बिहारलाइफ स्टाइल

65 साल के बुजुर्ग के सामने बड़े-बड़े लोक गायक भी हैं फेल, जानें इनसे जुड़ी कुछ और भी बातें

सर्दियों की आरंभ हो चुकी है और इस मौसम में लोग अपनी स्वास्थ्य का ख्याल रखने के लिए कई तरह के जुगाड़ करते देखें जा रहे हैं. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए तो, लोग झुंड बना कर विभिन्न क्रियाकलापों में भाग लेते हैं, जिसमें लोक गीत और लोक नृत्य भी शामिल हैं.

हाल ही में, सर्दियों की ठंड में हुई एक अनूठी घटना में, एक 65 वर्षीय बुजुर्ग को सुबह की ठंड में खुले में स्नान करते हुए देखा गया. इसके साथ ही, उन्होंने स्वयं को गर्म रखने के लिए तेज आवाज में लोक गीत गाने का आनंद लिया. जब पूछा गया कि यह कैसे संभव है, तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि इस गीत का गाना सर्दी-खांसी, जुखाम, और ठंड से छुटकारा पाने में सहायता करता है. गौर करने वाली बात यह है कि यह गीत ठेठ भोपुरी में था.

खुद ही लिखते हैं गीत
बुजुर्ग अर्जुन साह बताते हैं कि वे जिस गीत को गा रहे थे, उसे कउरथुवा बोला जाता है, और खास बात यह है कि इसे उन्होंने स्वयं ही लिखा है. उनकी उम्र करीब 65 वर्ष है, और वे मैनाटांड़ प्रखंड के डमरापुर गांव के निवासी हैं. अर्जुन बताते हैं कि वे लोक गायक हैं और कउरथुवा के अतिरिक्त उन्होंने कई धार्मिक लोक गीतों को लिखा है. हालांकि वे पेशेवर कृषिकर्मी हैं, लेकिन जब भी गांव में कोई कार्यक्रम होता है, तो लोग उन्हें लोक गायक के रूप में सम्मानित करते हैं. वे इसे अपनी सांगीतिक कला को कमर्शियल बनाने की बजाय अपनेपन में ही रखते हैं.

बिहार के मशहूर लोक गीत
कउरथुवा गीत का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि इस गीत में महादेव की वंदना की जाती है.  सावन में जब लोग कांवर लेकर बाबा के धाम जाते हैं, तो उस समय पैर छिल जाते हैं और हौसला परास्त होने लगती है. गीत के माध्यम से, वे महादेव से प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उन्हें शक्ति और साहस प्रदान करें. गीत में माता-पिता का भी जिक्र है, जिसमें वे बताते हैं कि कैसे धाम जाने के समय वे अपने बच्चों को सुझाव देते हैं और बच्चे उनसे आवश्यकता की चीजें मांगते हैं. बिहार के मशहूर लोक गीतों में बागी मरवा, झुमर, बिरहा, समद, बचन, थुमरी, चैती, निर्गुणिया, धुन, गजल, घोड़बंदी, कोथी गीत आदि शामिल हैं, जिसे वाद्य यंत्रों के साथ गाया जाता है.

Related Articles

Back to top button