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पहल: अस्पतालों को सौर ऊर्जा से लैस करने का काम शुरू

बिजली कटौती की वजह से सरकारी कामकाज या फिर अस्पतालों में भर्ती रोगियों के उपचार में आने वाली बाधा जल्द दूर होगी. गवर्नमेंट ने इन सभी इमारतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का निर्णय किया है, जिसकी आरंभ सबसे पहले केंद्र गवर्नमेंट ने अपने मंत्रालय और उनके अधीन सरकारी इमारतों से की है. इसमें दिल्ली एम्स, सफदरजंग अस्पताल, डाक्टर राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल भी शामिल हैं. सभी मंत्रालय के लिए गवर्नमेंट ने पांच भिन्न-भिन्न एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी है जो इस वर्ष के आखिर तक काम पूरा करेगीं. वहीं दूसरी ओर राज्यों ने भी इस पर संज्ञान लिया है.

 

हालांकि, इस काम के लिए राज्यों ने डेडलाइन तय नहीं की है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के एम्स और दिल्ली के पांच अस्पतालों को सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का आदेश दिया है. मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जिस तरह कोविड-19 महामारी में ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित किए गए उसी तरह सौर ऊर्जा संयंत्र को लेकर भी काम हो रहा है. पीएम मोदी ने दिसंबर 2024 तक डेडलाइन सभी मंत्रालय को दी है.

इसलिए है जरूरी

 

दरअसल, बिजली आपूर्ति का असर सरकारी अस्पतालों पर काफी गंभीर है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) का एक शोध बताता है कि राष्ट्र के अस्पतालों में प्रति बिस्तर औसत बिजली खपत लगभग 200 से 300 किलोवाट प्रति घंटा है. इस हिसाब से देखें तो 30 बिस्तर के एक हॉस्पिटल की मासिक बिजली खपत छह से नौ हजार किलोवाट प्रति घंटा तक हो सकती है. हालांकि यह अनुमान विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर अलग भी हो सकता है.

 

 

दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक असर

 

साल 2022 में हैदराबाद के गांधी हॉस्पिटल में बिजली कटौती के बाद 21 रोगियों की मृत्यु हुई. इसी वर्ष नोएडा जिला हॉस्पिटल में बत्ती गुल होने से रोगियों और डॉक्टरों को कठिनाई हुई. दिल्ली के रोहिणी स्थित डाक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर हॉस्पिटल में लंबे समय तक बिजली गुल रही, जिससे चिकित्सा सेवाएं बाधित हुईं.

 

प्राइवेट अस्पतालों में नहीं होती परेशानी

 

साल 2022 में शोधकर्ताओं ने हिंदुस्तान में संस्थागत प्रसूति पर ऊर्जा की कमी के असर पर शोध किया, जिसमें 1998-99 और 2005-06 के भारतीय जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डाटा का विश्लेषण किया. इसका निष्कर्ष बताता है कि हिंदुस्तान में बिजली कटौती की परेशानी प्राइवेट अस्पतालों में नहीं है. भिन्न-भिन्न कारणों के चलते सरकारी हॉस्पिटल सबसे अधिक इसका सामना करते हैं, जिसकी वजह से इन अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं में सालाना एक प्रतिशत से अधिक गिरावट देखी गई है.


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