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Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत आज, जाने पूजा का शुभ मुहूर्त

Pradosh Vrat Ki Katha: धार्मिक विद्या में प्रदोष व्रत को काफी महत्व दिया गया है प्रदोष व्रत रखने से भोलेनाथ की असीम कृपा पाने के साथ अपने जीवन के कष्टों का निवारण किया जा सकता है प्रदोष तिथि के दिन संध्या के समय पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है वहीं, यह व्रत प्रदोष व्रत की कथा का पाठ किए बिना अधूरा माना जाता है इसलिए आज संध्या के समय प्रदोष व्रत की कथा का पाठ कर शिवजी की पूरी श्रद्धा के साथ आरती करें

शुभ मुहूर्त- 
शुक्ल त्रयोदशी तिथि शुरुआत- दोपहर 03 बजकर 07 मिनट, 11 अक्टूबर
शुक्ल त्रयोदशी तिथि समाप्ति- शाम 05 बजकर 23 मिनट, 12 अक्टूबर
संध्या पूजा मुहूर्त- शाम 05 बजकर 59 मिनट – रात 08 बजकर 18 मिनट तक

प्रदोष व्रत कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी उसके पति का स्वर्गवास हो गया था उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी वह स्वयं का और अपने पुत्र का पेट पालती थी एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल हालत में कराहता हुआ मिला ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आयी वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था दुश्मन सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर ईश्वर ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का शादी कर दिया जाए वैसा ही किया गया ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही ईश्वर शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी प्रदोष व्रत के असर और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना पीएम बनाया मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के असर से दिन बदले, वैसे ही ईश्वर शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं

शिव जी की आरती

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं परफेक्ट हैं विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के जानकार की राय जरूर लें

 

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