पाकिस्तान में 5000 साल पुराना यह मंदिर भगवान शिव को है समर्पित
कटासराज मंदिर का पौराणिक महत्व
कटास राज मंदिर पूरे विश्व के हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसा माना जाता है कि जिस तालाब के चारों ओर कटास मंदिर बना है वह ईश्वर शिव के आंसुओं से भरा है। कहते हैं कि ईश्वर शिव अपनी पत्नी सती के साथ यहां रहते थे। उनकी मौत के बाद, दुख से त्रस्त शिव अपने आंसू नहीं रोक सके। वे इतना रोए थे, कि उनके आसूंओं से दो तालाब निर्मित हो गए। एक कटारसराज में है, तो दूसरा राजस्थान के पुष्कर में। मंदिर में स्थित इस कुंड को कटाक्ष कुंड भी कहते हैं। तालाब और मंदिर का नाम भी एक ऐसे शब्द से लिया गया है जो उनके दुख को व्यक्त करता है। कटास का अर्थ आंखाें में आंसू से होता है।
12 वर्ष यहां रहे थे पांडव
एक अन्य किवदंती के अनुसार, कटास राज वही स्थान है जहां पांडव भाई अपने 12 वर्ष के वनवास के दौरान रहे थे। वनों में भटकते हुए जब पांडवों को प्यास लगी, तो उनमें से एक कटाक्ष कुंड के पास जल लेने आया। उस समय इस कुंड पर यक्ष का अधिकार था। उसने जल लेने आए पांडव को अपने प्रश्न का उत्तर देने पर ही जल देने को कहा। उत्तर न देने पर यक्ष ने उसे मूर्छित कर दिया। इसी तरह एक एक करके सभी पांडव आए और मूर्छित होते गए। अंत में युधिष्ठिर आए और उन्होंने अपनी बुद्धिमता का परिचय देते हुए सभी प्रश्नों के ठीक उत्तर दिए। यक्ष इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने पांडवों को वापस चेतना में लाकर जल पीने की अनुमति दे दी।
कटासराज का ऐतिहासिक महत्व
इसमें बौद्ध शासन और हिंदू शाही वंश के दौरान लगभग 900 वर्ष पहले बने बौद्ध स्तूप, हवेलियां और मंदिर शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर मंदिर ईश्वर शिव को समर्पित हैं और कुछ मंदिर ईश्वर हनुमान और राम को समर्पित हैं। परिसर के अंदर एक प्राचीन गुरुद्वारा के अवशेष भी हैं। जहां गुरु नानक ने 19वीं शताब्दी में पूरे विश्व की यात्रा करते हुए निवास किया था।
मंदिर की वास्तुकला
यहां के मंदिरों की स्थापत्य कला कश्मीरी है। इसमें मंदिर की छत शिखर से नुकीली होती है। मंदिर को चौकोर आकार का बनाया गया है, जिसमें रामचंद्र जी का मंदिर सबसे बड़ा है। यहां के मंदिरों की दीवार पर खूबसूरत नक्काशी के साथ भित्ति चित्र भी देखने को मिलेंगे।
शिवरात्रि पर एकत्रित होते हैं लोग
आस्था की इन महत्वपूर्ण कहानियों के कारण हर वर्ष भिन्न-भिन्न अवसरों पर हिंदू इस मंदिर में एकत्रित होते हैं। खासतौर से शिवरात्रि के मौके पर यहां खूब भीड़ होती है। हालांकि वर्तमान में मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन तीर्थयात्री यहां पांडव भाइयों के बलिदान की स्मृति में यहां आते हैं और ईश्वर शिव के दुख की वंदना करते हैं। माना जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।