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Hindu Nav Varsh: भारतीय नववर्ष देता है सनातन का संदेश

अंग्रेजी नव साल के बढ़ते असर के बीच देश कवि रामधारी सिंह दिनकर भारतीय नागरिकों को सचेत करते हुए लिखते हैं कि ये नव साल हमें स्वीकार नहीं, है अपना ये त्यौहार नहीं, है अपनी ये तो रीत नहीं, है अपना ये त्यौहार नहीं. इन पंक्तियों का आशय पूरी तरह से साफ था कि अंगे्रजी नव साल हमारा अपना नहीं, बल्कि अंग्रेजों द्वारा भारतीयता को मिटाने के लिए हिंदुस्तान पर थोपा गया था. विसंगति यह है कि अंग्रेज जो हिंदुस्तान में छोड़कर गए थे, उसे हमने अपना मान लिया. उसके पीछे मूल कारण यही था कि हम अपनी भारतीय संस्कृति को विस्मृत कर चुके थे. अपने स्वत्व का बोध भी हमको नहीं रहा था. जब हम स्वत्व की बात करते हैं तो स्वाभाविक रूप से इसमें वह सब दिखाई देगा, जो मूल हिंदुस्तान की कल्पना था.

अब पहला प्रश्न यह आता है कि अपना मूल हिंदुस्तान क्या था? क्या हमें इसका भान है? यकीनन नहीं, क्योंकि आज जो हिंदुस्तान दिख रहा है, उसे पहले मुगलों ने अपने हिसाब से बनाया और फिर अंगे्रजों ने भारतीय समाज को हमें अपनी संस्कृति से विमुख कर दिया. विचार कीजिए कि हिंदुस्तान का स्वत्व क्या है? यदि हिंदुस्तान का स्वत्व जानना है तो हमें मुगलों से पूर्व के हिंदुस्तान का शोध करना होगा, वही असली हिंदुस्तान है. आज हम भले ही अंग्रेजी दिनचर्या का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन आज भी यह सत्य है कि अंग्रेजी दैनंदिनी का प्रयोग हम अपने त्यौहारों में कभी नहीं करते. क्योंकि हमारे सारे त्यौहार सांस्कृतिक और प्राकृतिक हैं. वे प्रकृति के हिसाब से ही तय किए जाते हैं. इसीलिए प्रारंभ से ही हिंदुस्तान के समस्त त्यौहार दिशा बोध कराने वाले रहे हैं. वसंत के त्यौहार को ही ले लीजिए, इसमें प्राकृतिक बोध होता है. वसंत के पश्चात पतझड़ और फिर प्रकृति में नवीनता का उल्लास. यही उल्लास प्राकृतिक नव साल का आभास कराता है. इसीलिए यही हिंदुस्तान का अपना नव साल है, अंगे्रजों वाला नहीं.

भारतीय की संस्कृति में पुरातन काल से नव साल का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ही माना जाता रहा है. इस तिथि को भारतीय संस्कृति में अति पावन दिन माना गया है. क्योंकि इसी प्रतिपदा दिन रविवार को सूर्योदय होने पर ब्रह्मा ने सृष्टि के निर्माण की आरंभ की थी. इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं. यह प्राकृतिक संयोग ही है कि अब हिंदुस्तान के नागरिक अपनी मूल की ओर लौट रहे हैं. जो लोग कल तक अपने नव साल मनाने वाले समाज की हंसी उड़ाता था, वे स्वयं होकर नव साल मनाने की ओर प्रवृत हो रहे हैं. इसलिए यह बोला जा सकता है कि हिंदुस्तान अपने स्वत्व की ओर लौट रहा है. हिंदुस्तान के नागरिकों को यह आभास होने लगा है कि हमारा राष्ट्र किसी भी मुद्दे में दुनिया के राष्ट्रों से पीछे नहीं रहा, बल्कि उसे षड्यंत्र पूर्वक पीछे कर दिया गया था. अब यह षड्यंत्र भी समझ में आने लगा है. इसलिए अब बहुत बड़ी संख्या में हिंदुस्तान का अपना नव साल मनाने के लिए एकत्रित होने लगे हैं.

वर्तमान में जिस प्रकार से श्रद्धा केन्द्रों पर भीड़ बढ़ रही है, वह इस बात का प्रमाण है कि हिंदुस्तान का युवा जाग्रत हो रहा है. उसे सांस्कृतिक रूप से अपने पराए का बोध हो रहा है. समाज अपने विवेक से श्रेष्ठ और बुराई के बीच तुलनात्मक शोध करने लगा है. समाज के व्यवहार में भी व्यापक बदलाव आया है. जो बुद्धिजीवी पहले हर बात की अपने हिसाब से व्याख्या करते थे, आज वे भी भारतीय संस्कृति के मुताबिक चलते की ओर प्रवृत हुए हैं. इसलिए अब भारतीय समाज को भ्रमित करने के दिन बहुत दूर जा चुके हैं.

आज विश्व के कई राष्ट्रों के नागरिक अपनी भोगवादी विकृति को छोड़कर भारतीय संस्कृति की ओर उन्मुख हो रहे हैं. धार्मिक दृष्टि से आस्था के क्षेत्र के रूप में विद्यमान नगरों में यह दृश्य आम हो गए हैं. आज गंगा के घाट पर विदेशी नागरिक भजन करते हुए मिल जाते हैं तो ब्रज की गलियों में कृष्ण भक्ति में लीन अनेक विदेशी नागरिक भी दिखाई देते हैं. हिंदुस्तान की संस्कृति में इस बात की साफ कल्पना है कि भगवादी विकृति से मन विकृत हो जाता है. आत्मा की शुद्धि करना है तो उसके लिए भारतीय संस्कृति ही सर्वोत्तम है. जब विदेशी लोग भारतीय संस्कृति को पसंद करके उसकी राह पर चलने के लिए आगे आ रहे हैं, तो फिर यह हमारी अपनी है. यह हमारा स्वत्व है. इसलिए हम अपना नव साल धूमधाम से मनाएं और अपने जीवन को सफल करें.

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