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क्या है बीटिंग द रिट्रीट, जानें इसका इतिहास, महत्व और क्यों मनाया जाता है…

इतिहास न्यूज डेस्क !! बीटिंग द रिट्रीट (अंग्रेज़ी: Beating The Retreat) हिंदुस्तान में गणतंत्र दिवस के अवसर पर हुए आयोजनों का आधिकारिक रूप से समाप्ति की घोषणा है इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरतापूर्वक सजाया जाता है

क्या है ‘बीटिंग द रिट्रीट’

‘बीटिंग द रिट्रीट’ सोलहवीं सदी के ब्रिटेन की परंपरा है ‘बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी’ का वास्तविक नाम ‘वॉच सेटिंग’ है और सूर्य डूबने के समय यह कार्यक्रम होता है 18 जून, 1690 में इंग्‍लैंड के राजा जेम्‍स टू ने अपनी सेनाओं को उनके ट्रूप्‍स के वापस आने पर ड्रम बजाने का आदेश दिया था सन 1694 में विलियम थर्ड ने रेजीमेंट के कैप्‍टन को ट्रूप्‍स के वापस आने पर गलियों में ड्रम बजाकर उनका स्‍वागत करने का नया आदेश जारी किया लेकिन हिंदुस्तान में यह कार्यक्रम गणतंत्र दिवस जलसों के आधिकारिक समाप्ति का सूचक है इस दिन बहुत बढ़िया ढंग से विदाई कार्यक्रम आयोजित होता है और इस रस्म में राष्ट्रपति विशेष तौर से पधारते हैं

‘बीटिंग द रिट्रीट’ सदियों पुरानी सेना परंपरा है, जिसके अनुसार जब सेनाएं सूर्यास्त के बाद युद्ध मैदान से वापस लौटती थीं, तो एक वापसी बिगुल बजाया जाता था, जिसका मतलब होता था कि अब लड़ाई रोक दी जाए, तो सभी अपने हथियार रख देते थे और युद्ध स्थल से चले जाते थे इसे ही ‘बीटिंग द रिट्रीट’ बोला जाता है हर वर्ष इसी तर्ज़ पर 26 जनवरी के चार दिवसीय कार्यक्रम के दौरान आख़िरी दिन विजय चौक पर ‘बीटिंग द रिट्रीट’ का आयोजन होता है इस दौरान कई भिन्न-भिन्न बैंड अपनी प्रस्तुति देते हैं और बाद में रिट्रीट का बिगुल वादन होता है जब सभी बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाकर अपने-अपने बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते हैं इस बिगुल के ज़रिए ये कहा जाता है कि कार्यक्रम खत्म हो गया है

2022 का समारोह

साल 1950 से लगातार इस कार्यक्रम के समाप्ति में ‘अबाइड विद मी’ (Abide With Me) गाने की धुन बजाई जा रही है, लेकिन वर्ष 2020 में एक ख़बर में बोला गया कि अब ‘बीटिंग द रिट्रीट’ सेरेमनी में ‘अबाइड विद मी’ गाने की धुन नहीं बजाई जाएगी और इसकी स्थान ‘वंदे मातरम’ बजेगा हालांकि, तब ऐसा नहीं हुआ और 2020 और 2021 में इसे ही बजाया गया

गाने का इतिहास

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस गाने को स्कॉटलैंड के एंगलिकन मिनिस्टर हेनरी फ़्रांसिस ने लिखा था सादगी और दुख में गाए जाने वाले इस गाने को ‘हिम’ बोला जाता है, जिसे ज़्यादातर चर्च में गाया जाता था इसे अक्सर इंटरनेशनल म्यूज़िक कपोंज़र विलियम हेनरी मोंक की ट्यून पर गाया जाता है इसीलिए इस गाने को ‘बीटिंग द रिट्रीट’ में सेना के बैंड के द्वारा बड़े ही सादगी से बजाया जाता है हेनरी फ़्रांसिस ने इस गाने को 1820 में लिखा था, जब वो अपने उस दोस्त से मिलकर जो अपनी आखिरी सांस ले रहा था इस दुखभरे गाने में उन्होंने अपने दर्द को कहा था और 1847 में अपने मरने तक ये गाना अपने पास ही रखा था पहली बार ये गाना हेनरी फ़्रांसिस के आखिरी संस्कार के मौके पर ही गाया गया था ये गाना ईसाई धर्म में काफ़ी लोकप्रिय है इस गाने को टाइटैनिक के डूबने पर और पहले विश्व युद्ध के दौरान कई बार गाया गया था इसे इंडियन आर्मी में नहीं, बल्कि कई राष्ट्रों की सेना में शहीदों की याद में गाया जाता है

