जानें, पौष दुर्गाष्टमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में…
आज पौष दुर्गाष्टमी व्रत है, प्रत्येक मास में दो बार अष्टमी आती है, जिसमें से शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है तो आइए हम आपको पौष दुर्गाष्टमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें पौष दुर्गाष्टमी व्रत के बारे में
प्रत्येक महीने में पड़ने वाली दुर्गाष्टमी का खास महत्व होता है। पौष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी मनाई जाती है। दुर्गाष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजा-व्रत करने का विधान है। मां दुर्गा शक्ति स्वरूपा हैं। ये हर पल अपने भक्तों का ख्याल रखती हैं, लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसी खास तिथियों का वर्णन किया गया है, जब माता रानी की पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इन्हीं तिथियों में से है नवरात्रि और दुर्गाष्टमी। पंडितों का मानना है कि इस दौरान मां दुर्गा पृथ्वी पर निवास करती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को सुनती हैं, इसलिए इस दौरान पूजा का फायदा भी शीघ्र मिलता है। इस बार पौष महीने की दुर्गाष्टमी व्रत 18 जनवरी को है। पंडितों के मुताबिक इस दिन पूजा के दौरान दुर्गाष्टमी व्रत कथा सुनने या पाठ करने से जीवन की परेशानियां दूर होती है। इसके अतिरिक्त घर में सुख-शांति बनी रहती है।
पौष दुर्गाष्टमी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में पृथ्वी पर अधिक मात्रा में बहुत ताकतवर असुर हो गए थे और वे स्वर्ग पर चढ़ाई करने लगें। उन्होंने कई देवी-देवताओं की मर्डर कर दी थी और स्वर्ग में अत्याचार मचा रखा था। सबसे ताकतवर महिषासुर था। उसका अंत करने के लिए देवों के देव महादेव ईश्वर शिव, जगत के पालनहार ईश्वर विष्णु जी और ईश्वर ब्रह्मा जी ने शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को बनाया। सभी देवताओं ने मां दुर्गा को हथियार दिए। फिर इसके बाद मां दुर्गा पृथ्वी पर प्रकट हुई। मां दुर्गा ने असुरों का वध किया। इसके बाद उसी दिन से दुर्गाष्टमी के त्योहार की आरंभ हुई।
पौष दुर्गाष्टमी का महत्व
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मासिक दुर्गाष्टमी व्रत को बहुत ही जरूरी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक दुर्गाष्टमी को दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के कुछ मंत्रों का जाप किया जाता है। पंडितों का मानना है कि जो जातक इस दिन मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करते हैं, उन्हें मन की शांति मिलती है साथ ही बुद्धि में विकास होता है। मां का आशीर्वाद मिलता है।
पौष दुर्गाष्टमी तिथि का शुभ मुहूर्त
पौष माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का शुरू 17 जनवरी 2024 को रात्रि 10 बजकर 06 मिनट पर हो रहा है। साथ ही इसका समाप्ति 18 जनवरी के दिन रात्रि 09 बजकर 44 मिनट पर होगा। उदया तिथि के मुताबिक मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 18 जनवरी, गुरुवार के दिन किया जाएगा।
पौष दुर्गाष्टमी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा
पंडितों के मुताबिक पौष दुर्गाष्टमी के दिन सुबह उठकर शीघ्र से स्नान कर लें। माता दुर्गा का गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। साथ ही माता दुर्गा के सामने दीप प्रज्वलित करना चाहिए। उसके बाद अक्षत सिंदूर और लाल पुष्प अर्पित करना चाहिए। भोग के रूप में मिठाई चढ़ाना चाहिए। धूप,दीप, अगरबत्ती जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। फिर जिस स्थान पूजा करनी है, उस जगह पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें। पूजा के दौरान मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें। साथ ही घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। माता रानी को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें। प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं। आखिर में धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां दुर्गा की आरती करें। ऐसा करने से माता दुर्गा जल्द प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी इच्छा पूरी करती है।
पौष दुर्गाष्टमी व्रत से मनोकामनाएं होती हैं पूरी
मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा के दौरान देवी मां को सोलह श्रृंगार की साम्रगी अर्पित करनी चाहिए। इसके साथ ही माता रानी को लाल चुनरी, लाल रंग का पुष्प जरूर अर्पित करें। ऐसा करने से आपका वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहता है। साथ ही इस दिन मां दुर्गा को फूल और लौंग से बनी माला अर्पित करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। दुर्गाष्टमी के दिन छोटी-छोटी 8 या 9 कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन करवाएं और कुछ-न-कुछ उपहार के रूप में जरूर अर्पित करें। यदि ऐसा संभव न हो तो कन्याओं को उनके घर जाकर भी भोजन दे सकते हैं। ऐसा करवे से माता रानी की कृपा आपके ऊपर बनी रहती है।
जानें दुर्गाष्टमी व्रत के नियम
पंडितों के मुताबिक दुर्गा अष्टमी के दिन भूल कर भी घर को खाली नहीं छोड़ना चाहिए ऐसा बोला जाता है कि इस दिन मां दुर्गा घर में आती हैं इसलिए घर को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। दुर्गा अष्टमी व्रत में सुबह से लेकर शाम तक अन्न नहीं खाना चाहिए इसके साथ ही यदि संभव हो तो सिर्फ़ दूध, फल का ही सेवन करना चाहिए। दुर्गा अष्टमी के दिन शाम को विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। व्रती ब्रह्मचर्य का पालन करें और शांत चित होकर मां दुर्गा का ध्यान करें। दुर्गा अष्टमी के दिन दुर्गा सप्तशति का पाठ विधि मुताबिक करना चाहिए। ऐसा करने से मां दुर्गा आपसे प्रसन्न होती हैं। सूर्यास्त के बाद इस व्रत का समाप्ति करना चाहिए। समाप्ति करने के बाद सात्विक भोजन से ही व्रत का पारण करना चाहिए।