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पतंजलि के 14 उत्पादों के लाइसेंस हुए कैंसिल

सुप्रीम न्यायालय ने आज मंगलवार को पतंजलि आयुर्वेद के विरुद्ध भ्रामक विज्ञापन मुद्दे में “निष्क्रियता” के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को फटकार लगाई. न्यायालय ने बोला कि प्राधिकरण ने “सबकुछ ख़त्म करने की प्रयास की”. इसने बाबा रामदेव-प्रवर्तित कंपनी की भी खिंचाई की और बोला कि वह उसके आदेशों का “पालन नहीं” कर रही है.

जब न्यायालय ने मूल रिकॉर्ड मांगे तो पतंजलि ने सार्वजनिक माफी की एक ई-प्रति पेश की. इसके उत्तर में पीठ ने बोला कि, ”यह अनुपालन नहीं है.” न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने बोला कि, ”मैं इस मुद्दे में अपने हाथ खड़े कर रही हूं, हमारे आदेशों का अनुपालन न करना बहुत हो गया.न्यायालय ने पतंजलि को प्रत्येक समाचार पत्र के मूल पृष्ठ को दाखिल करने का “एक और अवसर” दिया, जिसमें माफी जारी की गई थी. हालाँकि, पीठ ने कहा, “उल्लेखनीय सुधार हुआ है.” न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “पहले सिर्फ़ पतंजलि थी, अब नाम हैं. हम इसकी सराहना करते हैं. वे समझ गए हैं.” शुरुआती माफीनामा छोटा होने के बाद न्यायालय ने कंपनी से पतंजलि आयुर्वेद से दोबारा माफीनामा जारी करने को बोला था.

बाबा रामदेव और पतंजलि के व्यवस्था निदेशक आचार्य बालकृष्ण दोनों को सुनवाई की अगली तारीख 7 मई को शीर्ष न्यायालय में पर्सनल रूप से पेश होने से छूट दी गई है. उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने न्यायालय को सूचित किया कि पतंजलि और उसकी सहयोगी कंपनी दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस 15 अप्रैल को “तत्काल प्रभाव” से निलंबित कर दिए गए थे. इसके उत्तर में, शीर्ष न्यायालय ने कार्रवाई करने में देरी पर प्रश्न उठाया और बोला कि प्राधिकरण अब “नींद से जाग गया है.

सुप्रीम न्यायालय ने बोला कि, “इससे पता चलता है कि एक बार जब आप कुछ करना चाहते हैं, तो आप इसे बिजली की गति से करते हैं, लेकिन यदि आप नहीं करते हैं, तो सालों तक कुछ भी नहीं होता है. तीन दिनों में, आपने सारी कार्रवाई कर दी है. आप पिछले नौ महीनों से क्या कर रहे थे कार्यभार संभालने के बाद से. आखिरकार, आपको एहसास हुआ कि आपके पास शक्ति और जिम्मेदारियां हैं, आप आखिरकार नींद से जाग गए हैं.” शीर्ष न्यायालय ने बोला कि, “लाइसेंसिंग प्राधिकारी ने प्रस्तुत किया कि सावधान जांच रखी गई थी.न्यायालय ने उत्तर दिया, “आपने सब कुछ धोने की प्रयास की है. क्या यह सतर्कता है? हमने आपको सावधान रहने के लिए बोला था. आप स्वयं को प्रमाणपत्र दे रहे हैं.

जस्टिस कोहली ने बोला कि, “आपको सावधानी से चलना था. क्या आप यह कह सकते हैं कि आप सावधान थे?” उच्चतम न्यायालय ने भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा कोविड टीकाकरण अभियान और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों के विरुद्ध बदनामी का इल्जाम लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पतंजलि आयुर्वेद से सार्वजनिक माफी प्रकाशित करने को बोला था. इसके बाद, कंपनी ने 67 अखबारों में अयोग्य सार्वजनिक माफी जारी की थी. हालाँकि, न्यायालय ने कंपनी को अपने विज्ञापनों के आकार के बराबर एक नया “प्रमुख” माफ़ीनामा जारी करने के लिए बोला था, जिसके बाद पतंजलि ने एक बड़ा माफ़ीनामा भी प्रकाशित किया था. यही नहीं पतंजलि आयुर्वेद ने पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय के समक्ष पेश होकर भी माफी मांगी थी.

