लाइफ स्टाइल

शरीर में इन हॉर्मोंस का स्तर बढ़ाकर सुधारें अपने बिगड़े मूड को…

हॉर्मोंस केमिकल्स से बने ऐसे जादुई मैसेंजर हैं, जिनसे हमारे अंगों और टिश्यूज को पता चलता है कि कैसे महसूस करना है, कब उन्हें क्या काम करना है ये हॉर्मोंस बॉडी के अंदर भिन्न-भिन्न अंगों (ग्लैंड्स) में बनते हैं, फिर वहां से ब्लड के सहारे पूरे शरीर में चहल-कदमी करते हैं हमारे हाथ-पैर, आंख-कान-मुंह के साथ ही शरीर के भीतरी अंगों से लेकर मांसपेशियां तक इन्हीं हॉर्मोंस के इशारे पर काम करती हैं

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भूख-प्यास, नींद से लेकर शरीर के विकास, फर्टिलिटी, सेक्शुअल स्टैमिना, बॉडी के टेम्प्रेचर, ब्लड प्रेशर, शुगर और सॉल्ट लेवल तक को ये हॉर्मोंस ही काबू करते हैं इन्हीं के केमिकल लोचे की वजह से कभी हम प्यार में डूब जाते हैं, तो कभी उदास होते हैं, अच्छा-बुरा फील करते हैं यही वजह है कि कुछ हॉर्मोंस को ‘हैप्पी हॉर्मोंस’, ‘फील गुड हॉर्मोंस’ तक बोला जाता है

जब बॉडी में इन हैप्पी हॉर्मोंस का लेवल बढ़ता है, तो हल्की सी समाचार सुनकर भी ये मगन हो जाते हैं, उत्साह तो इतना बढ़ जाता है कि बिना घोड़े के सातवें आसमान पर पहुंच जाएं

हॉर्मोंस का स्तर बढ़ाएं, स्वास्थ्य और खुशियां पाएं
अच्छी बात यह है कि हमारे शरीर और फीलिंग्स को कंट्रोल करने वाले इन हॉर्मोंस को भी हम काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं यानी, शरीर में इन हॉर्मोंस का स्तर बढ़ाकर अपने बिगड़े मूड को सुधार सकते हैं स्वयं को खुशहाल और तंदुरुस्त बनाए रख सकते हैं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने 75 वर्ष तक चली अपनी एक रिसर्च में पाया कि जिनके संबंध और स्वास्थ्य अच्छी होती है, उनकी जीवन खुशियों से भरी होती है और वे लंबी जीवन जीते हैं

सप्लीमेंट्स से दूरी, बहुत जरूरी
मनोचिकित्सक डाक्टर अवनि तिवारी कहती हैं कि कभी-कभी आवश्यकता होने पर चिकित्सक अपने रोगियों को कुछ हॉर्मोंस का लेवल घटाने-बढ़ाने के लिए दवाएं देते हैं लेकिन, बिना चिकित्सक की राय के स्वयं से किसी तरह की दवा या सप्लीमेंट खाना खतरनाक साबित हो सकता है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार हैप्पी हॉर्मोंस के लिए लोगों को किसी तरह के सप्लीमेंट्स खाने की आवश्यकता नहीं है यदि कोई ऐसी प्रयास करता है, तो उसके गंभीर साइड इफेक्ट भुगतने पड़ सकते हैं

उदाहरण के तौर पर नींद, एंग्जायटी, खराब मूड और दर्द जैसी परेशानियों से जूझ रहे रोगियों को चिकित्सक की नज़र में ‘5-हाइड्रॉक्सीट्रिप्टोफैन’ नाम का सप्लीमेंट दिया जाता है, ताकि रोगी के ब्रेन में सेरोटोनिन हॉर्मोन का लेवल बढ़े और उसे कुछ राहत मिले लेकिन, इसकी वजह से ब्रेन और लिवर डैमेज हो सकते हैं मसल्स, स्किन और फेफड़ों पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है

हैप्पी हॉर्मोंस का स्तर बढ़ाने के लिए हमें किसी भी तरह की गोलियां गटकने की आवश्यकता नहीं है हार्वर्ड यूनिर्सिटी के अनुसार हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज के साथ अपनों के साथ समय बिताने से भी ये हॉर्मोंस बढ़ने लगते हैं यदि आप डिप्रेशन या एंग्जायटी फील कर रहे हैं, तो उनसे बात करें, जिनसे आप प्यार करते हैं और जिन्हें आपकी परवाह है मिल न सकें तो कॉल और मैसेज पर भी बात कर सकते हैं

