जानिए, शिव जी के कुछ खास अवतारों के बारे में…
सावन महीने में शिव जी की पूजा के साथ ही उनकी कथाएं पढ़ने-सुनने की भी परंपरा है. शिव जी से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, कुछ कथाएं उनके अवतारों से जुड़ी हैं. विष्णु जी की तरह ही शिव जी ने भी कई अवतार लिए हैं. शिव पुराण में भगवान के भिन्न-भिन्न अवतारों की कथाएं हैं. जानिए शिव जी के कुछ खास अवतारों के बारे में…
नृसिंह भगवान का क्रोध शांत किया शरभ अवतार ने
विष्णु जी ने हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए नृसिंह अवतार लिया था. नृसिंह विष्णु जी का रोद्र स्वरूप हैं, उनका क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था. तब शिव जी ने शरभ अवतार लिया. इस अवतार का आधा स्वरूप हिरण और आधा शरभ पक्षी की तरह था. शरभ आठ पैर वाला एक जानवर था, जो कि शेर से भी अधिक ताकतवर था. शरभ देव में नृसिंह से युद्ध किया और उनका क्रोध शांत किया था.
पिप्पलाद मुनि के नाम के जप से दूर होते हैं शनि दोष
दधीचि ऋषि के पुत्र पिप्पलाद मुनि भी शिव जी के अवतार माने गए हैं. दधीची अपने पुत्र बालक पिप्पलाद को छोड़कर चले गए थे. बड़े होने के बाद एक दिन पिप्पलाद मुनि ने देवताओं से इसकी वजह से पूछी तो देवताओं ने कहा कि शनि ग्रह की वजह से ऐसा कुयोग बना था, जिसकी वजह से पिता-पुत्र बिछड़ गए. ये सुनकर पिप्पलाद ने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का शाप दे दिया था.
शाप की वजह से शनि गिरने लगे. देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनि को क्षमा करने की प्रार्थना की. तब पिप्पलाद ने शनि देव को किसी बच्चे के जन्म के बाद उसे 16 वर्ष कष्ट न देने का वरदान मांगा था, शनि ये बात मान ली. इसके बाद से पिप्पलाद मुनि के नाम का जप करने से शनि गुनाह दूर हो जाते हैं.
नंदी अवतार
एक शिलाद नाम के मुनि थे. उन्होंने शादी नहीं किया था, वे ब्रह्मचारी थे. एक दिन पितरों ने शिलाद मुनि से संतान पैदा करने के लिए कहा, ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके.
शिलाद ने संतान पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की. तब शिव जी ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया. कुछ समय बाद हल चलाते समय शिलाद मुनि को भूमि से एक बालक मिला. शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा. शिव जी ने नंदी को गणाध्यक्ष बनाया. इस तरह नंदी नंदीश्वर बन गए.
श्रीकृष्ण ने अश्वथामा को हमेशा भटकते रहने का शाप दिया
महाभारत के समय द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को शिव जी का ही अंशावतार माना जाता है. द्रोणाचार्य ने शिव जी को पुत्र रूप में पाने के लिए तप किया था. शिव जी ने उन्हें वर दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतार लेंगे. श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर कलियुग के अंत तक भटकते रहना का शाप दिया था.
श्रीराम की सहायता के लिए शिव जी ने लिया था हनुमान अवतार
त्रेतायुग में रावण वध के लिए भगवान विष्णु राम अवतार लेने वाले थे, उस समय सभी देवताओं ने राम जी सहायता के लिए वानरों के रूप में और शिव जी ने हनुमान अवतार लिया था. हनुमान जी देवी सीता के वरदान की वजह से अजर-अमर हैं यानी हनुमान जी कभी बूढ़े नहीं होंगे और अमर रहेंगे. हनुमान जी की सहायता से ही श्रीराम देवी सीता की खोज कर सके और रावण का वध हुआ.
अर्जुन का घमंड तोड़ने के लिए शिव जी ने लिया किरात अवतार
महाभारत में अर्जुन शिव जी से दिव्यास्त्र पाने के लिए तप कर रहे थे. उस समय एक असुर सूअर के रूप में अर्जुन को मारने के लिए पहुंच गया था. जब अर्जुन ने सूअर पर बाण छोड़ा तो उसी समय एक किरात वनवासी ने बाण सूअर को मारा था. एक साथ दोनों के बाण उस सूअर को लगे. इसके बाद अर्जुन और किरात के बीच उस सूअर पर अधिकार पाने के लिए युद्ध हुआ था. युद्ध में अर्जुन की बहादुरी देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और अर्जुन को दिव्यास्त्र दिया.