महासचिव सफिया पी।एम। ने बोला कि हालांकि उन्होंने आधिकारिक तौर पर इस्लाम नहीं छोड़ा है, लेकिन वह इसमें विश्वास नहीं रखती हैं और अनुच्छेद 25 के अनुसार धर्म के अपने मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करना चाहती हैं। उन्होंने यह भी घोषित करने की मांग की है कि ‘जो आदमी वसीयत और वसीयतनामा उत्तराधिकार के मुद्दे में मुसलमान पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं होना चाहते हैं, उन्हें राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष कानून यानी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा शासित होने की अनुमति दी जानी चाहिए।’
प्रधान न्यायाधीश डी।वाई। चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे।बी। पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की आरंभ में बोला कि न्यायालय पर्सनल लॉ के मुद्दे में यह घोषणा नहीं कर सकती है कि नास्तिक आदमी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा। न्यायालय ने कहा, ‘हम पर्सनल लॉ पर पक्षकारों के लिए इस तरह की घोषणा नहीं कर सकते। आप शरिया कानून के प्रावधान को चुनौती दे सकते हैं और हम तब इससे निपटेंगे। हम कैसे ये निर्देश दे सकते हैं कि एक नास्तिक आदमी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा? ऐसा नहीं किया जा सकता है।
सफिया ने वकील प्रशांत पद्मनाभन के माध्यम से दाखिल अपनी जनहित याचिका में बोला कि शरीयत कानूनों के अनुसार मुसलमान महिलाएं संपत्ति में एक तिहाई हिस्सेदारी की हकदार हैं। शरीयत अधिनियम के एक प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने बोला कि वसीयत उत्तराधिकार का मामला इसके अनुसार नियंत्रित होगा। वकील ने बोला कि यह घोषणा न्यायालय को करनी होगी कि याचिकाकर्ता मुसलमान पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं है, वरना उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक नहीं दे पाएंगे। वकील ने कहा, ‘मेरा (याचिकाकर्ता) भाई ‘डाउन सिंड्रोम’ (एक आनुवंशिक विकार जो मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का कारण बन सकता है) से पीड़ित है और उसे संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा।’
पीठ ने दलीलें सुनने के बाद याचिका पर केंद्र और केरल गवर्नमेंट को नोटिस जारी करने का निर्णय किया और अटॉर्नी जनरल आर। वेंकटरमणी को सुनवाई में पीठ की सहायता के लिए एक कानून अधिकारी नियुक्त करने का भी निर्देश दिया।