भारत से रिश्ता

कहा जाता है कि महात्मा गांधी का ‘वैष्णव जन तो’ और ‘रघुपति राघव राजा राम’ के साथ-साथ ‘अबाइड विद मी’ गाने की धुन भी उनके फ़ेवरेट गानों में से एक थी इस धुन को गांधीजी ने सबसे पहले मैसूर पैलेस बैंड से सुना था तब से माना जाता है कि महात्मा गांधी की वजह से भी ‘बीटिंग द रिट्रीट’ में इस धुन को गाया जाता है

समारोह का आयोजन

हर साल 29 जनवरी की शाम को अर्थात् गणतंत्र दिवस के तीसरे दिन ‘बीटिंग द रिट्रीट’ का आयोजन किया जाता है यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से शुरुआत होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं ड्रमर्स द्वारा ‘एबाइडिड विद मी’ (यह महात्मा गाँधी की प्रिय धुनों में से एक कही जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्‍स बजाई जाती हैं, जो काफ़ी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्‍य बनता है इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब तीनों सेना के बैंड मास्‍टर राष्ट्रपति के नजदीक जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं तब सूचित किया जाता है कि ‘समापन समारोह’ पूरा हो गया है बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्‍छा बजाते हैं ठीक शाम 6 बजे ‘बगलर्स रिट्रीट’ की धुन बजाते हैं और राष्‍ट्रीय ध्‍वज को उतार लिया जाता है तथा राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समाप्ति होता हैं

बीटिंग द रिट्रीट का प्रारम्भ

भारत में बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी की आरंभ सन 1950 से हुई उस समय इंडियन आर्मी के मेजर रॉबर्ट्स ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स के डिस्‍प्‍ले के साथ पूरा किया इस डिस्‍प्‍ले में मिलिट्री बैंड्स, पाइप्‍स और ड्रम बैंड्स, बगर्ल्‍स और ट्रंपेटर्स के साथ आर्मी की विभिन्‍न रेजीमेंट्स और नौसेना और वायु सेना के बैंड्स भी शामिल थे इस सेरेमनी की आरंभ तीनों सेनाओं के बैंड्स के मार्च के साथ होती है और इस दौरान वह ‘कर्नल बोगे मार्च’, ‘संस ऑफ द ब्रेव’ और ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ जैसी धुनों को बजाते हैं सेरेमनी के दौरान इंडियन आर्मी का बैंड पारंपरिक स्‍कॉटिश धुनों और भारतीय धुनों, जैसे- ‘गुरखा ब्रिगेड,’ नीर की ‘सागर सम्राट’ और ‘चांदनी’ जैसी धुनों को बजाता है आखिर में सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड्स एक साथ परफॉर्म करते हैं आजकल कॉमनवेल्‍थ राष्ट्रों की सेनाएं इस कार्यक्रम को परंपरा के तौर पर निभाती हैं इस कार्यक्रम को कुछ लोग नए बैंड मेंबर्स के लिए उनका कौशल साबित करने वाला टेस्‍ट मानते हैं तो कुछ इसे मुश्किल ड्रिल्‍स के अभ्‍यास का तरीका भी मानते हैं

दो बार रद्द हुआ कार्यक्रम

वर्ष 1950 में हिंदुस्तान के गणतंत्र बनने के बाद ‘बीटिंग द रिट्रीट’ कार्यक्रम को अब तक दो बार रद्द करना पड़ा है, 27 जनवरी 2009 को भूतपूर्व राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण का लंबी रोग के बाद आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में मृत्यु हो जाने के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम रद्द कर दिया गया वह हिंदुस्तान के आठवें राष्ट्रपति थे और उनका कार्यकाल 1987 से 1992 तक रहा इससे पहले 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था

बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम 2014

29 जनवरी को दिल्ली में रंगारंग बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम के साथ गणतंत्र दिवस कार्यक्रम का समाप्ति हो गया बुधवार शाम विजयचौक पर चले संगीतमय कार्यक्रम में तीनों भारतीय सेनाओं के बैंडों ने एकल और सामूहिक प्रस्तुति दीं कार्यक्रम की ख़ासियत वे नयी धुनें रहीं, जिन्हें इस साल ख़ासतौर पर तैयार किया गया था इस पूरे कार्यक्रम में एक और ख़ास बात रहीं कि बीस वर्ष बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 16वीं सदी से चली आ रही एक परंपरा को पुनजीर्वित करते हुए आज गणतंत्र दिवस की समाप्ति परेड ‘बीटिंग रिट्रीट’ के लिए घोड़े बग्गी पर सवार होकर राजपथ पर सेना बलों की टुकड़ियों को गाजे बाजे के साथ बैरकों में वापस भेजा इस मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, पीएम डॉमनमोहन सिंह, रक्षामंत्री ए के एंटनी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जैसे कई गणमान्य लोगों ने कार्यक्रम का आनंद लिया

समारोह की कई प्रस्तुतियां लोगों के आकर्षण का केंद्र बनीं इस कार्यक्रम की आरंभ ‘जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया’ धुन से हुई इसे मेजर महेंद्र दास ने तैयार किया था फिर सूबेदार जामन सिंह द्वारा रचित धुन ‘हे कांचा’ पर पाइप और ड्रम को बजाया गया वहीं नायब सूबेदार दीनानाथ द्वारा तैयार की गई धुन ‘पाए जांदे पाले’ को पहली बार पेश किया गया महात्मा गांधी की पसंदीदा धुन ‘अबाइड विद मी’ को जब सेना के बैंड ने प्रस्तुत किया, तो विजय चौक पर कार्यक्रम के साक्षी बनने आए हजारों लोग तालियां बजाने को विवश हो गए इस वर्ष बीटिंग रिट्रीट में 14 मिलिट्री बैंड और आर्मी की विभिन्न रेजीमेंट के पाइप और ड्रम ने भाग लिया इसके अतिरिक्त भारतीय नौसेना और वायु सेना के मिलिट्री बैंडों ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया वहीं कार्यक्रम के समाप्ति के समय राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के अतिरिक्त संसद भवन पर की गई लाइटिंग का नज़ारा देख सभी लोग दंग रह गए

एशियन गेम्‍स समारोह

इसी तरह का कार्यक्रम साल 1982 में राष्ट्र में संपन्‍न हुए एशियन गेम्‍स के समय प्रस्तुत किया गया था इंडियन आर्मी के सेवानिवृत्त संगीत निर्देशक स्‍वर्गीय हैराल्‍ड जोसेफ, भारतीय नौसेना के जेरोमा रॉड्रिग्‍स और भारतीय वायु सेना के एमएस नीर को इस कार्यक्रम का श्रेय दिया जाता है

बाघा बॉर्डर

भारत और पाक के अमृतसर स्थित ‘बाघा बॉर्डर’ पर इस कार्यक्रम की आरंभ साल 1959 में की गई थी कार्यक्रम को रोजाना सूर्य ढलने से कुछ घंटे पहले प्रस्तुत किया जाता है बाघा बॉर्डर पर होने वाले इस कार्यक्रम में सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्‍तान रेंजर्स के जवान हिस्‍सा लेते हैं

गूगल डूडल

गणतंत्र दिवस परेड में होने वाले मोटर साइकिल प्रदर्शन जैसी एक तस्वीर दिखाते हुए गूगल के डूडल ने रविवार, 26 जनवरी, 2014 को हिंदुस्तान का 65वां गणतंत्र दिवस मनाया था 26 जनवरी, 1950 को हिंदुस्तान का संविधान लागू हुआ था और उस दिन राष्ट्र ने अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया था हिंदुस्तान के राष्ट्रीय ध्वज के तीन रंग- केसरिया, सफ़ेद और हरे रंग का डूडल चालित नहीं था, लेकिन जब दर्शकों ने इस पर क्लिक किया तो सर्च पेज ख़बरों और गणतंत्र दिवस की जानकारियों के साथ खुला था

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