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क्या आपको भी हैं ‘गुड गर्ल सिंड्रोम’ के संकेत, तो ऐसे करें इस समस्या को दूर

दूसरों की नजरों में अच्छा बनना और हमेशा बने रहना संभव नहीं है यदि आप भी लगातार दूसरों की नजरों में अच्छा बनने का कोशिश करती हैं तो सावधान हो जाएं, क्योंकि यह ‘गुड गर्ल सिंड्रोम’ का संकेत हो सकता है क्या आप ऐसी लड़की हैं, जो सभी का ध्यान और प्यार पाने के लिए हमेशा अच्छी बनी रहना चाहती हैं अच्छी से आशय है, ऐसी लड़की जिसे जमाना अच्छा समझे, जो सबकी बात सिर झुका कर माने, उनके अनुरूप कपड़े पहने और जैसा वे कहे, एकदम वैसा ही करें आज लोगों के मन में लड़कियों को लेकर अलग तरह की सोच है वे मानते हैं कि लड़की सुंदर हो, समझदार हो और सर्वगुण संपन्न हो पर जैसी भी हो उनकी भावनाओं के अनुरूप हो वे पारंपरिक रीति-रिवाज जानती हो और मानती भी हो और सुन्दर दिखने के साथ ही वह पारिवारिक भी हो

आज की दुनिया में अच्छी लड़की होना सरल नहीं है, क्योंकि समाज का मानना है कि महत्वाकांक्षी बनो, लेकिन अहमियत में सिर्फ़ परिवार को रखो! ऐसी स्थिति में लड़कियां दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की प्रयास में कब अपने आप को बदल लेती हैं, उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता, जिसे ‘गुड गर्ल सिंड्रोम’ कहते हैं यानी अच्छा बनने की प्रयास में अपनी नैसर्गिक क्षमताओं को भुला देना ऐसे हालात न केवल स्त्रियों की पर्सनालिटी पर, बल्कि उनके निर्णय लेने की क्षमता पर भी बुरा असर डालते हैं

बर्मिंघम की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक डाक्टर ललिता सुगलानी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में ‘अच्छी लड़की’ को लेकर आठ अच्छाइयों का जिक्र किया और उन आदर्शों का भी खुलासा किया, जो समाज उनसे चाहता है इन आदर्श गुणों में था,

  1. हमेशा खुश रहो
  2. दूसरों की अपेक्षा के अनुसार संपूर्ण बनने की प्रयास करो
  3. ज्यादा से अधिक अच्छा बनने की प्रयास करो
  4. किसी बात को ठान लो तो उसे पूरा करो
  5. अपने आपको हमेशा शंका में रखो कि कहीं कोई गलती न हो,
  6. खुद को हमेशा दूसरों की सेवा के लिए तैयार करो
  7. अपने व्यवहार को सबके अनुरूप बनाओ
  8. आज्ञाकारी बेटी बनी रहो

यह आठों आदर्श गुण समाज ने स्त्रियों के लिए तय किए हैं वह कहती है कि ‘गुड गर्ल सिंड्रोम’ केवल लड़कियों तक सीमित हो ये जरुरी नहीं, ये लड़कों पर भी लागू होता है

डॉ सुगलानी के मुताबिक, यह सिंड्रोम दर्शाता है कि कैसे लड़कियां दूसरों की खातिर सामाजिक रूप से प्रेरित होती हैं बचपन से ही उन्हें सिखाया जाता है कि प्यार और सुरक्षा पाने के लिए हमें अपने इर्द-गिर्द के लोगों को खुश रखना जरुरी है फिर वह दूसरों की इच्छाओं को समझकर स्वयं को उस रूप में ढालती हैं और उनकी अपेक्षाओं को अहमियत देती हैं

इस प्रक्रिया ने एक तरह से हमारे चरित्र को दबा दिया, जो वास्तव में एक तरह से आत्म-परित्याग का ही रूप है कई लड़कियां इस अवधारणा का बड़े होने तक ही पालन नहीं करतीं, बल्कि इसे जीवन का फार्मूला ही बना लेती हैं आज भले ही लड़कियों को पहले की अपेक्षा अधिक फॉरवर्ड माना जाता हो पर ये संख्या बहुत अधिक नहीं है, जिसका सीधा सा मतलब है कि परिवार उनसे उतना ही बदलने की अपेक्षा करता है, जितना उनके लिए जरुरी हो

