वास्तु के हिसाब से इधर होनी चाहिए किचन की उचित दिशा
वास्तुशास्त्र, जो भारतीय स्थापत्यकला का एक जरूरी हिस्सा है, के अनुसार, घर की बनावट में विभिन्न क्षेत्रों की एक योजना को मान्यता प्राप्त है जिससे गहरे आध्यात्मिक और भौतिक संतुलन का सुनिश्चित हो। किचन, जो घर का दिल माना जाता है, उसकी स्थिति और दिशा भी वास्तुशास्त्र में जरूरी किरदार निभाती है।
किचन की मुनासिब दिशा चयन करने के लिए, सबसे पहले घर के मुख्य दरवाजे की दिशा का जरूरी होता है। किचन को सबसे अच्छा इस्तेमाल उन दिशाओं में किया जाता है जो ऐसे दरवाजे की दिशा को कमजोर नहीं करते हैं। आमतौर पर, उत्तर और पूर्व दिशा को सबसे शुभ माना जाता है, इसलिए किचन को इन दिशाओं में स्थापित करना उत्तम होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार, उत्तर दिशा में स्थित किचन घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है और रसोईघर में शांति और समृद्धि की भावना को बढ़ाता है। पूर्व दिशा में किचन भी सुनिश्चित करता है कि सूर्यकिरण सीधे किचन के अंदर जाएं, जिससे सुबह का समय सकारात्मक होता है।
किचन की ठीक दिशा का चयन करते समय, आदमी को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि वह किचन के अंदर जगह और इस्तेमाल के मुताबिक जरूरी सुविधाओं को शामिल करता है। किचन के इस्तेमाल में सुधार के लिए, मुनासिब दिशा और ठीक जगह से बचाव करना मुनासिब है।
इस प्रकार, वास्तुशास्त्र के माध्यम से किचन को ठीक दिशा में स्थापित करके, घर में पॉजिटिव ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है और जीवन को संतुलित बनाए रखने में सहायता की जा सकती है।