लाइफ स्टाइल

Raja Bakhtawar Singh Death Anniversary :1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मध्य प्रदेश में अंग्रेजों से किए संघर्ष

  राजा बख्तावर सिंह (अंग्रेज़ी: Raja Bakhtawar Singh, जन्म- ?; शहादत- 10 फ़रवरी, 1858) मध्य प्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे के शासक थे, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मध्य प्रदेश में अंग्रेजों से संघर्ष किया लंबे संघर्ष के बाद छलपूर्वक अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया 1858 में इंदौर के महाराजा यशवंत अस्पताल परिसर के एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया उनका परिवार रिंगनोद किले में जाकर रहने लगा जो अमझेरा का दूसरा किला था अमझेरा के आखरी शासक राव लक्ष्मण सिंह जी राठौड़ थे

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

मध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्य पर्वत की सुरम्य श्रृंखलाओं के बीच द्वापरकालीन ऐतिहासिक अझमेरा नगर बसा है 1856 में यहाँ के राजा बख्तावर सिंह ने अंग्रेजों से खुला युद्ध किया; पर उनके आसपास के कुछ राजा अंग्रेजों से मिलकर चलने में ही अपनी भलाई समझते थे राजा ने इससे हताश न होते हुए तीन जुलाई, 1857 को भोपावर छावनी पर धावा कर उसे कब्जे में ले लिया इससे घबराकर कैप्टेन हचिन्सन अपने परिवार सहित वेश बदलकर झाबुआ भाग गया क्रान्तिकारियों ने उसका पीछा किया; पर झाबुआ के राजा ने उन्हें संरक्षण दे दिया इससे उनकी जान बच गयी

भोपावर से बख्तावर सिंह को पर्याप्त युद्ध सामग्री हाथ लगी छावनी में आग लगाकर वे वापस लौट आये उनकी बहादुरी की बात सुनकर धार के 400 पुरुष भी उनकी सेना में शामिल हो गये; पर अगस्त, 1857 में इन्दौर के राजा तुकोजीराव होल्कर के योगदान से अंग्रेजों ने फिर भोपावर छावनी को अपने नियन्त्रण में ले लिया इससे नाराज होकर बख्तावर सिंह ने 10 अक्तूबर, 1857 को फिर से भोपावर पर धावा बोल दिया इस बार राजगढ़ की सेना भी उनके साथ थी तीन घंटे के संघर्ष के बाद कामयाबी एक बार फिर राजा बख्तावर सिंह को ही मिली युद्ध सामग्री को कब्जे में कर उन्होंने सेना छावनी के सभी भवनों को ध्वस्त कर दिया

ब्रिटिश सेना ने भोपावर छावनी के पास स्थित सरदारपुर में मोर्चा लगाया जब राजा की सेना वापस लौट रही थी, तो ब्रिटिश तोपों ने उन पर गोले बरसाये; पर राजा ने अपने सब सैनिकों को एक ओर लगाकर सरदारपुर शहर में प्रवेश पा लिया इससे घबराकर ब्रिटिश फौज हथियार फेंककर भाग गयी लूट का सामान लेकर जब राजा अझमेरा पहुँचे, तो धार नरेश के मामा भीमराव भोंसले ने उनका भव्य स्वागत किया

धार क़िले अंग्रेज़ी क़ब्ज़ा

इसके बाद राजा ने मानपुर गुजरी की छावनी पर तीन ओर से हमलाकर उसे भी अपने अधिकार में ले लिया 18 अक्तूबर को उन्होंने मंडलेश्वर छावनी पर धावा कर दिया वहाँ तैनात कैप्टेन केण्टीज और जनरल क्लार्क महू भाग गये राजा के बढ़ते उत्साह, साहस एवं सफलताओं से घबराकर अंग्रेजों ने एक बड़ी फौज के साथ 31 अक्तूबर, 1857 को धार के किले पर क़ब्ज़ा कर लिया नवम्बर में उन्होंने अझमेरा पर भी धावा किया

गिरफ्तारी

राजा बख्तावर सिंह का इतना आतंक था कि ब्रिटिश सैनिक बड़ी मुश्किल से इसके लिए तैयार हुए; पर इस बार राजा का भाग्य अच्छा नहीं था तोपों से किले के दरवाजे तोड़कर अंग्रेज़ सेना नगर में घुस गयी राजा अपने अंगरक्षकों के साथ धार की ओर निकल गये; पर बीच में ही उन्हें धोखे से अरैस्ट कर महू कारावास में बन्द कर दिया गया और घोर यातनाएँ दीं इसके बाद उन्हें इन्दौर लाया गया राजा के सामने 21 दिसम्बर, 1857 को कामदार गुलाबराज पटवारी, मोहनलाल ठाकुर, भवानीसिंह सन्दला आदि उनके कई साथियों को फाँसी दे दी गयी; पर राजा विचलित नहीं हुए[1]

शहादत

वकील चिमनलाल राम, सेवक मंशाराम तथा नमाजवाचक फकीर को काल कोठरी में बन्द कर दिया गया, जहाँ घोर शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ सहते हुए उन्होंने दम तोड़ा अन्ततः 10 फ़रवरी, 1858 को इन्दौर के एमटीएच कम्पाउण्ड में राष्ट्र के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले राजा बख्तावर सिंह को भी फाँसी पर चढ़ा दिया गया

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