जानें, हाथों में लोहे का छल्ला धारण करने के फायदे
हिंदू धर्म में जब भी किसी के जीवन में विभिन्न चुनौतियाँ या कठिनाइयाँ आती हैं, या जब उसके सामने कठिनाइयाँ आती हैं, तो वह अक्सर ईश्वर को याद करने लगता है। हिंदू धर्म ज्योतिष और भाग्य को काफी महत्व देता है। ज्योतिष और भाग्य दोनों ही ग्रहों की स्थिति और चाल पर निर्भर करते हैं। यदि ग्रह शुभ स्थिति में हों और शुभ स्थिति में हों तो आदमी का भाग्य अनुकूल होता है। इसके उल्टा यदि भाग्य प्रतिकूल लगे तो यह इस बात का संकेत है कि कुछ ग्रह असर डाल रहे हैं। ऐसे में इन प्रभावों को शांत करने के लिए हिंदू ज्योतिष में कई तरीका बताए गए हैं।
चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, विशेष रूप से जब किसी के ज्योतिषीय चार्ट में शनि की हालात प्रतिकूल होती है या जब कोई राहु-केतु के नुकसानदायक असर में होता है, तो अक्सर ज्योतिषीय इलाज की तलाश की जाती है। वैदिक ज्योतिष में इन ग्रहों के असर को शांत और मजबूत करने के तरीका बताए गए हैं। माना जाता है कि लोहे की अंगूठी पहनना एक ऐसा तरीका है जिसका आदमी पर सकारात्मक असर पड़ता है।
लोहे का संबंध विशेष रूप से शनिदेव से माना जाता है। कई लोग शनि गुनाह के असर को शांत करने के लिए घोड़े की नाल से बनी अंगूठी पहनते हैं। हालाँकि, अधिकतम फायदा के लिए यह समझना जरूरी है कि लोहे की अंगूठी कब और कैसे पहननी चाहिए।
लोहे का छल्ला धारण करने की विधि:
चुने हुए दिन पर स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और शनि देव से संबंधित बीज मंत्र का जाप करें।
पुरुषों को लोहे की अंगूठी अपने दाहिने हाथ की तर्जनी में पहननी चाहिए, जबकि स्त्रियों को इसे अपने बाएं हाथ की मध्यमा उंगली में पहननी चाहिए।
गौरतलब है कि मध्यमा उंगली का संबंध शनिदेव से होता है। यदि कोई आदमी शनि दोष, साढ़ेसाती, शनि की महादशा या राहु-केतु की महादशा के असर से गुजर रहा है तो लोहे का छल्ला पहनने से दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, माना जाता है कि लोहे की अंगूठी बुरी नज़र से सुरक्षा प्रदान करती है।