डोपामाइन से बढ़े प्यार, ऑक्सिटोसिन से रिश्ता गहरा
I love you, i miss you, i am sorry और i want to see you जैसे मैसेज बॉडी में डोपामाइन लेवल बढ़ा देते हैं प्यार की आरंभ में तो डोपामाइन अपने चरम पर होता है अपने चाहने वाले का चेहरा या फोटो देख भर लेने से दिमाग का रिवॉर्ड सेंटर एक्टिवेट हो जाता है इससे चंद सेकंड में ही आदमी उत्साह और खुशी से भर जाता है

मनोचिकित्सक डाक्टर अवनि तिवारी कहती हैं कि आदमी के प्यार होने के पीछे की वजह डोपामाइन हॉर्मोन है जब इस संबंध में गहराइयां पनपती हैं, तब ऑक्सिटोसिन हॉर्मोन अपना काम प्रारम्भ करता है यह संबंध में ठहराव लाता है

प्यार भरे स्पर्श से बीमार करने वाले हॉर्मोंस होते कम
सिर्फ रोमांटिक पार्टनर को ही नहीं, बल्कि मां के बच्चे को गले लगाने, उसे सहलाने, ब्रेस्टफीडिंग कराने पर भी उसमें ऑक्सिटोसिन लेवल बढ़ जाता है जिससे वह स्वयं को सेफ फील करता है रो रहे बच्चे को सहलाते ही उसके चुप हो जाने की वजह भी यही है अपनेपन से भरे छुअन का यह अहसास ऑक्सिटोसिन हॉर्मोन का लेवल बढ़ा देता है, जो रिश्तों में बॉन्डिंग को मजबूत बनाने में अहम रोल निभाता है

शरीर में ऑक्सिटोसिन का बढ़ा स्तर लोगों को खुशी देता है और मूड अच्छा बनता है सर्दियों में वॉर्म फीलिंग्स की बढ़ी चाहत के कारण सेफ और वॉर्म टच जैसे कि हाथ थामने, गले लगाने की आवश्यकता महसूस होने लगती है इसके पीछे कॉर्टिसोल और ऑक्सिटोसिन जैसे हॉर्मोंस काम करते हैं किसी अपने के छूने पर तनाव और गुस्से के कम होने की वजह भी हॉर्मोंस ही हैं

’ब्रिटिश साइकोलॉजिकल सोसायटी’ के मेंबर और मनोवैज्ञानिक डाक्टर मार्टिन ग्राफ के मुताबिक स्नेह से भरा स्पर्श कॉर्टिसोल के स्तर को कम कर देता है कॉर्टिसोल हाई ब्लड प्रेशर और चिड़चिड़ेपन की वजह है

सेरोटोनिन बनाता रोमांटिक और खुशमिजाज
मौसम का इंसानों के मन पर गहरा असर पड़ता है इसकी एक बड़ी वजह मौसम के अनुसार हॉर्मोंस के स्तर में होने वाला परिवर्तन है मेलबर्न स्थित ‘बेकर हार्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट’ की एक रिसर्च के अनुसार सर्दियों में सेरोटोनिन हॉर्मोंस का स्तर गिर जाता है, जो हमारे मूड को बनाने-बिगाड़ने में अहम किरदार निभाता है इसलिए इस हॉर्मोन का लेवल कम होने पर बॉडी में परिवर्तन होने लगते हैं

इस दौरान आदमी को रोमांटिक ख्याल आते हैं और मूड खुशमिजाज बनता है यही वजह है कि हडि्डयों को कंपा देने वाली ठंड में भी ‘क्रश’ को देखते ही दिल कुलांचे भरने लगता है ये चारों हॉर्मोंस बॉडी में कब और कैसे बनते हैं और इनका लेवल बढ़ाए रखने के लिए क्या करें, यह भी जान लीजिए…

ब्रेन में बनता है डोपामाइन, इसकी लत कोकीन जैसी
कुछ नया सीखने, ध्यान केंद्रित करने, मूड को अच्छा बनाने, दर्द से राहत और अच्छी नींद दिलाने में डोपामाइन मददगार है यह दिल की धड़कनों को कंट्रोल करने के साथ ही किडनी और खून की नलियों को ठीक से काम करने में सहायता करता है डोपामाइन की कमी से पार्किंसंस और डिप्रेशन हो सकता है मोटिवेशन और फोकस बनाए रख पाना कठिन हो जाता है

जब भी हमें कोई पुरस्कार मिलता है, तो ब्रेन में तुरंत डोपामाइन रिलीज होता है, जिससे हम खुशी महसूस कर पाते हैं पुरस्कार वाली यह फीलिंग सेक्शुअल एक्टिविटीज, शॉपिंग और रसोई में महकते खाने से भी रिवॉर्ड सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है लेकिन, हेरोइन और कोकीन जैसे ड्रग्स की तरह ही डोपामाइन की लत भी पड़ सकती है

