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मां को औलाद के बिगड़ने का है डर, जानिए जवान होते बच्चों को कैसे संभालें

सभी माता-पिता अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देना चाहते हैं, उनकी हर इच्छा को पूरा करना चाहते हैं। लेकिन बच्चे जब पेरेंट्स से ऐसी डिमांड कर बैठते हैं जो उनकी पहुंच से बाहर है, तब क्या होता है?

चैट रूम में आज चर्चा एक ऐसे बेटे की जो पेरेंट्स से बाइक मांग रहा है, लेकिन पेरेंट्स के लिए उसकी ये डिमांड पूरा करने में असमर्थ हैं। रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. माधवी सेठ बता रही हैं कि बच्चों की डिमांड को कब पूरा करें और कब नहीं।

  1. बेटा पीयर प्रेशर में हमसे बाइक की डिमांड कर रहा है। फाइनेंशियल कंडीशन अभी बेटे को बाइक दिलाने की नहीं है। इसके लिए हमें लोन लेना पड़ेगा। मैं समझ नहीं पा रही हूं कि उसे कैसे समझाया जाए। बेटा जिद पर अड़ा है। उसका कहना है कि सभी दोस्तों के पास बाइक है इसलिए उसे भी चाहिए। मैं उसे कैसे मनाऊं जिससे वह हमारी स्थिति समझ भी जाए और उसका दिल भी न टूटे।

माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी लाइफस्टाइल देने के लिए दिनरात मेहनत करते हैं। पेरेंट्स चाहते हैं कि उन्हें जो चीजें नहीं मिलीं उनके बच्चों को उन चीजों के लिए तरसना न पड़े। लेकिन इसके लिए बच्चों की हर फरमाइश को पूरा करना सही नहीं। इससे बच्चे चीजों की कद्र करना नहीं सीख पाते। उन्हें लगता है कि पेरेंट्स उन्हें कुछ भी लाकर दे सकते हैं।

अपनी आर्थिक स्थिति बताएं

कई पेरेंट्स ये सोचते हैं कि बच्चों से फाइनेंशियल मैटर डिस्कस नहीं करने चाहिए। लेकिन ऐसा करना सही नहीं। बड़े होते बच्चों को पेरेंट्स की आर्थिक स्थिति मालूम होनी चाहिए।

इसका फायदा ये है कि बच्चों को पता होता है कि उन्हें पेरेंट्स से किस चीज की डिमांड करनी चाहिए और किस चीज की नहीं। बच्चों से अपनी फाइनेंशियल कंडीशन छुपाएं नहीं। झूठा दिखावा करने के बजाय उसे सच्चाई बताएं। जरूरत, शौक और इच्छाओं में फर्क करना सिखाएं।

हर डिमांड को पूरा करना जरूरी नहीं

अगर पेरेंट्स अपने बच्चों की हर डिमांड को पूरा करते हैं। बच्चों के मांगते ही उनकी हर फरमाइश पूरी कर देते हैं तो वो चीजों की कद्र करना नहीं सीख पाते। बच्चा अगर ऐसी चीज मांगे जो आपकी पहुंच से दूर है तो उसे अपनी माली हालत के बारे में बताएं। इससे बच्चे को ये बात समझ आ जाएगी कि उसने गलत डिमांड कर ली है। वह स्थिति को समझेगा और आगे से ऐसी डिमांड नहीं करेगा।

अपने बड़े होते बच्चों को उन बच्चों के बारे में भी बताएं, जिन्हें गिफ्ट तो दूर, दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता। बच्चों का जीवन की कड़वी सच्चाई से सामना कराने के लिए उनके बर्थडे या त्योहार के समय उन्हें ऐसे बच्चों को गिफ्ट देने के लिए कहें, जिनके माता-पिता नहीं हैं।

अपनी उम्र के बच्चों की लाचारी देखकर आपके बच्चे को ये समझ में आ जाएगा कि दुनिया में हर किसी को हर चीज आसानी से नहीं मिलती, उसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

इच्छा और जरूरत में फर्क करना सिखाएं

बच्चे को इच्छा और जरूरत में फर्क करना सिखाना जरूरी है, लेकिन ये एक दिन में नहीं सिखाया जा सकता। बच्चे की हर डिमांड पर उससे सवाल करें कि क्या वाकई उसे उस चीज की जरूरत है या वह दूसरों की देखादेखी में उस चीज की डिमांड कर रहा है।

इसे हम उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं- किसी बच्चे को गिटार बजाने का बहुत शौक है। इसके लिए उसने क्लास जॉइन की है। अब वह बहुत अच्छा गिटार बजाना सीख गया है। आपके बच्चे को म्यूजिक में कोई रुचि नहीं है। लेकिन उसे देखकर आपके बच्चे को भी गिटार खरीदने की इच्छा हो गई। उसने आपसे गिटार की डिमांड की, लेकिन गिटार खरीदना उसकी इच्छा है, जरूरत नहीं। जबकि उस बच्चे ने जरूरत के लिए गिटार खरीदा है।

पैसे बचाना सिखाएं

आप बेटे से कहिए कि अभी आप उसे बाइक खरीदकर नहीं दे सकतीं। इसके लिए या तो लंबा इंतजार करना होगा या पैसे बचाकर बाइक के लिए रकम जोड़नी होगी। आप बेटे को पार्ट टाइम जॉब का ऑप्शन भी दे सकती हैं। जब बेटा खुद कमाएगा तो उसे पैसे की कद्र होगी। तब वह आपकी स्थिति को अच्छी तरह समझ पाएगा।

 

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