नई दिल्ली। शनिवार को ‘टीम नड्डा’ के पुनर्गठन में कई दिलचस्प बातें सामने आईं, मसलन – दिलीप घोष को हटाए जाने से यह अटकलें लगने लगीं कि अगले परिवर्तन होने पर उन्हें कैबिनेट में स्थान मिल सकती है। वहीं दूसरी तरफ सीटी रवि को कर्नाटक बीजेपी का अगला प्रमुख बनाए जाने की चर्चा जोरों पर थी और उन्हें हटा दिया गया। जिसके पीछे भगवा खेमे के तमिलनाडु “प्रयोग” के अनुरूप एक बहुत युवा और ऊर्जावान नेता और अन्य लोगों से अलग एक पसमांदा मुसलमान को आगे बढ़ाने की प्रयास थी।
हालांकि इसमें दो खास सियासी संदेश थे, जिसने यूपी में सियासी गलियारों में हलचल मचा दी और उन संभावनाओं को फिर से जगा दिया, जिसके बारे में कभी सोचा गया था लेकिन फिर वह विचार धुंधले पड़ गए थे।
क्या नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में कुर्मी बाहुल्य क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे?
पिछले वर्ष से ही इस बात पर काफी अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या बिहार के सीएम नीतीश कुमार यूपी में कुर्मी बाहुल्य सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और तब सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने इसका स्वागत किया था। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन या ‘इंडिया’ के अस्तित्व में आने के बाद से गंगा में काफी पानी बह चुका है। लेकिन, शनिवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रेखा वर्मा को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाए रखा, जो पहले से ही सांसद हैं, जबकि राधा मोहन सिंह या दिलीप घोष जैसे बड़े जनाधार वाले नेताओं को हटा दिया गया। यह कदम संभवतः उत्तर प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के एक अहम हिस्से, कुर्मी समुदाय को एक संदेश भेजने के इरादे से उठाया गया था। इस निर्णय को मुख्य तौर पर नीतीश कुमार के किसी कुर्मी बाहुल्य सीट से लड़ने के संभावित कदम के उत्तर के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी के इस विचार को जगाने की वजह से उनके फूलपुर से लड़ने की चर्चा ने बल पकड़ लिया है। कुर्मी, उत्तर प्रदेश का एक बड़ा कृषि समुदाय है, जो राज्य की जनसंख्या का लगभग 9 फीसदी है, यानी यादवों और अहीरों से संख्या में थोड़ा ही कम है।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 22 कुर्मी विधायक जीते
राजनीतिक तौर पर देखें तो उनका राज्य में काफी असर है, ऐसे में यदि उनके समुदाय का सबसे बड़ा चेहरा और वर्तमान सीएम उत्तर प्रदेश से लड़ते हैं, तो जाति के प्रति निष्ठा अन्य भावनाओं पर भारी पड़ सकती है और बीजेपी इस बात से भलीभांति अवगत है। वर्मा को रखे जाने का बीजेपी का निर्णय भी चुनावी गणित से प्रेरित लगता है। यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में, बीजेपी के 22 कुर्मी विधायक जीते, जबकि 2017 में यह संख्या 26 थी, वहीं इसके उलट, सपा के 13 कुर्मी विधायकों ने जीत हासिल की थी जो 2017 के मुकाबले दो अधिक थे। सपा इण्डिया (विपक्ष का गठबंधन) का हिस्सा है और नीतीश कुमार की जेडीयू भी इसमें शामिल है। ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, यदि नीतीश कुमार चुनाव लड़ने का निर्णय करते हैं, एक तरफ उनको समाजवादी पार्टी का सियासी समर्थन मिलेगा दूसरी तरफ अपनी जाति का भी साथ रहेगा। ।
क्या बाद में रालोद अहम किरदार निभा सकता है?
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) पश्चिमी यूपी का अहम दल है। उसने सत्तारूढ़ दल के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की आसार को सिरे से खारिज कर दिया है। खास बात यह है कि बीजेपी ने राज्य से एक भी जाट नेता को टीम नड्डा में स्थान नहीं दी है जिससे कई तरह की अटकलें लगना प्रारम्भ हो गई हैं।
क्यों महत्वपूर्ण हैं जाट
आम चुनाव में उतरने के लिए तैयारी में जुटी बीजेपी की टीम में कमोबेश सभी समुदायों – वैश्य, पिछड़ा, ठाकुर, ब्राह्मण, मुसलमान – सभी को स्थान दी गई है। बस एक प्रमख समुदाय ही गायब है, वह है जाट। हालांकि जाट राज्य की 20 करोड़ जनसंख्या का महज 2 फीसद हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 25 निर्वाचन क्षेत्रों में यह आंकड़ा 30 से 35 फीसद पर पहुंचता है। जिसकी वजह से वह महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इतनी सावधानी से तैयार की गई जाति-संतुलित टीम में बीजेपी उन्हें नजरअंदाज क्यों करेगी?राज्य के सियासी हलकों में अब कई लोगों को यह विश्वास हो गया है कि भाजपा-रालोद गठबंधन में अभी भी आसार बाकी है। रालोद मुख्य रूप से जाटों की पार्टी है, जिसने चौधरी चरण सिंह के समय में जाट-मुस्लिम सोशल इंजीनियरिंग का ताना-बाना बुना था। उनके बेटे अजीत सिंह के समय 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पार्टी की हालत खस्ता हो गई थी।
क्या होगा जयंत का रुख, ये पता चलेगा
अब पार्टी का एक ही प्रमुख आधार है-जाट, जो यूपी में कुर्मियों की तरह ही कृषि प्रधान ओबीसी हैं। और पार्टी का एक ही नेता है, अजित सिंह का बेटा जयंत सिंह। शनिवार के बाद इस बात को बहुत भरोसे के साथ बताया जा रहा है कि टीम नड्डा में जाटों की सियासी पकड़ के बावजूद अन्य समुदायों को नेता को इसलिए स्थान दी गई है क्योंकि बीजेपी को जयंत पर विश्वास है कि वह अपने दादा की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, अपने समुदाय पर पकड़ बनाए रखेंगे और राजनीति के मैदान में बीजेपी का साथ देने वाले हैं।