दूसरों को खुश करने के बाद भी लड़कियों की सराहना नहीं

आश्चर्य कि बात तो यह है कि इतना सब करने के बाद भी लड़कियों के काम की सराहना नहीं की जाती आखिर उनका भी उतना ध्यान क्यों नहीं रखा जाता, जितना वे दूसरों का रखती हैं लड़कियों को लेकर बताए गए ये आठ आदर्श या मापदंड अक्सर दूसरों को खुश रखने में ही खर्च हो जाते हैं इस बीच, संभावित गलती के डर या दूसरों को निराश न करने की प्रयास से उनकी असल सोच भी प्रभावित होती है और अपने आपको उन आदर्शों पर खरा उतरने का कोशिश तनाव और चिंता को जन्म देता है और इससे आपकी रचनात्मकता सीमित होती जाती है और आप दूसरों की नजर में मूर्ख कहलाती हैं

गुड गर्ल सिंड्रोम का संकेत

कभी किसी बात के लिए मना न करना भी लड़कियों के लिए अच्छा माना जाता लड़कियां सबके सामने अच्छी छवि बनाए रखने के लिए ऐसा करती भी हैं यदि आप भी दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाने के लिए न नहीं कह पातीं, तो इसका संकेत है कि आपको ‘गुड गर्ल सिंड्रोम‘ है

यह सिंड्रोम लड़कियों को अक्सर मनोवैज्ञानिक रूप से टॉक्सिक, अपमानजनक और अनहेल्दी रिलेशनशिप के प्रति संवेदनशील बनाता है परिवार की ख़्वाहिश की वजह से परफेक्ट दिखना लड़कियों की विवशता भी होती है और समाज की नकारात्मक प्रतिक्रिया से बचने के लिए इसे जरुरी भी समझा जाता है जैसे-जैसे वे बड़ी होती जाती हैं, इसका नतीजा ‘अनहेल्दी बिहेवियर‘ के रूप में सामने आने लगता है

दूसरों को स्वयं से पहले रखना

किसी न किसी रूप में जो लड़कियां ‘गुड गर्ल सिंड्रोम’ से प्रभावित होती हैं, वे दूसरों की जरूरतों को अपनी इच्छाओं से ऊपर रखती है लेकिन इस स्थिति में स्वयं की स्थान बनाने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है यदि वास्तव में लड़कियां ‘गुड गर्ल सिंड्रोम’ से उभरना चाहती हैं तो इसके लिए जरुरी है कि वे ‘लोग क्या कहेंगे’ की सोच से ऊपर उठें, क्योंकि यही वे धारणा उन्हें दब्बू बना देती है

इसके अतिरिक्त किसी पर भी भावनात्मक रूप से इतना निर्भर न रहें कि वह आपका उत्पीड़न करने लगे समाज के हर संबंध के लिए एक लिमिट सेट करना सीखें दूसरों से पहले अपने आपसे प्यार करें तभी दूसरे आपकी इज्जत करेंगे और आपसे प्यार करेंगे इसके लिए महत्वपूर्ण है कि अपने मन की सुने, दूसरों की नहीं डाक्टर सुगलानी कहती हैं, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हमारा मूल्य इस बात से निर्धारित नहीं होता है कि हम दूसरों को कितना खुश करते हैं, बल्कि यह स्वयं को प्रामाणिक रूप से व्यक्त करने की हमारी क्षमता से निर्धारित होता है

अब हालात वैसे नहीं

प्रसूति एवं महिला बीमारी जानकार डाक्टर दिव्या गुप्ता कहती हैं, हमारे समाज की जो पुरातन सोच है वह निश्चित रूप से समय, काल और हालात की वजह से बनी होगी इस तरह की सोच को संस्कारों की देन भी बोला जाता रहा है लेकिन समय के साथ समाज को भी इसमें परिवर्तन लाना जरुरी हो गया, क्योंकि अब लड़कियों को न तो सामाजिक बंधनों की जरुरत है और न ही आज सामाजिक हालात उस तरह के हैं अब लड़कियों में भी जिम्मेदारी की भावना बदल रही है और वे सतर्क हो रही हैं

दरअसल, ये संक्रमणकाल है, जिसे समाज को भी महसूस करना होगा और लड़कियों को भी दोनों तरफ से पहल जरुरी है समाज और लड़कियों दोनों को दो-दो कदम आगे बढ़ाने होंगे तभी इस परेशानी का हल निकलेगा और ये इतना भी कठिन नहीं है


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