पिछली सुनवाई में भी उच्चतम न्यायालय की ओर से कंपनी के विरुद्ध तीखी टिप्पणियां देखने को मिली थीं. 23 अप्रैल को, पीठ ने फर्जी विज्ञापनों पर कंपनी को कड़ी फटकार लगाते हुए बोला था कि, “हम जनता को विश्वासघात नहीं दे सकते.” साथ ही न्यायालय ने केंद्र और राज्य लाइसेंसिंग ऑफिसरों को भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिए स्वयं को “सक्रिय” करने के लिए भी बोला था.

इससे पहले सोमवार को उत्तराखंड गवर्नमेंट ने 14 पतंजलि उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस को निलंबित कर दिया. प्रतिबंधित उत्पादों में दिव्य फार्मेसी की दृष्टि आई ड्रॉप, स्वासारि गोल्ड, स्वासारि वटी, ब्रोंकोम, स्वासारि प्रवाही, स्वासारि अवलेह, मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपी ग्रिट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवामृत एडवांस, लिवोग्रिट और आईग्रिट गोल्ड शामिल हैं. उच्चतम न्यायालय ने नवंबर 2023 में पतंजलि को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 में निर्दिष्ट रोंगों और विकारों के उपचार का दावा करने वाले अपने उत्पादों के विज्ञापनों को रोकने का निर्देश दिया था. हालाँकि, विज्ञापनों को जारी रखने का हवाला देते हुए, IMA ने अवमानना ​​याचिका के साथ न्यायालय का रुख किया था.

बाबा रामदेव विज्ञापन मुद्दा क्या है :-

दरअसल, बाबा रामदेव ने अपनी कुछ दवाओं का विज्ञापन करते हुए ये कह दिया था कि, ये भ्रान्ति है कि शुगर और BP जैसी रोंगों का स्थायी उपचार नहीं है, (उनकी) आयुर्वेदिक दवाओं से ये पूरी तरह ठीक हो सकता है. अब मॉर्डन मेडिकल साइंस का ये दावा है कि डायबिटीज़ (शुगर) एक जीवन भर रहने वाली रोग है और इसे जीवन भर दवा खाकर कंट्रोल किया जा सकता है, बढ़ने पर इन्सुलिन लिया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता. आधुनिक मेडिकल साइंस का मानना है कि शुगर के रोगी को जीवन भर दवाएं या इन्सुलिन लेनी ही होती है. हाँ, शुरूआती चरण में इसे खान-पान पर नियंत्रण रखकर कंट्रोल किया जा सकता है. अब भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) बाबा रामदेव के इसी दावे के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय पहुंचा कि उन्होंने अपनी आयुर्वेदिक दवा बेचने के लिए झूठा दावा किया.

सुप्रीम न्यायालय ने रामदेव को फटकार लगाई कि वो एलॉपथी के विरुद्ध नहीं बोल सकते और ऐसे भ्रामक विज्ञापन नहीं कर सकते. बाबा रामदेव ने उच्चतम न्यायालय में माफ़ी मांग ली, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया और सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने को कहा. जिसके बाद पतंजलि आयुर्वेद ने 67 अख़बारों में लिखित माफ़ी छपवाई, तो न्यायालय ने उन अख़बारों की कतरन पेश करने को बोला था. अब इस मुद्दे में उत्तराखंड गवर्नमेंट ने पतंजलि के 14 उत्पादों के लाइसेंस कैंसिल कर दिए हैं. हालाँकि, गौर करने वाली एक बात ये भी है कि, हर एलॉपथी दवाई का साइड इफ़ेक्ट होता ही है, आप किसी भी गोली का नाम लिखकर इंटरनेट पर सर्च करेंगे, तो इसकी जानकारी मिल जाएगी. अब जीवन भर चलने वाली गोलियों का रोगी के शरीर पर कितना और क्या साइड इफ़ेक्ट  होगा ? क्या IMA ने ये कभी कहा है ?

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