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400 साले पुराने आबनूस से बनी बुलंद दरवाजे की बड़ी किवाड़ें आज भी हैं वैसे के वैसे

बुलंद दरवाजे को सम्राट अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त करने की याद में 1602 ई में इसका निर्माण करवाया था आप आज भी प्रवेश द्वार के पूर्वी टॉर्न पर फ़ारसी में शिलालेख देख पाएंगे, जिनपर 1601 में दक्कन पर अकबर की विजय के बारे में बताते हैं 42 सीढ़ियों के ऊपर उपस्थित बुलंद दरवाजा 53.63 मीटर ऊंचा और 35 मीटर चौड़ा है लाल बलुआ पत्थर से बने इसे विशाल दरवाजे को सफेद संगमरमर से सजाया गया है दरवाजे के आगे और स्तम्भों पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं आपको बता दें, दरवाजा आंगन और एक बड़ी जामा मस्जिद की ओर खुलता है दरवाजा गुंबदों और मीनारों से सजा है

बुलंद दरवाजे पर बना पारसी शिलालेख अकबर के खुले विचारों का प्रतीक है बुलंद दरवाजे के तोरण पर ईसा मसीह से जुड़ी बाइबल की कुछ पक्तियां भी लिखी हुई देखी जा सकती हैं जिस तरह से बुलंद दरवाजे पर बाइबल की पक्तियों को देखा जाता है, ये उपस्थिति अकबर को धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक मानी जाती है नजारों का अनुभव करने के लिए और विशाल दरवाजे को देखने के लिए यहां हजारों-लाखों में लोग आते हैं

बुलंद दरवाजे के निर्माण में 12 वर्ष का समय लग गया था बुलंद दरवाजे में करीबन 400 साले पुराने आबनूस से बनी बड़ी किवाड़ें आज भी वैसे की वैसे ही हैं शेख सलीम की मान्यता की वजह से कई यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगाई हुई घोड़े की नाल देख सकते हैं

 

शेख की दरगाह में जाने के लिए इसी दरवाजे से गुजरना पड़ता है बाईं ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख की मज़ार है मज़ार के पास उनके संबंधियों की कब्रें भी देख सकते हैं दरवाजे का इस्तेमाल प्राचीन काल में फतेहपुर सिकरी के दक्षिण पूर्वी द्वार पर गार्ड्स को खड़ा करने के लिए होता था बंदरगाह के पास से गुफा के प्रवेश द्वार तक एक छोटी ट्रेन भी चलती है, जिसका किराया 10 रुपए प्रति आदमी है

आगरा में बुलंद दरवाजा तक पहुंचने के लिए, हवाई मार्ग से आपको आगरा हवाई अड्डे पर उतरना होगा, जो शहर के केंद्र से 7 किमी दूर है दिल्ली फ्लाइट से आगरा पहुंचने में महज 40 मिनट लगते हैं मुख्य रेलवे स्टेशन आगरा कैंट है आगरा में मुख्य बस स्टैंड आगरा किला और ईदगाह बस स्टैंड हैं कई लग्जरी टैक्सी या बसें हैं जो प्रत्येक दिन आगरा तक जाती हैं

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