ब्रेन में उपस्थित टायरोसिन नाम के एमिनो एसिड से डोपामाइन बनता है रिसर्च बताती हैं कि टायरोसिन से भरपूर डाइट लेने से न केवल डोपामाइन लेवल बढ़ जाता है, बल्कि दिमाग और याददाश्त के काम करने की क्षमता में भी सुधार आता है चिकन, दूध, दही, चीज, अवोकाडो, केले, कद्दू और तिल के बीज में टायरोसिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है मेडिटेशन के दौरान भी ब्रेन डोपामाइन को रिलीज करता है

मूड बूस्टर सेरोटोनिन याददाश्त बढ़ाए, स्ट्रेस से बचाए
सेरोटोनिन हॉर्मोन नेचुरल मूड बूस्टर है यह डिप्रेशन को छूमंतर कर देता है और उल्लास से भर देता है जब आपको लगे कि ये दुनिया बहुत खूबसूरत है और आप खुशी से झूम रहे हों, तो समझ जाइए कि सेरोटोनिन का लेवल बढ़ा हुआ है यह हॉर्मोन ब्रेन के साथ ही नर्वस सिस्टम, स्किन और जीभ की सेल्स और आंतों में बनता है यह याददाश्त, नींद, सांसों और बॉडी के टेम्प्रेचर को कंट्रोल करता है

डर और स्ट्रेस से निपटने में सहायता करता है पाचन क्षमता, एडिक्शन और सेक्शुअलिटी पर भी इसका असर पड़ता है इसकी कमी से डिप्रेशन हो सकता है साइकलिंग करने, वजन उठाने और दौड़ने जैसी एक्सरसाइज करने से बॉडी में सेरोटोनिन लेवल बढ़ता है धूप, फल, सब्जियों और साबुत अनाज से भी सेरोटोनिन का स्तर बढ़ाने में सहायता मिलती है

गले लगाने से बढ़ता सेरोटोनिन, मिलतीं पॉजिटिव फीलिंग्स
सेरोटोनिन की तरह ही ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन भी पॉजिटिव फीलिंग्स को बढ़ाता है इसका मुख्य काम बच्चे के जन्म के दौरान मां को राहत पहुंचाना है यही हॉर्मोन डिलीवरी के बाद ब्रेस्टमिल्क को निप्पल तक पहुंचाने में सहायता करता है और मां और बच्चे के बीच बॉन्डिंग को मजबूत करता है सेरोटोनिन स्ट्रेस और एंग्जायटी लेवल कम करने के साथ ही हमारे सोशल बिहेवियर को भी बेहतर बनाता है

प्यार में पड़ने और सेक्शुअल एक्टिविटीज के साथ ही प्यार भरे स्पर्श, संगीत और एक्सरसाइज से भी यह यह हॉर्मोन बॉडी में रिलीज होता है अपना सेरोटोनिन लेवल बढ़ाना चाहते हैं तो एक्सरसाइज करिए या फिर मार्शल आर्ट की कड़ी ट्रेनिंग अपनों को गले लगाकर भी इसे बढ़ा सकते हैं

टेस्टोस्टेरोन हड्डियों को मजबूत बनाए, शरीर को दे ताकत
टेस्टोस्टेरोन मर्दों के टेस्टिकल्स और स्त्रियों की ओवरी में बनता है इसका नाम सुनकर भले ही दिमाग में गुस्सैल, लड़ाकू मर्दों की छवि उभर आए, लेकिन यह हॉर्मोन कैंसर जैसी रोंगों से बचाता है और स्वास्थ्य वर्धक बनाए रखता है यह हॉर्मोन स्पर्म के प्रोडक्शन और प्रजनन अंगों के विकास में सहायता करता है संभोग ड्राइव बढ़ाता है मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूती और ताकत इसी की वजह से मिलती है

यह मूड को अच्छा बनाने में भी मददगार है हरी पत्तेदार सब्जियां, प्याज, अवोकाडो, चॉकलेट और मछली खाने से टेस्टोस्टेरोन लेवल बढ़ता है एक्सरसाइज, पर्याप्त नींद और प्रोटीन का सेवन भी लाभ वाला है

अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हेल्दी और लंबी लाइफ जीने के लिए कोई पहाड़ नहीं तोड़ना, केवल अच्छा खाना खाना है, थोड़ी सी एक्सरसाइज और लाइफस्टाइल में जरा सा बदलाव, फिर देखिए चमत्कार… खुशियों की खिलखिलाहट से आपका घर और तन-मन गूंज उठेगा जीवन प्यार से सरोबार हो जाएगी रिश्तों को डोरियां और मजबूत हो जाएंगी

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