अंगुलियों पर लगेगी 55 करोड़ रुपए की अमिट स्याही
इस बार लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल होने वाली अमिट स्याही का खर्च पिछली बार की तुलना में 66 प्रतिशत बढ़ गया है। 2019 में आयोग ने स्याही की 26 लाख शीशियां खरीदी थीं, जिस पर 33 करोड़ रुपये का खर्च आया था। इस बार आयोग ने करीब 55 करोड़ रुपये से 26.55 लाख स्याही की शीशियां खरीदी हैं।
अमिट स्याही बनाने वाली राष्ट्र की एकमात्र कंपनी एमपीवीएल
स्याही पर खर्च के बढ़ने का प्रमुख कारण सिल्वर नाइट्रेट है, जो स्याही का प्रमुख घटक है। इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण खर्च में वृद्धि होती है। स्याही बनाने वाली राष्ट्र की एकमात्र कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) के अनुसार, चुनाव आयोग के आदेश पर 25 मार्च तक सभी राज्यों को उनके हिस्से की स्याही पहुंचा दी गयी है।
1962 के चुनाव में पहली बार हुआ था इस स्याही का इस्तेमाल
1962 में पहली बार इस स्याही का इस्तेमाल किया गया था। तब 3.89 लाख शीशियों का इस्तेमाल हुआ था। इस पर 2.27 लाख रुपये खर्च हुए थे। 2024 में अमिट स्याही के भारतीय चुनावों में इस्तेमाल को भी 62 वर्ष हो जायेंगे।
- 1962 में पहली बार इस स्याही का किया गया था इस्तेमाल
- 1962 में इस अमित स्याही पर खर्च हुए थे 2.27 लाख रुपये
- 66 प्रतिशत अधिक खर्च होंगे पिछली बार से
- 33 करोड़ रुपये खर्च हुए थे 2019 में
- 26.55 लाख शीशियों का होगा इस्तेमाल इस बार
धांधली का निवारण अमिट स्याही
भारत में हुए पहले आम चुनाव 1951-52 में मतदाताओं की अंगुली में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था। चुनाव आयोग को किसी दूसरे की स्थान वोट डालने और दो बार वोट डालने की शिकायतें मिलीं। गड़बड़ी रोकने के लिए आयोग में कई विकल्पों पर विचार हुआ, लेकिन निवारण अमिट स्याही के रूप में मिला।
30 से अधिक राष्ट्रों को अमिट स्याही का निर्यात करता है मैसूर पेंट्स
आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इण्डिया (एनपीएल) से ऐसी स्याही बनाने के बारे में बात की, जो पानी या किसी रसायन से भी मिट न सके। एनपीएल ने मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को इस स्याही को बनाने का ऑर्डर दिया। 1962 से लेकर अब तक एमपीवीएल ही राष्ट्र में अमिट स्याही की सप्लाई करती आ रही है। मैसूर पेंट्स पूरे विश्व के 30 से अधिक राष्ट्रों में अमिट स्याही का निर्यात भी करता है।
कोई नहीं जानता स्याही का गोपनीय फॉर्मूला
मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड ने कभी भी इस स्याही को बनाने के ढंग को सार्वजनिक नहीं किया। इसका कारण कहा गया कि यदि फॉर्मूले को सार्वजनिक किया गया, तो लोग इसके मिटाने का तरीका खोज लेंगे और इसका उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। हालांकि, जानकारों कहते हैं कि स्याही में सिल्वर नाइट्रेट मिला होता है। इंक को तैयार करने में पूरी सुरक्षा और गोपनीयता का ख्याल रखा जाता है।