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अमित शाह ने ‘विजय मुहूर्त’ पर किया नामांकन

शुक्रवार दोपहर 12.39 बजे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गांधीनगर से लोकसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया. वह करीब 30 सालों से गांधीनगर में राजनीति करते आ रहे हैं. उन्होंने एक बूथ कार्यकर्ता से लेकर राष्ट्र के दिग्गज गृह मंत्री तक का यात्रा तय किया. अमित शाह ने जिस खास समय पर कल अपना नामांकन दाखिल किया, उसे ‘विजय मुहूर्त’ करार दिया. कलेक्टर एमके दवे को अपना नामांकन पत्र सौंपते हुए अमित शाह ने बोला कि यह लोकसभा चुनाव “विकसित भारत” के लिए एक मजबूत नींव बनाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक बहुत बढ़िया तीसरा जनादेश देने के बारे में है.

अमित शाह ने बोला कि वह गांधीनगर सीट से उन्हें फिर से मौका देने के लिए अपनी पार्टी के आभारी हैं. इस सीट का अगुवाई पहले अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गजों ने किया है. उन्होंने बोला कि वह यहां के वोटर हैं. शाह ने कहा, “सांसद बनने से पहले मैं इस सीट के विधानसभा क्षेत्रों का अगुवाई करने वाला एक विधायक था. जब भी मैंने गांधीनगर के लोगों से वोट मांगा, उन्होंने मुझे अपना आशीर्वाद दिया है.

जीत का अंतर बढ़ाने की लड़ाई
भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली गुजरात की गांधीनगर सीट अब राष्ट्र के गृह मंत्री अमित शाह के नाम से पूरी तरह जुड़ चुकी है. साल 2019 के चुनाव में उन्होंने इस सीट से जबरदस्त मतों से जीत का कीर्तिमान बनाया था. इसके लिए उन्हें गांधीनगर में बार-बार जाकर प्रचार की आवश्यकता नहीं पड़ी. इस बार भी नामांकन के बाद शाह का गांधीनगर में दोबारा प्रचार का अभी कोई कार्यक्रम नहीं है. इस सीट पर अब सिर्फ़ जीत-हार के अंतर की चर्चा है. बीजेपी नेताओं का बोलना है कि इस बार भी लड़ाई जीत का अंतर बढ़ाने की है.

गांधीनगर सीट बीजेपी का अभेद्य किला रही है. यहां से कई हाई प्रोफाइल हस्तियां चुनाव लड़ चुकी हैं. पहले लाल कृष्ण आडवाणी और अब अमित शाह ने इस भरोसे को बहुत मजबूत बना दिया है. बीते सात चुनाव में बीजेपी यहां लगातार जीत रही है. 35 वर्षों में यह सीट बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट बन गई है.

समर्थक मानते, शाह के लिए हर सीट सुरक्षित
जानकारों का बोलना है कि अमित शाह का कद इतना बड़ा है कि इस समय गांधीनगर ही नहीं गुजरात की हर सीट उनके लिए सुरक्षित सीट मानी जा सकती है. समर्थक कहते हैं कि गांधीनगर का हर कार्यकर्ता यहाँ ख़ुद अमित शाह की छाया बनकर काम करता है. वहाँ उन्हें प्रचार की आवश्यकता इसलिए भी नहीं पड़ती क्योंकि भाजपा और गांधीनगर का अटूट भरोसे का संबंध बन चुका है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने गांधीनगर सीट पर कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार सीजे चावड़ा को 5.57 लाख वोटों से पराजित किया था. तब शाह को आठ लाख 94 हजार 624 वोट मिले जबकि कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी को तीन लाख 37 हजार 610 वोट मिले. यह इस सीट पर जीत का अब तक का सबसे बड़ा अंतर है.

शाह का कद बढ़ा
जानकारों का बोलना है कि साल 2019 में अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद जिस तरह कई बड़े निर्णय उनके मंत्रालय के भीतर लिए गए उससे बीजेपी को राष्ट्रवाद की पिच पर मुखर होने का एजेंडा मिला. धारा 370 को खत्म करना हो, नागरिकता संशोधन कानून लागू करना हो या फिर जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पर नकेल के लिए अलगवादियों पर ठोस कार्रवाई, गृह मंत्रालय के इन सख्त फैसलों ने राष्ट्र का सियासी चुनावी एजेंडा तय किया. इससे अमित शाह का कद भी जबरदस्त बढ़ा.

मजबूत रणनीतिक शिल्पकार
अगर पीएम मोदी के मजबूत नेतृत्व के साथ कोई एक मजबूत रणनीतिक शिल्पकार है जिसने बिना श्रेय लिए पार्टी की अहम चुनावी रणनीति बनाई तो वह गृह मंत्री अमित शाह हैं. उनकी अपनी सीट से ताल्लुक रखने वाले विरोधी भी उनकी बड़ी शख्सियत को स्वीकार करते हैं. कांग्रेस पार्टी ने इस बार सोनल पटेल को उनके विरुद्ध उतारा है. वह कांग्रेस पार्टी की विचाराधारा के आधार पर वोट मांग रहे हैं. उनका बोलना है कि उन्होंने टिकट मांगा नहीं था. पार्टी ने मैदान में उतार दिया तो वह लड़ाई को तैयार हैं.

गांधीनगर क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें
गांधीनगर लोकसभा सीट के भीतर सात विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें उत्तर गांधीनगर, कलोल, वेजलपुर, सानंद, घाटलोदिया, साबरमती और नारनपुरा शामिल हैं. इन सात सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं. इस क्षेत्र में 19 लाख 45 हजार 149 के करीब मतदाता हैं.

अटल-आडवाणी रहे सांसद
भाजपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल दो कद्दावर हस्तियां इस सीट से सांसद रही हैं. लालकृष्ण आडवाणी यहां से 1998 से 2014 तक सांसद रहे जबकि 1996 में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यहां से लोकसभा चुनाव जीता था. हालांकि बाद में उन्होंने सीट छोड़ दी थी. उपचुनाव में बीजेपी के इस किले को भेदने के लिए कांग्रेस पार्टी ने मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार कहे जाने वाले राजेश खन्ना को टिकट दिया. हालांकि, वह बीजेपी के विजयभाई पटेल से चुनाव हार गये. शाह ने 1991 में, आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला था. 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया. इस चुनाव में भी शाह ने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला.

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