नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में अपने ही फैसले को पलटा
Supreme Court On 1998 JMM Bribery Case: घूस लेकर वोट डालने वाले सांसद या विधायक अब संविधान का हवाला देकर बच नहीं पाएंगे। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को 1998 के नरसिम्हा राव बनाम CBI मुद्दे में अपने ही निर्णय को पलट दिया। उस मुद्दे को JMM रिश्वतखोरी मुद्दे के नाम से भी जाना जाता है। 1998 वाले निर्णय में, SC ने बोला था कि सांसद यदि घूस लेकर वोट डाले तो भी उसके विरुद्ध केस नहीं चल सकता। तब न्यायालय ने अनुच्छेद 105(2) के अनुसार सांसदों को मिली इम्यूनिटी को आधार बनाया था। पूरा मुकदमा 1993 में नरसिम्हा राव गवर्नमेंट के विरुद्ध लोकसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ा है। शिबू सोरेन समेत झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सांसदों पर घूस लेकर अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट डालने के इल्जाम लगे। जनता दल के अजित सिंह भी घूस लेकर वोटिंग से दूर रहने के आरोपी बने। 1998 में उच्चतम न्यायालय ने 105(2) के अनुसार इम्यूनिटी का हवाला देते हुए शिबू सोरेन और अन्य JMM सांसदों को राहत दे दी। लेकिन अजित सिंह को ऐसी कोई राहत नहीं मिली। सोरेन बच गए थे तो सिंह क्यों फंसे? 26 वर्ष बाद चर्चा में आए मुकदमे की कहानी जानिए।
JMM घूस कांड, नरसिम्हा राव vs सीबीआई मुकदमा क्या है
नब्बे के दशक की आरंभ में राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक संकट से जूझ रहा था। 1991 आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी मगर बहुमत से दूर थी। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की गवर्नमेंट बनी। लोकसभा में कुल 528 सदस्य थे और कांग्रेस पार्टी के पास 251 सांसद। बाहरी समर्थन से गवर्नमेंट चलती रही। कठिनाई आई 1993 में, जब लेफ्ट की ओर से राव गवर्नमेंट के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। राव गवर्नमेंट बच सके इसके लिए प्रस्ताव के विरोध में कम से कम 264 वोट पड़ने चाहिए थे। जब मतदान हुआ तो पक्ष में 251 वोट पड़े और विरोध में 265. इस तरह नरसिम्हा राव की कुर्सी बच गई।
साल भर बाद मीडिया में खबरें आनी प्रारम्भ हुईं कि अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट करने के लिए JMM के सांसदों ने राव से भारी घूस ली थी। 1996 में CBI ने मुद्दे की जांच प्रारम्भ की। सोरेन समेत JMM के छह सांसदों पर मुकदमा दर्ज हुआ। जनता दल के अजित सिंह भी घूस लेने के आरोपी बनाए गए। हालांकि, उन्होंने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इल्जाम खारिज करने से इंकार कर दिया तो नरसिम्हा राव समेत अन्य आरोपी उच्चतम न्यायालय चले गए।
क्यों फंस गए थे अजित सिंह
सुप्रीम न्यायालय को यह तय करना था कि आरोपियों को सांसद होने के चलते इस मुद्दे से छूट हासिल है या नहीं। 1998 में न्यायालय का निर्णय आया। SC ने बोला कि अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट डालने के लिए घूस लेने वाले सांसदों को अनुच्छेद 105(2) के अनुसार आपराधिक मुकदमे से छूट मिली है। अनुच्छेद 194(2) में यही प्रबंध विधायकों की रक्षा के लिए है। उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मतलब था कि राव और अन्य के विरुद्ध कोई मुकदमा नहीं बनता। हालांकि अजित सिंह को ऐसी कोई राहत नहीं मिली। उन्होंने न तो सदन में भाषण दिया था, न ही वोट। जबकि 105(2) के अनुसार मिली छूट, इन्हीं दोनों पर लागू होती है।
1998 का निर्णय पलटते हुए SC ने क्या कहा
26 वर्ष बाद, 2024 में उच्चतम न्यायालय ने उस निर्णय को पलट दिया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान बेंच ने एकमत से 1998 वाला निर्णय खारिज किया। उच्चतम न्यायालय ने बोला कि ‘रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है।‘ पीठ ने बोला कि 1998 के निर्णय का ‘सार्वजनिक हित, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक असर है’। न्यायालय ने बोला कि ‘अगर निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो इस न्यायालय द्वारा गलती की अनुमति देने का गंभीर खतरा है।‘
पीएम नरेंद्र मोदी ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने X (पहले ट्विटर) पर बोला कि ‘स्वागतम! माननीय सर्वोच्च कोर्ट का एक महान फैसला जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और प्रबंध में लोगों का विश्वास गहरा करेगा।‘