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ज्ञान का दीप जलाने का पर्व है देव दीपावली, जानें इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्व बातें

त्योहारों, उत्सवों के माह कार्तिक की आखिरी तिथि ‘देव दीपावली’ है कार्तिक माह के प्रारंभ से ही दीपदान एवं आकाशदीप प्रज्वलित करने की प्रबंध के पीछे गायत्री मंत्र में आवाहित प्रकाश से धरती को आलोकित करने का रेट रहा है, क्योंकि शरद ऋतु से ईश्वर भाष्कर की गति दिन में तेज हो जाती है और रात में धीमी इसका नतीजा होता है कि दिन छोटा होने लगता है और रात बड़ी होने लगती है और अंधेरे का असर बढ़ने लगता है इसलिए इससे लड़ने का उद्यम भी है दीप जलाना विद्वानों के अनुसार, देव का एक पर्यायवाची नेत्र भी है इस दृष्टि से भी दीप प्रज्वलन के पीछे नेत्र-ज्योति जागृत रखने का भी संदेश मिलता है नेत्र को यहां प्रतीक रूप में लिया जाये तो ज्ञान, सदाचार, सद्भाव, आदि भी आदमी के जीवन में आत्मबल के दीपक बन के रोशनी करते हैं

देव-दीपावली की महिमा से अनेकानेक पुराण एवं अन्य ग्रंथ भरे पड़े हैं इन ग्रंथों के अनुसार, ईश्वर विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य के रूप में कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था इसके अतिरिक्त तारकासुर को मारने के लिए अग्नि और वायुदेव के योगदान से जन्मे कार्तिकेय को देवसेना का अधिपति बनाया गया, लेकिन भाई गणेश के शादी कर दिये जाने से कार्तिकेय रुष्ट होकर कार्तिक पूर्णिमा को ही क्रौंच पर्वत पर चले गये यह पर्वत भी जंबू द्वीप की तरह है कार्तिकेय के स्नेह में माता पार्वती एवं पिता महादेव वहां ज्योति रूप में प्रकट हुए

6 कृतिकाओं के गर्भ में पले षडानन के क्रौंच पर्वत पर जाना और ज्योति रूप में पार्वती-महादेव के प्रकट होने को योगशास्त्र की कसौटी पर यदि कसा जाये तो षट चक्रों यथा मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा चक्र को जागृत कर सहस्रार में ज्योति रूप में शिवा-शिव का प्रकट होना परिलक्षित होता है क्रौंच सारसपक्षी को कहते हैं यह हंस की प्रजाति का पक्षी है इसी जोड़े के बहेलिया द्वारा वध से वाल्मीकि के अंतर्मन में निश्चित रूप से श्वासों का कुछ ऐसा अनुलोम-विलोम हुआ कि षट्चक्र भेदन के जरिये उनकी कुंडलिनी शक्ति जागृत हो गयी लोग जिह्वा से ‘राम’ जपते रहे लेकिन ‘उल्टा नाम जपत जग जाना, वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना’ चौपाई का ध्वन्यार्थ निकलता है कि ‘राम’ शब्द वे मूलाधार चक्र से जपने लगे

कार्तिक पूर्णिमा को ईश्वर शंकर द्वारा त्रिपुरासुर के वध से साफ लगता है कि योग की उच्चतम स्थिति समाधि के देवता ईश्वर शंकर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों, सत-रज-तम गुणों से ऊपर उठकर देवत्व तक पहुंचने का संदेश दे रहे हैं ईश्वर विष्णु प्रबोधनी एकादशी को जाग चुके हैं ऐसे में यह परमानंद से जुड़ने का काल है आकाश में कृतिका नक्षत्र एवं चंद्र-सूर्य एवं राशियों में बदलाव की स्थिति में इस अवधि में साधना कर पूरे साल तक आनंद, परमानंद का दीप प्रज्वलित किया जा सकता है कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरोत्सव के पीछे ऋषियों का यह रेट साफ झलकता है, क्योंकि जिस त्रिपुर का उल्लेख पुराणों में किया गया है, उसमें स्वर्ग सवर्ण का, अंतरिक्ष चांदी का और मर्त्यलोक लोहे का है इन भौतिक पदार्थो से ऊपर देवलोक है नारदपुराण के उद्धरणों के गुरु शिष्य के कान में मंत्र बोलता है योगकाल होने के कारण कार्तिक पूर्णिमा को मंत्र साधने में कामयाबी मिलती है

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, ब्रह्मा की मंत्र साधना ही थी कि योगनिद्रा में सोये नारायण के कान से निकले मधु कैटभ के वध के लिए स्वयं नारायण को जागृत होना पड़ा महाभारत ग्रंथ के शांति पर्व एवं अनुशासन के अनुसार, इस कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक शरशैया पर लेटे भीष्म ने योगेश्वर कृष्ण की उपस्थिति में पांडवों को राजधर्म, दानधर्म एवं मोक्षधर्म का उपदेश दिया श्रीकृष्ण ने इस अवधि को भीष्म पंचक कहा स्कन्दपुराण के अनुसार, ज्ञान का यह काल इतना शुभ कि इस अवधि में व्रत, उपवास, सदाचार, दान का विशेष महत्व है पूरे महाभारत युद्ध में द्विविधाग्रस्त की स्थिति में रहने वाले पितामह भीष्म ने योगाधीश्वर श्रीकृष्ण का अवलंबन लेकर मौत को अपनी ख़्वाहिश के मुताबिक वरण करने की शक्ति प्राप्त कर ली वे 58 दिनों तक घायल होकर भी उत्तरायण में स्वर्ग गये

सिक्खों के गुरु नानकदेव की भी जयंती कार्तिक पूर्णिमा को आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनायी जाती है उन्होंने भी उसी ओंकार से शक्ति पाने का रास्ता कहा है, जिसे सृष्टि के प्रारंभ में मनु से ब्रह्मा जी ने कहा था आधुनिक विज्ञान के यांत्रिक उपकरणों की तरह ‘ओम’ एक ऐसा पासवर्ड है, जिसके सहारे आदमी स्वयं देवत्व अर्जित कर सकता है लौकिक रूप से विभिन्न पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा को देव मंदिरों तथा नदी के तटों पर दीप जलाने का प्रावधान है फैसला सिंधु के अनुसार, इन जलते दीपकों को यदि कीट-पतंग, मछली या अन्य कोई जीव-जंतु देख लेते हैं, तो स्वर्ग जाते हैं कार्तिक माह में कीट-पतंग की बहुलता रहती है इन दीपकों से ये समाप्त होते हैं

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