भारतीय कानून के मुताबिक मुस्लिम महिला ने मांगा संपत्ति में हिस्सा, CJI ने कहा…
महिला ने बोला कि उसके पूर्वजों ने इस्लाम कबूल कर लिया था। उसके अनुसार उनका जन्म एक मुसलमान परिवार में हुआ था। लेकिन उनके पिता की पीढ़ी का परिवार इस्लाम को नहीं मानता है। स्त्री की याचिका पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सुनवाई की है। पीठ ने स्त्री वकीलों की दलीलें भी सुनीं और उन पर विचार किया। इसके बाद न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन को इन्साफ मित्र नियुक्त किया. न्यायालय ने न्यायाधीश को कानूनी और तकनीकी प्रक्रियाओं से परिचित होने के लिए बोला है.
याचिकाकर्ता स्त्री एक यूनियन से जुड़ी है
महिला का नाम साफिया है। वह एक एसोसिएशन की महासचिव हैं जो केरल में पूर्वी मुसलमानों का अगुवाई करती है. यह एसोसिएशन उन लोगों के लिए है जो मुसलमान परिवार में पैदा हुए हैं लेकिन इस्लाम में विश्वास नहीं रखते हैं. साफिया की ओर से दाखिल जनहित याचिका में बोला गया है कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार मिले अधिकार का इस्तेमाल करना चाहती हैं। यह अनुच्छेद धर्म के मौलिक अधिकार के प्रयोग से छूट देता है.
महिला ने बोला कि इस अनुच्छेद के अनुसार धर्म को मानना या न मानना आजादी है। पिता की भी इस्लाम में आस्था नहीं है। वे शरीयत के अनुसार संपत्ति का बंटवारा भी नहीं चाहते। लेकिन मुसलमान पर्सनल लॉ के मुताबिक, मुसलमान परिवार में जन्मे आदमी को पैतृक संपत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार है. धर्मनिरपेक्ष कानून का फायदा नहीं मिल पाता। जबकि साफिया भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार संपत्ति में अपना अधिकार पाना चाहती हैं।
महिला ने कहा कि उसका भाई मानसिक रोग डाउन सिंड्रोम का शिकार है. उसे एक बेटी है. मुसलमान पर्सनल लॉ के अनुसार उसे एक तिहाई और उसके भाई को दो तिहाई हिस्सा मिलेगा। इस पर चीफ जस्टिस ने बोला कि वे इसकी घोषणा कैसे कर सकते हैं? अधिकार आस्तिक या नास्तिक होने से नहीं मिलते. वे जहां पैदा हुए हैं उसके मुताबिक मिलते हैं. तो मुसलमान पर्सनल लॉ आप पर लागू होगा। मुद्दे की अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टियों के बाद यानी जुलाई के दूसरे सप्ताह में होगी।